6 नागरिक शास्त्र

शहर में रोजगार

आप क्या सीखेंगे

गाँव की तुलना में शहर का आकार काफी बड़ा होता है। गाँव की आबादी अगर हजारों में होती है, तो शहर की आबादी लाखों में होती है। कई बड़े शहरों की आबादी तो करोड़ों में भी हो सकती है।

शहर: जिस स्थान पर लोगों का मुख्य पेशा खेतीबारी नहीं होता है उसे शहर कहते हैं। कृषि उत्पाद के लिए शहर को गाँवों पर निर्भर रहना पड़ता है। शहर में पेशों की एक लंबी लिस्ट बन सकती है। शहर के बहुत ही कम लोग एक दूसरे को जानते हैं लेकिन हर व्यक्ति के काम के कारण दूसरों का जीवन सरल बनता है।

शहर में पाये जाने वाले प्रत्येक व्यवसाय का वर्णन मुश्किल है, लेकिन कुछ सरलीकरण तो किया ही जा सकता है। शहर के कुछ पेशों के बारे में नीचे दिया गया है।

सरकारी नौकरी:

शहर में कुछ लोग सरकारी नौकरी करते हैं। इनमें से कुछ केंद्र सरकार के लिए तो कुछ राज्य सरकार के लिए काम करते हैं। सरकारी नौकरी में कई स्तर होते हैं। सबसे शिखर पर अधिकारी आते हैं। उनके बाद क्लर्क होते हैं। सबसे नीचे चपरासी, ड्राइवर, रसोइया, माली, आदि होते हैं।

सरकारी नौकरी के लाभ: सरकारी नौकरी स्थाई होती है। इसका मतलब है कि सरकारी कर्मचारी इस बात के लिए निश्चिंत रहता है कि वह रिटायरमेंट होने तक नौकरी करता रहेगा। सरकारी नौकरी में वेतन नियमित रूप से मिलता है। वेतन के अलावा और भी कई सुविधाएँ मिलती हैं।

छुट्टियाँ: सरकारी नौकरी में त्योहारों और राष्ट्रीय छुट्टियों पर छुट्टी मिलती है। अधिकतर दफ्तरों में रविवार को साप्ताहिक छुट्टी होती है। कुछ दफ्तरों में तो शनिवार को भी छुट्टी मिलती है। इन छुट्टियों के अलावा, सरकारी कर्मचारी किसी व्यक्तिगत जरूरत के लिए भी छुट्टी ले सकता है; जैसे बीमार होने पर। ऐसी छुट्टी लेने पर वेतन भी नहीं कटता है, लेकिन ऐसी छुट्टी के लिए एक साल में दिनों की संख्या निर्धारित होती है।

स्वास्थ्य सुविधाएँ: सरकारी कर्मचारी को और उसके परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य सुविधाएँ भी मिलती हैं। एक नियत राशि तक इलाज में लगे खर्चे का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है।

सेवानिवृत्ति: वेतन का एक हिस्सा हर महीने सरकार के पास जमा होता है। इस धनराशि का इस्तेमाल कर्मचारी के रिटायरमेंट पर किया जाता है। रिटायरमेंट के समय सरकारी कर्मचारी को एक बड़ी रकम एकमुश्त मिल जाती है। इसके अलावा उसे हर महीने पेंशन भी मिलता है। पेंशन राशि इतनी होती है कि बुढ़ापा आसानी से कट जाये।

प्राइवेट कंपनी की नौकरी

कई लोग निजी कंपनियों में काम करते हैं। कुछ प्राइवेट कम्पनियाँ कफी बड़ी होती है। इन कम्पनियों द्वारा लगभग हर वह सुविधा दी जाती जो सरकारी नौकरी में मिलती है।

स्थाई कर्मचारी तथा अस्थाई कर्मचारी: स्थाई कर्मचारियों को अक्सर अच्छी तनख्वाह मिलती है और उनकी नौकरी भी सुरक्षित रहती है। लेकिन अस्थाई कर्मचारियों को ऐसी सुविधाएँ नहीं मिलती हैं।

अस्थाई कर्मचारी:

प्राइवेट कम्पनियों और फैक्टरियों में अधिकतर लोग अस्थाई मजदूर होते हैं। इनमें से अधिकतर को काम के अनुसार पारिश्रमिक मिलता है। इसे समझने के लिए एक कपड़ा फैक्टरी के मजदूर का उदाहरण लेते हैं।

