जंतु ऊतक
जंतु ऊतक के चार मुख्य प्रकार होते हैं: एपिथीलियमी ऊतक, संयोजी ऊतक, पेशीय ऊतक और तंत्रिका ऊतक।
एपिथीलियमी ऊतक
जंतु के शरीर को ढ़कने और रक्षा प्रदान करने वाले ऊतक को एपिथीलियमी ऊतक कहते हैं। इस ऊतक की कोशिकाएँ एक दूसरे से सटी होती हैं जिससे अनवरत परत का निर्माण होता है। इन परतों के बीच चिपकाने वाले पदार्थ कम होते हैं और कोशिकाओं के बीच बहुत कम स्थान होता है।
प्राय: सभी एपिथीलियम को एक बाहरी रेशेदार झिल्ली उसे अन्य ऊतक से अलग करके रखती है। एपिथीलियमी ऊतक से होकर कई पदार्थों का आदान प्रदान होता है। संरचना के आधार पर एपिथीलियमी ऊतक चार प्रकार के होते हैं: शल्की एपिथीलियम, घनाकार एपिथीलियम, स्तंभाकार एपिथीलियम और स्तरित शल्की एपिथीलियम।
शल्की एपिथीलियम
इस प्रकार के एपिथीलियम में कोशिकाएँ पतली और चपटी होती हैं। यह कोमल अस्तर का निर्माण करती है। शल्की एपिथीलियम आहारनली, मुँह, रक्ति वाहिकाएँ, आदि में पाई जाती हैं। शल्की एपिथीलियम वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली बनाती है जिससे होकर पदार्थों का आवगमन होता है।
स्तरित शल्की एपिथीलियम
इस प्रकार के एपिथीलियम में कोशिकाओं की कई परतें होती हैं। यह एपिथीलियम त्वचा में पाई जाती है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि त्वचा ही हमारा सबसे अग्रणी सुरक्षा कवच बनाती है।
घनाकार एपिथीलियम
इस प्रकार के एपिथीलियम की कोशिकाएँ घनाकार होती हैं। घनाकार एपिथीलियम वृक्क तथा लार ग्रंथि में पाई जाती है। अक्सर घनाकार एपिथीलियम की कोशिकाएँ ग्रंथि कोशिका के रूप में किसी द्रव का स्राव करती हैं। इसलिए इन्हें ग्रंथिल एपिथीलियम भी कहते हैं।
स्तंभाकार एपिथीलियम
इस प्रकार के एपिथीलियम की कोशिकाएँ लम्बी और स्तंभ के आकार की होती हैं। यह एपिथीलियम आंत के अस्तर में पाई जाती है। इस एपिथीलियम का काम है अवशोषण और स्राव। श्वास नली में स्थित स्तंभाकार एपिथीलियम की कोशिकाओं में पक्ष्माभ होते हैं, इसलिए इन्हें पक्ष्माभी स्तंभाकार एपिथीलियम कहते हैं। पक्ष्माभी गति की सहायता से म्यूकस में गति आती है जिससे घूलकण और अन्य बेकार पदार्थ बाहर निकाले जाते हैं।
संयोजी ऊतक
संयोजी ऊतक की कोशिकाएँ एक आधात्री (मैट्रिक्स) में धँसी रहती हैं। ये कोशिकाएँ आपस में कम जुड़ी रहती हैं। आधात्री जेली की तरह तरल, सघन या कठोर हो सकती है। रक्त, अस्थि, उपास्थि, एरिओलर ऊतक और वसामय ऊतक संयोजी ऊतक के विभिन्न प्रकार हैं।
रक्त: रक्त में प्लाज्मा आधात्री का काम करती है। रक्त में लाल रक्त कणिकाएँ, श्वेत रक्त कणिकाएँ, प्लैटलेट्स निलंबित रहते हैं। रक्त का काम है विभिन्न पदार्थों का संवहन।
अस्थि: अस्थि ऊतक की आधात्री कैल्सियम और फॉस्फोरस से बनी होती है। अस्थि मजबूत और कठोर होती है। अस्थि से हमारे कंकाल का निर्माण होता है। कंकाल कई अंगों को सुरक्षा प्रदान करता है और कई अंगों को गति प्रदान करता है।
उपास्थि: उपास्थि की आधात्री प्रोटीन और शुगर की बनी होती है। उपास्थि कोमल और लचीली होती है। जोड़ों के बीच, कर्ण पटल और नाक में उपास्थि पाई जाती है। उपास्थि के कारण जोड़ों पर गति आसान होती है और जोड़ों के क्षय की रोकथाम होती है।
