खाद्य संसाधन
सिंचाई
भारत में अधिकतर खेती वर्षा पर निर्भर करती है। ऐसे में अल्पवर्षा होने की स्थिति में किसानों को सिंचाई का सहारा लेना पड़ता है। सिंचाई के लिए कुँए, नहर, तालाब, आदि का इस्तेमाल होता है। कुँए या नलकूप से भौम जल का पानी निकाला जाता है। कुछ राज्यों में सरकार ने नहरों का जाल बिछा दिया ताकि नदी से दूर स्थित गाँवों में भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो। कई राज्यों में वर्षा जल संग्रहण पर भी जोर दिया जाता है।
फसल पैटर्न
अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए किसान कई तरीके से फसल उगाते हैं।
मिश्रित फसल
इस विधि में एक साथ एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों को उगाया जाता है। फसलों को लगाने का कोई निश्चित क्रम नहीं होता है। उदाहरण: गेहूँ + चना, गेहूँ + सरसों, मूँगफली + सूर्यमुखी। मिश्रित फसल लगाने से यह सुनिश्चित किया जाता है कि यदि एक फसल का नुकसान हुआ तो दूसरी फसल उसकी भरपाई कर देगी
अंतराफसलीकरण
इस विधि में दो या अधिक फसलों को एक ही खेत में उगाते हैं और फसलों को एक निश्चित पैटर्न पर उगाया जाता है। एक पंक्ति में एक प्रकार की फसल और दूसरी पंक्ति में दूसरे प्रकार की फसल उगाई जाती है। उदाहरण: सोया + मक्का, बाजरा + लोबिया। इस विधि के लिए अलग अलग पोषक आवश्यकताओं वाली फसलों का चुनाव किया जाता है ताकि पोषकों का अधिकतम उपयोग हो सके। इस विधि से पीड़क या रोगों को एक प्रकार की फसल के सभी पौधों में फैलने से रोकना संभव हो पाता है।
फसल चक्र
जब किसी खेत में पहले से नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसलों को एक क्रम में उगाते हैं तो इसे फसल चक्र कहते हैं। फसल चक्र के उचित इस्तेमाल से किसान एक वर्ष में दो या तीन फसलों का उत्पादन करने में सफल हो जाता है। अक्सर अनाज की दो फसलों के बीच दलहन की एक फसल उगाई जाती है, जिससे जमीन की उर्वरता वापस लाने में मदद मिलती है।
फसल सुरक्षा प्रबंधन
खर-पतवार तथा पीड़क से फसलों को बहुत नुकसान होता है।
खर-पतवार: खेत में अपने आप उगने वाले अनावश्यक पौधों को खर-पतवार कहते हैं। उदाहरण: गोखरू (जैंथियम), गाजर घास (पार्थेनियम) और मोथा (साइरेनस रोटेंडस)। ये विभिन्न संसाधनों के लिए फसल से प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसलिए खर-पतवार के कारण फसल की वृद्धि कम हो जाती है। खर पतवार को अक्सर खुरपी से हटाया जाता है। कभी कभी खर-पतवार नाशी का प्रयोग भी किया जाता है। फसल उगाने की सही विधि का चुनाव करके भी खर-पतवार से निबटा जा सकता है।
कीट-पीड़क: कीट-पीड़क तीन तरह से पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- जड़, तना और पत्तियों को काटकर
- पौधे कि विभिन्न भागों से कोशिकीय रस चूसकर
- तने और फलों में छेद करके
पौधों में बैक्टीरिया, कवक और वायरस के कारण कई रोग होते हैं। ये रोगाणु मिट्टी, हवा या पानी के माध्यम से पौधों को संक्रमित करते हैं।
पीड़कों पर नियंत्रण के लिए समुचित पीड़कनाशी का छिड़काव किया जाता है। लेकिन पीड़कनाशी से बहुत नुकसान होते हैं। इसलिए उनका इस्तेमाल बहुत सावधानी से करना चाहिए।
अनाज का भंडारण
यदि कृषि उत्पाद का भंडारण सही ढ़ंग से न हो तो बहुत नुकसान होता है। कई जैविक और अजैविक कारक कृषि उत्पाद को खराब कर सकते हैं। जैसे यदि फलों और सब्जियों को उचित तापमान पर न रखा जाए तो कुछ ही दिनों में वे संड़ जायेंगी। अनाज को भंडारण से पहले धूप में अच्छी तरह सुखा दिया जाता है। फिर धूमक के उपयोग से पीड़कों को मार दिया जाता है। ग्रामीण इलाकों में फलों और सब्जियों को बरबाद होने से बचाने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की जाती है।