नगर प्रशासन
आप क्या सीखेंगे:
- नगरपालिका
- वार्ड पार्षद
- पार्षद समिति
नगर प्रशासन: गाँव के मुकाबले शहर काफी बड़ा होता है। शहर की आबादी अधिक होती है इसलिए वहाँ जन सुविधाएँ भी अधिक होती हैं। लोगों का जीवन सुचारु रूप से चलाने के लिए इन सबकी सही ढ़ंग से देखभाल की जरूरत होती है। शहरों में जन सुविधाएँ देने का काम नगर पालिका का होता है।
नगरपालिका: यह एक चुनी हुई संस्था है। नगरपालिका का कार्यकाल पाँच साल का होता है। छोटे शहरों में इसे नगरपालिका ही कहते हैं, लेकिन बड़े शहर में इसे नगर निगम कहते हैं।
वार्ड: हर नगरपालिका को छोटी इकाइयों में बाँटा जाता है जिन्हें वार्ड कहते हैं।
वार्ड पार्षद: हर वार्ड के लोग अपना एक पार्षद चुनते हैं, जिसे वार्ड काउंसिलर भी कहते हैं। सभी वार्ड पार्षद अपने में से ही एक चेयरमैन चुनते हैं।
विभाग: नगरपालिका के काम को सही ढ़ंग से चलाने के लिए कई विभागों की जरूरत पड़ती है। इनके कुछ उदाहरण हैं: सफाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, निर्माण, आदि।
सफाई विभाग का काम शहर में साफ सफाई रखना है। नालियों की सफाई और कचरे का निबटारा इसी विभाग की जिम्मेदारी है।
स्वास्थ्य विभाग का काम है स्वास्थ्य के मुद्दे को देखना; जैसे मलेरिया, डेंगू और हैजा की रोकथाम।
शिक्षा विभाग का काम है स्कूलों में सुविधाओं को देखना। ऐसा जरूरी नहीं कि शहर के सारे सरकारी स्कूल नगरपालिका के अधीन हों।
निर्माण विभाग का काम है पार्क, स्ट्रीट लाइट और कुछ सड़कों का निर्माण करना और रखरखाव करना।
पार्षद समिति
विभिन्न कार्यक्रमों को बनाने और लागू करने के लिए विभिन्न समितियाँ बनती हैं। इन समितियों के सदस्य पार्षद ही होते हैं। इन समितियों का नामकरण उससे जुड़े काम के आधार पर होता है; जिसे सफाई समिति या शिक्षा समिति।
कमिशनर और प्रशासनिक कर्मचारी
इन कर्मचारियों की नियुक्ति सरकार द्वारा होती है। इनका काम है विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करवाना और उनका प्रबंधन करना।
नगरपालिका के काम
जल आपूर्ति, अस्पताल, सड़क, स्ट्रीट लाइट, नाली, अग्निशमन, बाजार, जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड, कचरा प्रबंधन, आदि।
नगरपालिका की आय के स्रोत
नगरपालिका की आय के स्रोत हैं मकान, जल, बाजार, मनोरंजन और वाहनों पर टैक्स। इसके अलावा नगरपालिका को सरकार से अनुदान भी मिलते हैं। नगरपालिका वाहनों पर पार्किंग शुल्क भी वसूलती है।
कॉन्ट्रैक्ट रोजगार
आजकल भारत की नगरपालिकाओं में एक नई परिपाटी शुरु हुई है। अपने खर्चे घटाने के उद्देश्य से नगरपालिकाओं ने कई काम प्राइवेट ऑपरेटर्स को कॉन्ट्रैक्ट पर दे दिये हैं। ऐसे में काम करने वाले मजदूर नगरपालिका से वेतन नहीं पाते हैं। इससे कार्यक्षमता तो निस्संदेह बढ़ी है लेकिन इससे मजदूरों की स्थिति खराब हो गई है। अब मजदूरों की नौकरी सुरक्षित नहीं है। उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिलती है।