भोजन: संग्रह से उत्पादन तक
जनजाति
जो लोग प्रकृति के अधिक निकट रहते हैं और आज भी शिकार, भोजन संग्रह, कृषि जैसे पुराने तरीके से जीविका चलाते हैं उन्हें जनजाति या आदिवासी कहते हैं। जनजातियों के कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं:
- किसी भी जनजाति के सदस्य छोटे समूह में रहते हैं।
- जनजाति अक्सर किसी जंगल के नजदीक रहती है। ऐसे लोग अपनी अधिकांश जरूरतों के लिए जंगल के उत्पादों पर निर्भर रहते हैं।
- जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत बहुत समृद्ध होती है। उनकी अपनी खास वास्तुकला, संगीत और चित्रकला होती है।
पहिये का आविष्कार:
नवपाषाण युग ही वह समय था जब पहिये का आविष्कार हुआ। आप शायद सोच रहे होंगे कि किसी बुद्धिमान वैज्ञानिक ने पहिये का आविष्कार किया होगा, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं हुआ था। पहिये का सटीक डिजाइन बनाने में इंसानों को सैंकड़ों वर्ष लग गये होंगे। हो सकता है कि लोगों ने लकड़ी के बेलनाकार लट्ठों को पहाड़ी से लुढ़कते हुए देखा होगा। उससे प्रेरणा लेकर लोगों ने भारी सामान ले जाने के लिए लकड़ी के लट्ठों का इस्तेमाल किया होगा। धीरे-धीरे समय बीतने के बाद पहिये का सही डिजाइन बन पाया होगा।
पहिए ने आदमी का जीवन बहुत आसान कर दिया। गाड़ी को आदमी या जानवर द्वारा आसानी से खींचा जा सकता है। इससे लंबी दूरी की यात्रा आसान हो गई होगी। बरतन बनाने वालों ने पहिये का इस्तेमाल चाक के रूप में किया जिससे बरतन बनाने में तेजी आ गई। आज पहिये के बिना जीवन की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हमारे इस्तेमाल की लगभग हर मशीन में पहिये लगे होते हैं।
मेहरगढ़ में जीवन
मेहरगढ बोलन दर्रे के पास स्थित एक हरा भरा समतल मैदान है। इस पुरास्थल से मकानों, बरतनों, जानवरों की हड्डियों और कब्रों के अवशेष मिले हैं।
घरों का आकार आयताकार होता था। उन्हें पत्थर की सिल्लियों से बनाया जाता था। एक घर में अक्सर चार कमरे होते थे। इनमें से एक कमरे का इस्तेमाल संभवत: अनाज के भंडार के तौर पर होता था।
कब्र
कब्र: कब्रों के मिलने से पता चलता है कि मृतक का अंतिम संस्कार किया जाता था। कब्रों से कई रोचक जानकारियाँ मिलती हैं। एक कब्र से आदमी के कंकाल के साथ बकरियों के कंकाल भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि लोगों को यह विश्वास था कि मरने के बाद भी जीवन होगा। लोगों को यह भी लगता रहा होगा कि मरने के बाद भी भौतिक सुविधाओं की जरूरत होगी।
दाओजली हेडिंग: यह पुरास्थल ब्रह्मपुत्र की घाटी में है। यहाँ से खरल और मूसल मिले हैं। इससे पता चलता है कि वहाँ के लोग भोजन को पीसा करते थे। यहाँ से जेडाइट नाम का पत्थर भी मिला है। यह एक हरे रंग का पत्थर होता है जिससे औजार बनाये जाते थे। इतिहासकारों का मानना है कि जेडाइट चीन से आया होगा। इससे यह पता चलता है लोगों का संपर्क दूसरे स्थानों के लोगों से हुआ करता था।