विविधता एवं भेदभाव
असमानता एवं भेदभाव
जब कोई पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर बरताव करता है तो इससे भेदभाव हो सकता है। किसी भी व्यक्ति को धर्म, जाति, लिंग या क्षेत्रीयता के आधार पर किसी सुविधा से वंचित रखने को भेदभाव कहते हैं। भेदभाव के कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं।
लैंगिक भेदभाव: कुछ गांवों में लड़कियों को पाँचवीं या छठी कक्षा के बाद पढ़ने नहीं दिया जाता है। ज्यादातर लड़कियों को पढ़ाई के बाद कोई रोजगार करने नहीं दिया जाता है, बल्कि उन्हें शादी के लिए बाध्य किया जाता है। कई परिवारों में लड़के तो पश्चिमी परिधान पहनते हैं लेकिन लड़कियों को पश्चिमी परिधान पहनने की इजाजत नहीं होती है।
धार्मिक भेदभाव: कई बार किसी खास धर्म का होने के कारण कई लोगों को नौकरी नहीं दी जाती है। धर्म के कारण लोगों को कुछ खास सार्वजनिक स्थानों (खासकर से पूजा के स्थलों) पर जाने की अनुमति नहीं होती है।
जातिगत भेदभाव: भारत में जाति व्यवस्था काफी पुरानी है। इस व्यवस्था के अनुसार लोगों को अलग-अलग जातियों में बाँटा गया है। हर जाति के व्यक्ति के लिए अलग-अलग काम निर्धारित हैं। जैसे, महार जाति में पैदा हुआ व्यक्ति केवल कूड़ा साफ करने और मरे हुए जानवरों को गांव से हटाने के लिए बना है। पढ़ लिख लेने के बाद भी लोग अपना पेशा नहीं बदल सकते थे।
डा. बी आर अम्बेदकर महार जाति के थे। बचपन से ही उन्हें कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा था। आज भी अछूत जाति के लोग गांवों और छोटे शहरों में कई तरह के भेदभाव के शिकार होते हैं। अछूत जाति के व्यक्ति को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है। वह गांव के कुंए से पानी नहीं ले सकता है।
जाति प्रथा की जड़ें इतनी गहरी थीं कि उस पर आधारित सामाजिक ढ़ाँचे से बाहर निकलना बहुत मुश्किल था। कुम्हार का बेटा कुम्हार का ही काम कर सकता था। मोची का बेटा मोची का ही काम कर सकता था। धार्मिक अनुष्ठान कराने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को था। ऊँची जाति के लोगों द्वारा आयोजित अनुष्ठानों में नीची जाति के लोगों का जाना भी वर्जित था।
समानता की लड़ाई
हमारे कई स्वाधीनता सेनानियों ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। गांधीजी ने अछूत जाति के लोगों को ‘हरिजन’ का नाम दिया। उन्होंने लोगों के मन से पूर्वाग्रह मिटाने के लिए अथक प्रयास किये। इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वालों में भीमराव अम्बेदकर का नाम भी आता है।
जब भारत आजाद हुआ तो उस समय के गणमान्य नेताओं ने एक नये देश का निर्माण कार्य शुरु किया। जातिगत भेदभाव को संविधान में एक अपराध घोषित किया गया। संविधान में इस बात का प्रावधान भी किया गया कि दलितों का उत्थान किया जाये। संविधान में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया गया। इसका मतलब है कि भारत में कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। कानून की दृष्टि में सभी धर्म एक समान हैं। कोई व्यक्ति धर्म या जाति के आधार पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं कर सकता है।