आरंभिक नगर
आप क्या सीखेंगे:
- लोगों का जीवन
- सभ्यता का अंत
लोगों का जीवन
आपने पढ़ा है कि गांव के लोगों का मुख्य पेशा खेतीबारी होती है। लेकिन शहर के लोग कई अन्य पेशे में शामिल रहते हैं। हड़प्पा के शहरों में कुछ संभावित पेशे इस प्रकार हो सकते हैं:
शिल्प:
बरतन बनाने के लिए मिट्टी, तांबा और कांसे का उपयोग होता था। औजार, हथियार और सील बनाने के लिए तांबे और कांसे का प्रयोग होता था। मिट्टी के सील भी बनाये जाते थे। कई बड़े बरतन भी मिले हैं, जिनका इस्तेमाल शायद अनाज रखने के लिये किया जाता था।
जेवर बनाने के लिए सोना, मनके, लकड़ी और मिट्टी का इस्तेमाल होता था। मनके बनाने के लिए महंगे पत्थर का प्रयोग होता था, जैसे कि कैनेलियन, जैस्पर, क्रिस्टल, आदि।
खिलौने बनाने के लिए मिट्टी और लकड़ी का प्रयोग होता था। एक गाड़ी के आकार का खिलौना बड़ी अच्छी हालत में मिला है। इसे देखकर लगता है कि उस जमाने में गाड़ी को जानवरों द्वारा खींचा जाता था।
खिलौनों, बरतनों और जेवरों पर जटिल नक्काशी देखने को मिलती है। इससे सिंधु घाटी सभ्यता के कारीगरों की दक्षता का पता चलता है।
कुछ तकलियाँ भी मिली हैं, जिनका इस्तेमाल धागा बनाने के लिए होता था। लोग कपास से धागा बनाते थे।
व्यापार
हड़प्पा के लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापार था। तांबा राजस्थान तथा ओमन से आता था। हड़प्पा के कुछ सील मेसोपोटामिया में मिले हैं। इससे पता चलता है कि हड़प्पा और मेसोपोटामिया के बीच व्यापार हुआ करता था।
गुजरात के लोथल में एक बंदरगाह मिला है। इससे पता चलता है कि उस जमाने में समुद्री मार्ग से व्यापार होता था। कई तरह के सील मिलने से यह पता चलता है कि व्यावसायिक लेन देन का सिस्टम अच्छी तरह से विकसित था।
खेती
आपने पहले पढ़ा है कि झुलसे हुए अनाजों के अवशेष मिले हैं। इससे पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता के गांवों में गेहूँ, जौ, दलहन, मटर, चावल, तिल, अलसी और सरसों की खेती होती थी।
हल की शक्ल का एक खिलौना भी मिला है। इससे पता चलता है कि खेत जोतने के लिए हल का इस्तेमाल होता था। बड़े भंडार गृह और बड़े-बड़े बरतनों के मिलने से यह पता चलता है कि अनाजों का उत्पादन प्रचुर था।
पुरास्थलों से कई पालतू पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं। इससे पता चलता है कि हड़प्पा के लोग गाय, भैंस, बकरियाँ, भेड़ और सूअर पाला करते थे।
जीवन के कुछ अन्य पहलू
- इतिहासकारों का अनुमान है कि सिंधु घाटी सभ्यता में किसी न किसी प्रकार का प्रशासन तंत्र भी रहा होगा। हो सकता है कि प्रशासन संभालने के लिए लोगों की समिति रही हो।
- पुरास्थलों से खिलौने और मूर्तियाँ मिली हैं। इससे पता चलता है कि लोगों में मनोरंजन का भी प्रचलन था।
- हड़प्पा से मिले हुए सीलों पर किसी लिपि में कुछ लिखा हुआ भी है। इसका मतलब है कि उस जमाने में लोग लिखना जानते थे। सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को अब तक कोई पढ़ नहीं पाया है।
- लोग देवी देवताओं की पूजा करते थे। वहाँ से मिली कई मूर्तियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं। पुरातत्वविदों का ध्यान खासकर से एक पुरुष की मूर्ति (जिसके चारों ओर पशु हैं) ने खींचा है। यह मूर्ति कुछ कुछ हिंदू धर्म के शंकर भगवान से मिलती जुलती है। शंकर भगवान को पशुपतिनाथ के नाम से भी जानते हैं।
हड़प्पा सभ्यता के अंत का रहस्य
हड़प्पा सभ्यता का अंत अचानक से आज से 3900 वर्ष पहले हो गया। टूटी सड़कों और जाम पड़ी नालियों से पता चलता है कि सारा तंत्र खराब हो चुका था। बाद के समय की खुदाई में दूर के स्थानों के सामानों के अवशेष नहीं मिलते हैं। इसका मतलब है कि बाहरी दुनिया से व्यापार समाप्त हो चुका था। घरों की दशा भी खराब हो चुकी थी। शहर के लोग अब धनी नहीं रह गये थे। इतिहासकार अभी तक सिंधु घाटी सभ्यता के अंत का सही कारण समझ नहीं पाये हैं। लेकिन कुछ अनुमान लगाये गये हैं, जो नीचे दिये गये हैं:
- ऐसा हो सकता है कि नदियाँ सूख गई हों। इसके परिणामस्वरूप लोगों को दूसरी जगह जाना पड़ा होगा।
- ईंटों की भट्टियाँ बहुतायत में थीं। इनसे पर्यावरण को नुकसान पहुँचा होगा। इसके कारण जंगलों की कटाई हुई होगी। वनस्पति कम हो जाने के कारण लोगों को दूसरी जगह जाने के लिये बाध्य होना पड़ा होगा।
- मवेशियों और भेड़ों द्वारा अत्यधिक चराई के कारण वनस्पति का नुकसान हुआ होगा। इससे मरुस्थलीकरण हो गया होगा, यानि मरुस्थल बन गया होगा।
- किसी महामारी या प्राकृतिक तबाही की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकत है। इससे आबादी का एक बड़ा भाग तबाह हो गया होगा।