यह व्यक्ति कपड़ा फैक्टरी में एक सिलाई मशीन पर काम करता है। इसका काम है कपड़ों की सिलाई करना। हर दिन वह 12 घंटे काम करता है। परिपाटी के अनुसार अधिकतर देशों में 8 घंटे काम करना होता है। इससे अधिक घंटे काम करने से थकान होती है। इस व्यक्ति को काम तभी मिलता है जब फैक्ट्री के पास कपड़े का ऑर्डर आता है। इस आदमी को कई महीने बिना काम के बैठना पड़ता है। ऐसे में इसकी आय जीरो हो जाती है।

ऐसी फैक्टरियों में बड़ी ही भयावह स्थिति होती है। काम करने की जगह तंग होती है, रोशनी कम आती है और ताजी हवा आने जाने का कोई रास्ता नहीं होता है। मजदूरी भी बहुत कम मिलती है। यदि कोई मजदूर शिकायत करता है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। इन मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती है; जैसे पेंशन, स्वास्थ्य सुविधा या छुट्टियाँ।

दिहाड़ी मजदूर

दिहाड़ी मजदूरों की संख्या तो और भी अधिक है। जिन लोगों के पास कोई हुनर नहीं होता है उन्हें दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना पड़ता है। आपको कई शहरों में ‘लेबर चौक’ मिल जायेगा। यह वह जगह होती है जहाँ सुबह-सुबह सैंकड़ों मजदूर काम की तलाश में आकर बैठ जाते हैं। वे कोई भी काम करने को तैयार रहते हैं। कोई निर्माण स्थल पर काम हो, या किसी ट्रक पर सामान लादना हो, या नाली साफ करनी हो। इन मजदूरों को महीने के कुछ ही दिनों पर काम मिल पाता है। इनमें से अधिकतर दूर दराज एक इलाकों से काम की तलाश में आते हैं। शहरों में अत्यधिक किराया और रहने का खर्चा इनकी सीमित आमदनी की कमर तोड़ देता है। इसलिए अपनी आय का बहुत छोटा हिस्सा ही ये बचत कर पाते हैं, जिसे वे अपने परिवार के पास गाँव में भेज देते हैं।

दुकानदार

शहरों में आपको तरह तरह की दुकानें दिखेंगी। कुछ दुकानें छोटी तो कुछ बहुत बड़ी होती हैं। अधिकतर दुकान का मालिक कोई व्यक्ति होता है। आजकल कुछ बड़ी कम्पनियों ने पूरे देश में दुकानों की चेन खोल रखी है। छोटी दुकान में अधिकतर काम दुकान के मालिक और उसके परिवार द्वारा किया जाता है। बड़ी दुकान में इसके लिए कई कर्मचारी रहते हैं।

फेरीवाले रेहड़ी वाले

जिन लोगों के पास स्थाई दुकान नहीं होती उन्हें रेहड़ी या फेरी वाला कहते हैं। वे ठेलागाड़ी पर या फुटपाथ पर अपनी दुकान लगाते हैं। एक रेहड़ी वाले का जीवन कठिन होता है। कई बार पुलिस वाले उन्हें खदेड़ कर भगा देते हैं। रेहड़ी पट्टी वाले फुटपाथ और सड़कों पर जाम लगा देते हैं जिससे आने जाने वालों को तकलीफ होती है। इसलिए कई लोग इनका विरोध भी करते हैं।

हर आदमी को रोजगार का अधिकार है। इसलिए सरकार रेहड़ी वालों की समस्या पर विचार कर रही है। सरकार यह कोशिश कर रही है कुछ स्थानों को रेहड़ीवालों के लिए छोड़ दिया जाये। यह भी ध्यान दिया जा रहा है कि आम नागरिकों और रेहड़ी पटरी वालों में टकराव कम से कम हो।

सेवा प्रदाता

शहरों में सर्विस देने वाले कई लोग और संस्थाएँ हैं। सर्विस देने वाला किसी माल को नहीं बेचता है। वह ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ देता है। उदाहरण: हजामत, कोरियर, ट्यूशन, चार्टर्ड एकाउंटेंट, डॉक्टर, आदि।