स्नायु: यह ऊतक मजबूत और बहुत लचीला होता है और एक हड्डी को दूसरी हड्डी से जोड़ने का काम करता है। स्नायु में आधात्री बहुत कम होती है।
कंडरा: यह ऊतक मजबूत और कम लचीला होता है। कंडरा का काम है हड्डी को मांसपेशी से जोड़ना।
एरिओलर ऊतक: यह ऊतक अंगों के बीच की खाली जगह को भरने का काम करता है। यह ऊतक त्वचा और पेशियों के बीच, रक्त नलिका के चारों ओर, अस्थि मज्जा, आदि में पाया जाता है। यह ऊतक आंतरिक अंगों को सहारा प्रदान करता है और मरम्मत में मदद करता है।
वसामय ऊतक: यह ऊतक वसा की गोलियों से भरा होता है। यह त्वचा के बीच और आंतरिक अंगों के बीच पाया जाता है। वसा के कारण यह ऊतक ऊष्मारोधी का काम करता है।
पेशीय ऊतक
यह ऊतक लंबी रेशेदार कोशिकाओं का बना होता है। इसे पेशीय रेशा कहते हैं। पेशीय ऊतक में विशेष प्रकार का प्रोटीन होता है जिसमें सिकुड़ने की क्षमता होती है। इसी प्रोटीन के कारण पेशियों में संकुचन होता है। संकुचन के कारण पेशी गति में मदद करती है। जब आप अपना हाथ कोहनी के पास से मोड़कर उठाते हैं तो बाँह के आगे वाली पेशियाँ संकुचित होती हैं। जब बाँह के पीछे वाली पेशियाँ संकुचित होती है तो आपका हाथ सीधा हो जाता है। पेशीय ऊतक के प्रकार हैं: ऐच्छिक पेशी, अनैच्छिक पेशी और हृद पेशी।
ऐच्छिक पेशी
इस ऊतक में हल्के और गहरे रंग की धारियाँ दिखाई देती हैं। इसलिए इसे रेखित पेशी भी कहते हैं। इस ऊतक की कोशिकाएँ लंबी, बेलनाकार, अशाखित और बहुनाभिकीय होती है। यह ऊतक उन अंगों में पाया जाता है जहाँ ऐच्छिक गति संभव है। इसलिए इसे ऐच्छिक पेशी कहते हैं। यह ऊतक अक्सर हड्डियों से जुड़ा रहता है इसलिए इसे कंकाल पेशी भी कहते हैं।
अनैच्छिक पेशी
इस ऊतक की कोशिकाएँ तर्कुरूपी (बीच से चौड़ी और सिरों पर मोटी) होती हैं। इन कोशिकाओं में शाखा नहीं होती और एक ही केंद्रक होता है। इसलिए इस ऊतक को अरेखित पेशी भी कहते हैं, क्योंकि इसमें धारियाँ नहीं होतीं हैं। यह ऊतक उन अंगों से जुड़ा रहता है जहाँ ऐच्छिक गति संभव नहीं है।
हृद पेशी
इस ऊतक की कोशिकाएँ बेलनाकार, शाखाओं वाली और एककेन्द्रक होती हैं। यह ऊतक हृदय में पाया जाता है। यह ऊतक जीवन भर लगातार संकुचन और एवं प्रसार करता रहता है जिसके कारण हमारा हृदय धड़कता रहता है।
तंत्रिका ऊतक
इस ऊतक की कोशिका को तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहते हैं। न्यूरॉन का आकार किसी अनियमित तारे की तरह होता है जिसके पीछे एक लंबी दुम होती है। कोशिका में एक केंद्रक होता है और कोशिका से अनेक बाल जैसे प्रवर्ध निकले होते हैं जिन्हें डेंड्राइट कहते हैं। कोशिका की दुम को एक्जॉन कहते हैं। न्यूरॉन 1 मीटर तक लंबी हो सकती है। न्यूरॉन का डेंड्राइट नर्व सिग्नल पकड़ने का काम करता है और एक्जॉन के अंतिम सिरे से सिग्नल आगे बढ़ते हैं। हमारा मस्तिष्क, नर्व कॉर्ड और अन्य तंत्रिकाएँ तंत्रिका ऊतक से बनी होती हैं। तंत्रिका ऊतक का काम है शरीर के अंगों का नियंत्रण और समंवय।