भोजन परिरक्षण
किसी भी भोजन की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के तरीकों को भोजन परिरक्षण या फूड प्रेजर्वेशन कहते हैं।
हम जानते हैं कि जब भोजन, नमी, ऑक्सीजन और सही तापमान मिलता है तो सूक्ष्मजीव तेजी से पनपते हैं। फूड प्रेजर्वेशन के सभी तरीके में भोजन या नमी या ऑक्सीजन या सही तापमान या इनमें से अधिक से अधिक कारकों को हटा दिया जाता है ताकि सूक्ष्मजीवों को पनपने के लिए अनुकूल माहौल न मिल सके। फूड प्रेजर्वेशन के कुछ तरीके नीचे दिए गए हैं।
धूप में सुखाना
धूप में सुखाने से भोजन में से नमी निकल जाती है। अनाज को धूप में सुखाने के बाद ही भंडारण किया जाता है। कई सब्जियों और फलों को भी धूप में सुखा लिया जाता है ताकि ऑफ सीजन में भी उनका इस्तेमाल किया जा सके।
रासायनिक तरीका
कुछ रसायन, भोजन में सूक्ष्मजीवों को पनपने से रोकते हैं। इनका इस्तेमाल अचार और जैम में किया जाता है। उदाहरण: सोडियम बेंजोएट और सोडियम मेटाबाईसल्फेट।
नमक द्वारा परिरक्षण
जब किसी खाद्य पदार्थ को ढ़ेर सारे नमक में रखा जाता है तो ऑस्मोसिस के कारण खाद्य पदार्थ का पानी बाहर निकल जाता है। नमी की कमी से सूक्ष्मजीव नहीं पनप पाते हैं। मछली, मांस और अचार के परिरक्षण के लिए उनमें नमक डाला जाता है।
चीनी द्वारा परिरक्षण
चीनी से भी खाद्य पदार्थ से नमी कम करने में मदद मिलती है। जैम, जेली और स्क्वैश में चीनी डालकर उनका परिरक्षण किया जाता है।
तेल और सिरका
किसी खाद्य पदार्थ के ऊपर तेल की परत के कारण ऑक्सीजन नहीं पहुँचता है। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कई सूक्ष्मजीव जिंदा नहीं रह पाते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव अम्लीय वातावरण में जिंदा नहीं रह पाते हैं, इसलिए सिरके के इस्तेमाल से भी फायदा होता है।
गर्म और ठंडा करना
ज्यादातर जीव, तापमान की एक सीमित रेंज में ही जिंदा रह पाते हैं। यदि तापमान बहुत कम या बहुत अधिक होता है तो अधिकतर जीव जिंदा नहीं रह पाते हैं। इसलिए जब हम किसी भोजन को फ्रिज में रखते हैं तो वह अधिक दिनों तक खाने लायक रहता है। आपने अपने घर में देखा होगा कि दूध को दिन में दो तीन बार उबाला जाता है। इससे दूध अधिक दिनों तक खराब नहीं होता।
पाश्चुरीकरण
इस तरीके का इजाद लुइस पाश्चर ने किया था। इस तरीके में दूध को 70°C तक 15 से 30 सेकंड के लिए गर्म किया जाता है और फिर उसे तेजी से ठंडा किया जाता है। पाश्चुरीकरण से दूध में मौजूद सूक्ष्मजीव मर जाते हैं।
भंडारण और पैकिंग
कुछ खाद्य पदार्थों को एयर टाइट पैकेट में रखा जाता है ताकि सूक्ष्मजीवों को ऑक्सीजन न मिले। कुछ खाद्य पदार्थों को फूड प्रेजर्वेटिव के साथ कैन में पैक किया जाता है। तले हुए खाद्य पदार्थों (आलू की चिप्स) को एयर टाइट पैकेट में पैक किया जाता है और उस पैकेट में नाइट्रोजन गैस भर दी जाती है। इससे तला हुआ सामान अधिक दिनों तक खाने लायक रहता है।
नाइट्रोजन फिक्सेशन
आपने पढ़ा होगा कि वायुमंडल का 78 प्रतिशत हिस्सा नाइट्रोजन से बना है। लेकिन गैसीय नाइट्रोजन का इस्तेमाल हरे पौधे नहीं कर पाते हैं। गैसीय नाइट्रोजन को किसी ऐसे कम्पाउंड मं बदलने की जरूरत होती है ताकि हरे पौधे उसका इस्तेमाल कर सकें। नाइट्रोजन गैस को पौधे के उपयोग लायक कम्पाउंड बनाने की प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण या फिक्सेशन कहते हैं। नाइट्रोजन फिक्सेशन के मुख्य चरणों के बारे में नीचे दिया गया है।
नील-हरित शैवाल (ब्लू ग्रीन एल्गी) और कुछ बैक्टीरिया, नाइट्रोजन गैस को नाइट्रोजन के कम्पाउंड में बदल देते हैं। ऐसे कम्पाउंड मिट्टी में मिल जाते हैं।
आसमान में जब बिजली चमकती है तो वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन गैस, नाइट्रोजन के कम्पाउंड में बदल जाती है। वर्षा के साथ ऐसे कम्पाउंड मिट्टी में पहुँच जाते हैं।
हरे पादप, नाइट्रोजन के कम्पाउंड को मिट्टी से लेते हैं। नाइट्रोजन का इस्तेमाल करके पादप, प्रोटीन और कई अन्य महत्वपूर्ण पदार्थ बनाते हैं। भोजन श्रृंखला के द्वारा नाइट्रोजन अन्य जीवों के शरीर में पहुँचता है।
जब जंतु और पादप उत्सर्जन करते हैं तो नाइट्रोजन का एक बड़ा हिस्सा उनके शरीर से बाहर निकल जाता है। बाकी बचा हुआ नाइट्रोजन तब वातावरण में वापस पहुँचता है जब मृत जंतु और पादप का विघटन होता है।
नाइट्रोजन चक्र: कई घटनाओं के चक्र द्वारा नाइट्रोजन सजीवों के संसार में जाता है और वापस वायुमंडल में पहुँचता है। इस चक्र को नाइट्रोजन चक्र कहते हैं।