गाँव में रोजगार
आप क्या सीखेंगे
- खेती
- किसानों के प्रकार
- अन्य पेशे
- मछुआरे
भारत के गाँवों में अधिकतर लोगों का पेशा कृषि है। खेतीबारी के अलावा गाँवों में लोग कुछ अन्य काम भी करते हैं।
किसान
भारत के किसानों को तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है: बड़ा किसान, छोटा किसान और भूमिहीन किसान।
बड़ा किसान: कुछ मुट्ठी भर किसान ही इस श्रेणी में आते हैं। गाँव की अधिकांश जमीन इन्हीं के पास होती है। उनकी खेतों से इतनी उपज होती है कि उनके परिवार की सारी जरूरतें पूरी हो जाती हैं तथा शेष बाजार में भी बिक जाता है। कई बड़े किसान खेती से संबंधित व्यवसाय भी करते हैं; जैसे आटा मिल, खाद और बीज की दुकान, आदि। वे अपने कृषि उपकरण (ट्रैक्टर, थ्रेशर) को किराये पर भी लगाते हैं। बड़े किसानों को अपने खेत पर काम नहीं करना पड़ता है, बल्कि वे मजदूरों को काम पर लगाते हैं।
छोटा किसान: किसानों की एक बड़ी संख्या इस श्रेणी में आती है। उनके खेतों में बस इतना उपज जाता है कि उनके परिवार का भरण पोषण हो सके। अधिकतर छोटे किसान खुद ही अपने खेतों पर काम करते हैं। कुछ किसान मजदूरों को भी काम पर लगाते हैं। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो दूसरों के खेतों पर भी काम कर लेते हैं ताकि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाये।
भूमिहीन किसान: अधिकतर गाँवों में भूमिहीन किसानों की संख्या बहुत अधिक है। ऐसे किसान अक्सर दूसरों की जमीन पर काम करते हैं। इन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है। ऐसे किसानों के परिवार के हर सदस्य मेहनत मजदूरी में लगे रहते हैं। उनकी कमाई इतनी कम होती है कि उनके परिवार का ठीक से भरण पोषण नहीं हो पाता है।
भारत में खेती से साल के कुछ ही महीनों में रोजगार उत्पन्न होता है। मजदूर साल के कुछ ही महीनों में व्यस्त रहते हैं; जैसे जुताई, बुआई, निराई और कटाई के समय। बाकी महीनों में मजदूरों के पास कोई काम नहीं होता है।
मंदी के महीनों में कई भूमिहीन किसान काम की तलाश में पास के शहरों में चले जाते हैं। कई तो बड़े शहरों के लिए पलायन कर जाते हैं। सरकार की रोजगार सृजन योजनाओं के कारण कई मजदूरों को पास के गाँवों में सड़कें और बांध निर्माण में भी काम मिल जाता है।
पशुपालन
अतिरिक्त आय के लिए कुछ किसान पशुपालन भी करते हैं। ऐसे किसान दूध को अक्सर सहकारी समिति को बेच देते हैं। कुछ पास के शहरों में दूध बेचने चले जाते हैं। कुछ किसान मुर्गी पालन भी करते हैं।
अन्य पेशे
गाँव में कई अन्य पेशे के लोग भी देखने को मिलते हैं। आपको बड़े गाँव में जेनरल स्टोर, दवा की दुकान, चाय पान की दुकान, आदि मिल जायेगी। कुछ लोग साइकल मरम्मत, बढ़ईगिरी, गुड़ बनाना, आदि कामों को करते हैं।
मछली पकड़ना
कुछ गाँवों में (खासकर तटीय इलाकों में) मछली पकड़ना मुख्य व्यवसाय है। अधिकतर मछुआरों के पास छोटी नाव और कुछ मामूली उपकरण होते हैं। कुछ गिने चुने मछुआरों के पास बड़ी कैटामेरन होती है जिसमें मोटर भी लगा रहता है। बड़ी कैटामेरन से वे गहरे समंदर में जा सकते हैं। मछली पकड़ने का काम बहुत जोखिम भरा है जिसमें कई घंटों तक किनारे से दूर रहना पड़ता है।
खेतों की पैदावार के लिए बाजार
कटाई के महीनों में फसल की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है। ऐसे में किसानों को अपनी फसल औने पौने दामों में बेचनी पड़ती है। कई बार बिचौलिये भी उन्हें फसल कम कीमत पर बेचने को मजबूर करते हैं। कई बार इसमें साहुकारों का भी हाथ होता है। सरकार किसानों की मदद करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है। कटाई के महीनों में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफ सी आइ) द्वारा किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज की स्थिति
किसानों को कई बार खाद, बीज और कृषि उपकरण खरीदने के लिए कर्ज लेना पड़ता है। बड़े किसानों को तो आसानी से बैंक से ऋण मिल जाता है। लेकिन छोटे किसानों को इसमें मुश्किल होती है। इसलिए छोटे किसानों को जमींदारों और साहुकारों की आस रहती है। ऐसे में ब्याज दर बहुत ऊँची होती है। इससे अक्सर छोटे किसान कर्ज तले दब जाते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि किसान की आय का अधिकतम हिस्सा कर्ज को चुकता करने में चला जाता है। अगर किसी प्राकृतिक विपदा के कारण फसल चौपट हो जाती है तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है।