9 विज्ञान

ध्वनि का परावर्तन

जब ध्वनि किसी सतह से टकराती है तो ठीक उसी तरह परावर्तित होती है जैसे कि किसी गेंद को दीवार पर मारने पर होता है। ध्वनि के परावर्तन के नियम प्रकाश के परावर्तन के नियम की तरह हैं। यदि परावर्तन की सतह पर एक लंब खींचा जाये तो उससे बनने वाले आपतन और परावर्तन के कोण बराबर होते हैं।

प्रतिध्वनि या इको

जब आप किसी खाली हॉल में जोर से बोलते हैं तो कुछ देर के बाद आपको अपनी आवाज फिर से सुनाई देगी। इस परावर्तित आवाज को प्रतिध्वनि कहते हैं। हमारे दिमाग में ध्वनि की संवेदना लगभग 0.1 सेकंड तक बनी रहती है। इसलिए प्रतिध्वनि को साफ साफ सुनने के लिए यह जरूरी है कि मूल ध्वनि और परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.1 सेकंड का अंतर होना चाहिए।

हम जानते हैं कि ध्वनि की चाल = 344 m/s

इसलिए 0.1 सेकंड में ध्वनि द्वारा तय की गई दूरी = 344 × 0.1 = 34.4 m

इसका मतलब यह हुआ कि प्रतिध्वनि उत्पन्न करने के लिए ध्वनि को कम से कम 34.4 मी की दूरी तय करनी पड़ेगी। यदि 34.4 मी को 2 से भाग दें तो परिणाम 17.2 मी आता है। यानि बोलने वाले और परावर्तन सतह के बीच कम से कम 17.2 मी की दूरी होने पर ही प्रतिध्वनि सुनाई देगी।

अनुरणन

किसी भी बड़े हॉल में उत्पन्न होने वाली ध्वनी दीवारों से बार बार परावर्तित होती है। इसलिए प्रतिध्वनि काफी देर तक बनी रहती है। बार बार होने वाली इस प्रतिध्वनि को अनुरणन कहते हैं। लेकिन जब किसी बड़े हॉल में कोई भाषण या संगीत होता है तो अनुरणन से बड़ी मुश्किल होती है और कुछ भी साफ सुनाई नहीं देता है। इसलिए बड़े हॉल में अनुरणन की रोकथाम के लिए कई उपाय किये जाते हैं। दीवारों पर ध्वनि अवशोषण करने के लिए संपीड़ित फाइबर, खुरदरा प्लास्टर और परदे लगाये जाते हैं। कुर्सियों के गद्दों में रेशे लगाये जाते हैं या कोई अन्य ध्वनि अवशोषक पदार्थ लगाये जाते हैं।

ध्वनि का बहुल परावर्तन

कई युक्तियों में ध्वनि के बहुल परावर्तन का उपयोग किया जाता है। लाउडस्पीकर और मेगाफोन में बहुल परावर्तन के कारण ध्वनि को एक खास दिशा में अधिक दूर तक भेजा जा सकता है। डॉक्टर के स्टेथोस्कोप की नली से होकर बहुल परावर्तन होता है जिसके कारण छाती की ध्वनि को डॉक्टर आसानी से सुन पाता है। कंसर्ट हॉल में छतों को वक्राकार बनाया जाता है और मंच के पीछे वक्राकार दीवार बनाई जाती है ताकि बहुल परावर्तन की मदद से ध्वनि को हॉल के हर हिस्से में पहुँचाया जा सके।

श्रव्यता का परिसर

मनुष्यों में श्रव्यता का परिसर 20 Hz से 20,000 Hz तक होता है। यानि मनुष्य 20 Hz से कम और 20,000 Hz से अधिक आवृत्ति वाली ध्वनियों को नहीं सुन पाता है। 20 Hz से कम आवृत्ति वाली ध्वनि को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं और 20,000 Hz से अधिक आवृत्ति वाली ध्वनि को पराश्रव्य ध्वनि कहते हैं। कुछ जानवर, जैसे गैंडा, हाथी और व्हेल अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं। चमगादड़, डॉल्फिन और पारपॉइज पराश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं।

पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि के अनुप्रयोग

सोनार

SONAR (SOund Navigation And Ranging)

यह एक ऐसी युक्ति है जिसकी मदद से जल के भीतर स्थित वस्तु की दूरी, दिशा तथा चाल का पता किया जाता है। इसे जहाजों पर इस्तेमाल किया जाता है। सोनार में एक प्रेषित्र और एक संसूचक होता है। प्रेषित्र से पराध्वनि छोड़ी जाती है। यह ध्वनि जब किसी वस्तु से टकराती है तो परावर्तित होकर संसूचक तक पहुँचती है। वेग और समय को गुना करने पर तय की गई दूरी का पता चल जाता है। इसकी मदद से जहाज पर बैठे नाविक को जल के भीतर के खतरों का पता चल जाता है।

मानव कर्ण की संरचना

manav karn ki sanrachna

मानव कर्ण एक अत्यंत संवेदी अंग है जिससे सुनने की चेतना मिलती है। मानव कर्ण ध्वनि तरंगों को पकड़कर उसे मस्तिष्क तक भेजता है ताकि मस्तिष्क उस ध्वनि का मतलब निकाल सके।

मानव कर्ण के तीन मुख्य भाग होते हैं: बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण और अंत:कर्ण। बाहरी कान को कर्ण पल्लव कहते हैं। उसके बाद श्रवण नलिका आती है और फिर कर्ण पटह। कर्ण पटह से मध्य कर्ण की शुरुआत होती है। कर्ण पटह के बाद तीन अस्थियों से बनी एक संरचना होती है। इसके बाद अंत:कर्ण आता है जिसमें एक वलयाकार संरचना होती है जिसे कर्णावर्त या कॉक्लिया कहते हैं।

कर्ण पल्लव का काम है अपने आस पास से ध्वनि तरंगों को इकट्ठा करना। उसके बाद ध्वनि तरंगें श्रवण नलिका से गुजरते हुए कर्ण पटह या कर्ण पटह झिल्ली तक पहुँचती हैं। ध्वनि तरंगों के कारण कर्ण पटह में कंपन होता है जिसके कारण तीनों हड्डियाँ कंपन करने लगती हैं। उसके बाद कंपन कॉक्लिया में पहुँच जाता है। कॉक्लिया से श्रवण तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क तक संदेश पहुँचता है और फिर मस्तिष्क ध्वनि को पहचानने का काम करता है।