गाँव का प्रशासन
आप क्या सीखेंगे:
- विवाद का समाधान
- पुलिस की भूमिका
- पटवारी की भूमिका
प्रशासन: शासन के विभिन्न पहलुओं के विकास और उसके अमल को प्रशासन कहते हैं। प्रशासन का जो भाग जनता की भलाई के लिए होता है उसे लोक प्रशासन कहते हैं। गाँवों में प्रशासन के कई पहलू हैं। इनमे से कुछ नीचे दिये गये हैं।
- जन सुविधाओं का निर्माण; जैसे सड़क, नाली, बांध, पेय जल, आदि।
- लोक कल्याण योजनाओं को लागू करना
- झगड़े का निबटारा
- जमीन के रिकॉर्ड को दुरुस्त रखना
- लगान (भू कर) की वसूली
विवाद का समाधान
जब दो लोग या लोगों के दो समूह किसी बात पर सहमत नहीं होते हैं तो विवाद खड़ा हो सकता है। ज्यादातर विवादों को शांति से हल किया जा सकता है। लेकिन कई बार विवाद को सुलझाने के लिए प्रशासनिक तंत्र की दखलंदाजी की जरूरत पड़ती है।
पुलिस की भूमिका
पुलिस का काम है कानून को लागू करना। पुलिस को अपने क्षेत्र में शांति और सौहार्द्र भी बहाल करना होता है। हर गाँव के लिए एक थाना होता है। एक थाने के क्षेत्र में कई गाँव आते हैं।
थानाध्यक्ष (एस एच ओ): पुलिस थाने के मुखिया को थानाध्यक्ष या थानेदार कहते हैं। थानेदार का काम होता है शिकायत दर्ज करना। थाने में किसी भी शिकायत को अक्सर एफ आई आर (फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट) के रूप में दर्ज किया जाता है।
शिकायत दर्ज करने के बाद थानाध्यक्ष एक कॉन्स्टेबल को विवाद या अपराध के स्थल पर छान बीन के लिए भेजता है। समाधान के लिये थानेदार पंचायत या गाँव के बुजुर्गों की मदद भी ले सकता है। जरूरत पड़ने पर थानेदार कोर्ट भी जा सकता है।
जमीन विवाद
ग्रामीण इलाकों में विवाद का मुख्य कारण जमीन से जुड़ा झगड़ा होता है। ऐसा अक्सर होता है कि एक आदमी जबरदस्ती किसी दूसरे आदमी की जमीन हड़प लेता है। गाँव के कुछ लोग अन्य लोगों से सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिक शक्तिशाली होते हैं। अधिक शक्तिशाली आदमी कम शक्तिशाली आदमी की जमीन हड़पने की कोशिश कर सकता है। ऐसी स्थिति में अक्सर अनुसूचित जाति/जनजाति या पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति शिकार होता है। कई बार एक ही जाति के लोगों के बीच भी जमीन का विवाद उठ खड़ा होता है।
पटवारी
पटवारी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है; जैसे तहसीलदार, कानूनगो और ग्रामीण अधिकारी। पटवारी का काम होता है लगान वसूल करना। राजस्व वसूली तंत्र में पटवारी सबसे अगली पंक्ति का कर्मचारी होता है। पटवारी के सिस्टम को सबसे पहले शेरशाह सूरी ने लागू किया था। बाद में इसे अकबर ने और बेहतर किया।
भू राजस्व या लगान: भारत में शुरु के राजाओं और महाराजाओं के जमाने से ही भू राजस्व सरकार के लिए राजस्व का एक मुख्य स्रोत रहा है। आज सरकार किसी भी किसान के पास की कुल जमीन पर सालाना टैक्स लगाती है।
