परमाणु संरचना
नील्स बोर का परमाणु मॉडल
रदरफोर्ड के मॉडल की खामियाँ दूर करने के लिए नील्स बोर ने कुछ अवधारणाएँ प्रस्तुत की जो नीचे दी गई हैं:
- इलेक्ट्रॉन केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही चक्कर लगा सकते हैं। ऐसी कक्षा को इलेक्ट्रॉन की विविक्त या पृथक कक्षा कहते हैं।
- जब इलेक्ट्रॉन अपनी निश्चित कक्षा में चक्कर लगाते हैं तो उनकी ऊर्जा का विकिरण नहीं होता है।
- इन कक्षाओं (या कोशों) को ऊर्जा-स्तर कहते हैं। ये कक्षाएँ (या कोश) K, L, M, N, …………. या संख्याओं 1, 2, 3, 4 ….. के द्वारा दिखाई जाती हैं।
कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन का वितरण
बोर और बरी ने विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों के वितरण के लिए कुछ नियम दिये जिसे बोर-बरी स्कीम कहते हैं। इस स्कीम के नियम निम्नलिखित हैं:
- किसी भी कक्षा में उपस्थित अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या को सूत्र 2n2 द्वारा दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए, पहले कक्ष में इलेक्ट्रॉन की संख्या = 2 × 12 = 2 और दूसरे कक्ष में 2 × 22 = 8 होगी।
- सबसे बाहरी कोश में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 8 हो सकती है।
- किसी भी कोश में इलेक्ट्रॉन तब तक नहीं भरेंगे जब तक उससे पहले वाले भीतरी कक्ष पूर्ण रूप से भर नहीं जाते।
संयोजकता
किसी भी परमाणु की बाहरी कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या को उस परमाणु का संयोजकता इलेक्ट्रॉन कहते हैं। बोर-बरी स्कीम के अनुसार किसी भी परमाणु की बाहरी कक्षा में अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं। जिस परमाणु की बाहरी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं वह परमाणु रासायनिक रूप से सक्रिय नहीं बल्कि अक्रिय होता है। ऐसे तत्वों को अक्रिय गैस कहते हैं। हीलियम (एक अक्रिय गैस) की बाहरी कक्षा में 2 इलेक्ट्रॉन हैं, लेकिन अन्य अक्रिय गैसों की बाहरी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं। कोई भी अन्य तत्व स्थायित्व प्राप्त करने के लिए अपनी बाहरी कक्षा में अष्टक बनाने की कोशिश करता है। ऐसा करने के तीन तरीके हैं: इलेक्ट्रॉन ग्रहण करना, इलेक्ट्रॉन का त्याग करना और इलेक्ट्रॉन की साझेदारी करना। परमाणु के अष्टक बनाने के लिए जितने इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण या साझा करने की जरूरत होती है वही उस तत्व की संयोजकता कहलाती है।
उदाहरण: क्लोरीन की बाहरी कक्षा में 7 इलेक्ट्रॉन होते हैं। अष्टक बनाने के लिए क्लोरीन या तो 7 इलेक्ट्रॉन का त्याग कर सकता है या 1 इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर सकता है। जाहिर है कि 7 इलेक्ट्रॉन देने की तुलना में 1 इलेक्ट्रॉन लेना अधिक आसान है। इसलिए क्लोरीन की संयोजकता 1 है।
उदाहरण: ऑक्सीजन की बाहरी कक्षा में 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं। अष्टक बनाने के लिए ऑक्सीजन या तो 6 इलेक्ट्रॉन का त्याग कर सकता है या 2 इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर सकता है। जाहिर है कि 6 इलेक्ट्रॉन देने की तुलना में 2 इलेक्ट्रॉन लेना अधिक आसान है। इसलिए ऑक्सीजन की संयोजकता 2 है।
परमाणु संख्या: किसी भी परमाणु में उपस्थित प्रोटॉन की संख्या को उस परमाणु की परमाणु संख्या कहते हैं। इसे अंग्रेजी के Z द्वारा दिखाया जाता है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि किसी परमाणु में प्रोटॉन की संख्या = इलेक्ट्रॉन की संख्या।
परमाणु संख्या (Z) = प्रोटॉन की संख्या = इलेक्ट्रॉन की संख्या
द्रव्यमान संख्या: किसी परमाणु का द्रव्यमान उसमें उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के द्रव्यमान के कारण होता है। चूँकि न्यूट्रॉन और प्रोटॉन के द्रव्यमान एक एक यूनिट होते हैं इसलिए परमाणु में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की संख्या के योग को उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या कहते हैं।
द्रव्यमान संख्या (M) = प्रोटॉन की संख्या + न्यूट्रॉन की संख्या
किसी परमाणु को दर्शाने के लिए उसके प्रतीक के साथ उसकी द्रव्यमान संख्या और परमाणु संख्या को इस प्रकार लिखा जाता है:
126C, 3517Cl, 168O
कार्बन की परमाणु संख्या 6 और द्रव्यमान संख्या 12 है। क्लोरीन की परमाणु संख्या 17 और द्रव्यमान संख्या 35 है। ऑक्सीजन की परमाणु संख्या 8 और द्रव्यमान संख्या 16 है।
समस्थानिक: जब दो परमाणुओं की परमाणु संख्या समान हो लेकिन द्रव्यमान संख्या भिन्न हो तो उन्हें समस्थानिक कहते हैं। समस्थानिकों के रासायनिक गुण समान लेकिन भौतिक गुण अलग-अलग होते हैं।
उदाहरण: कार्बन के दो समस्थानिक हैं: 126C और 146C
उदाहरण: हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक हैं: 11H (हाइड्रोजन), 21H (ड्यूटेरियम) और 11H (ट्रिटियम)
समभारिक: जब दो परमाणुओं की द्रव्यमान संख्या समान हो लेकिन परमाणु संख्या भिन्न हो तो उन्हें समभारिक कहते हैं। उदाहरण: 4020Ca (कैल्शियम) और 4018H (आर्गन)