जिला स्तर पर राजस्व वसूली तंत्र का मुखिया कलक्टर होता है। टैक्स के कलेक्शन से जुड़े होने के कारण जिलाधिकारी को कलक्टर भी कहा जाता है।
पटवारी के काम
- भूमि पर उगने वाली फसल का रिकॉर्ड रखना
- जमीन के मालिक का ताजा रिकॉर्ड रखना।
पहले जमीन के रिकॉर्ड को कागजों पर लिखकर रखा जाता था। इससे जमीन के मालिकाना हक को लेकर अक्सर दुविधा उठती थी। पटवारी अक्सर भ्रष्ट होते थे और रिकॉर्ड में तोड़ मरोड़ कर देते थे। लेकिन अब भारत के अधिकांश हिस्सों में जमीन के रिकॉर्ड को कम्प्यूटर में रखा जाने लगा है। कंप्यूटर के कारण जमीन से जुड़े विवादों की संख्या काफी हद तक घट गई है।
जमीन के रिकॉर्ड में जानकारी: जमीन के रिकॉर्ड को खसरा भी कहा जाता है। खसरे की महत्वपूर्ण बातें नीचे दी गई हैं:
- जमीन का वर्तमान मालिक
- जमीन का क्षेत्रफल
- उगने वाली फसल
- जमीन पर कोई अन्य सुविधा
- जमीन की चौहद्दी
जमीन के रिकॉर्ड का महत्व
जमीन का रिकॉर्ड सरकार और जनता दोनों के लिए महत्वपूर्ण होता है। खसरे की जरूरत कई मामलों में पड़ सकती है। जमीन बेचने और खरीदने वाले को खसरे की जरूरत पड़ती है। यदि कोई आदमी अपनी जमीन गिरवी रखकर कर्ज लेना चाहता है तो बैंक को उस जमीन का खसरा दिखाना पड़ता है। जब भी किसी जमीन के स्वामित्व को लेकर कोई विवाद होता है तो इस रिकॉर्ड की जरूरत पड़ती है। जब कोई व्यक्ति अपने बच्चों में जमीन का बंटवारा करना चाहता है तो इस रिकॉर्ड की जरूरत पड़ती है।
खसरा निकलवाना
कोई भी आदमी उचित शुल्क देकर तहसील से किसी जमीन का खसरा निकलवा सकता है। आप तहसील ऑफिस से जमीन का नक्शा भी ले सकते हैं। कंप्यूटराइजेशन के बाद जमीन का रिकॉर्ड प्राप्त करना बहुत आसान हो गया है।
हिंदू अधिनियम धारा, 2005
पहले किसी व्यक्ति की जमीन को उसके बेटों में बराबर बांटा जाता था। सरकार ने 2005 में इस नियम में संशोधन किया। अब नये नियम के अनुसार, किसी व्यक्ति की जमीन में उसकी बेटियों का भी हिस्सा रहता है। ऐसा इसलिए किया गया ताकि स्त्रियों का सशक्तिकरण हो सके।
गाँव में अन्य जन सुविधाएँ
स्वास्थ्य सेवाएँ: कुछ गाँवों में छोटे तो कुछ गाँवों में बड़े अस्पताल होते हैं। जिस गाँव में अस्पताल नहीं होता वहाँ कुछ स्वास्थ्य कर्मचारी जाया करते हैं।
स्कूल: आज कई गाँवों में सरकारी स्कूल हैं।
दूध को-ऑपरेटिव: दूध उत्पादकों द्वारा सहकारी समिति या को-ऑपरेटिव बनाई जाती है। ऐसी सोसाइटी का काम है आस पास के गांवों से मिलने वाले दूध को एक जगह इकट्ठा करना। वहाँ से दूध को प्रॉसेसिंग प्लांट में भेजा जाता है।
आंगनवाड़ी केंद्र: गरीब बच्चों की देखभाल के लिए आंगनवाड़ी केंद्र बनाए गये हैं। ऐसे केंद्रों पर छोटे बच्चों की देखभाल होती है। उन्हें मुफ्त भोजन और कुछ दवाएँ दी जाती हैं।