प्रकाश का परावर्तन
प्रकाश एक तरह की ऊर्जा है। प्रकाश के कारण हम चीजों को देख पाते हैं, यानि प्रकाश की सहायता से हमें दृष्टि मिलती है। जब किसी वस्तु पर रोशनी पड़ती है तो उसमें से कुछ रोशनी परावर्तित होकर हमारी आँखों तक पहुँचती है। इस तरह हम किसी वस्तु से परावर्तित होने वाले प्रकाश के कारण उस वस्तु को देख पाते हैं।
जब किसी चमकीली सतह पर प्रकाश पड़ता है तो उसमें से अधिकतर प्रकाश परावर्तित हो जाता है। इस परिघटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।
परावर्तन के नियम
परावर्तन के दो नियम हैं जो नीचे दिए गए हैं।
- परावर्तन का पहला नियम: आपतित किरण, आपतन बिंदु पर लम्ब और परावर्तित किरण, ये तीनों एक ही तल में होते हैं।
- परावर्तन का दूसरा नियम: आपतन कोण और परावर्तन कोण आपस में बराबर होते हैं। दिए गए चित्र में आपतन कोण को नीले रंग से और परावर्तन कोण को लाल रंग से दिखाया गया है।
समतल दर्पण में प्रतिबिंब
इस चित्र में PQ एक समतल दर्पण है और O एक वस्तु है। OA और OC आपतित किरण हैं, जो वस्तु से आ रही हैं। आपतित किरणें दर्पण से टकराने के बाद परावर्तित हो जाती हैं। यहाँ पर AB और CD परावर्तित किरणें हैं। यदि AB और CD को दर्पण से पीछे खींचा जाए तो वे बिंदु I पर मिलती हुई प्रतीत होती हैं। यही वह बिंदु है जहाँ प्रतिबिंब बनता है। यदि दर्पण से वस्तु की दूरी OM है तो प्रतिबिंब की दूरी MI है। इसका मतलब यह हुआ कि प्रतिबिंब की दूरी वस्तु की दूरी के बराबर है।
समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब के लक्षण:
- प्रतिबिंब हमेशा दर्पण के पीछे बनता है।
- यह एक आभासी प्रतिबिंब होता है, यानि इसे किसी परदे पर नहीं प्राप्त किया जा सकता है।
- प्रतिबिंद सीधा और पार्श्व परिवर्तित होता है। पार्श्व परिवर्तन का मतलब होता है कि आपका दायाँ हाथ प्रतिबिंब के बाएँ हाथ की तरह दिखेगा।
नियमित परावर्तन
जब भी किसी वस्तु पर रोशनी पड़ती है तो प्रकाश की किरणें समांतर होती हैं। यदि परावर्तित किरणें भी आपस में समांतर होती हैं तो ऐसे परावर्तन को नियमित परावर्तन कहते हैं। जब किसी चिकनी सतह से परावर्तन होता है तो नियमित परावर्तन होता है। दर्पण से ऐसा ही होता है। जब नियमित परावर्तन होता है तो हम स्पष्ट प्रतिबिंब देख पाते हैं।
विसरित परावर्तन
जब परावर्तित किरणें आपस में समांतर नहीं होती हैं तो ऐसे परावर्तन को अनियमित या विसरित परावर्तन कहते हैं। जब किसी खुरदरी सतह से परावर्तन होता है तो विसरित परावर्तन होता है। ऐसे में स्पष्ट प्रतिबिंब नहीं बनता है। प्रकृति में अधिकतर सतहें खुरदरी होती हैं, कुछ कम तो कुछ अधिक। जो सतह जितनी कम खुरदरी होगी उससे बनने वाला प्रतिबिंब उतना ही स्पष्ट होगा। इसे समझने के लिए आप किसी झील में पेड़ के बनने वाले प्रतिबिंब का उदाहरण ले सकते हैं। अगर झील का पानी शांत होता है तो पेड़ का प्रतिबिंब अधिक स्पष्ट होता है। यदि झील का पानी अशांत होता है तो पेड़ का प्रतिबिंब उतना स्पष्ट नहीं बनता है।
बहु प्रतिबिंब
जब दो या अधिक दर्पणों को एक दूसरे से किसी कोण पर रखा जाता है तो हमें कई प्रतिबिंब देखने को मिलते हैं। नाई की दुकान में आमने सामने की दीवारों पर आइने लगे होते हैं, जिनके कारण आपको अपने कई प्रतिबिंब दिखाई देते हैं। बनने वाले प्रतिबिंबों की संख्या दोनों दर्पणों के बीच के कोण पर निर्भर करती है। इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा पता किया जा सकता है।
प्रतिबिंबों की संख्या = (360° ÷ कोण) – 1
इसलिए, यदि दोनों दर्पण एक दूसरे से समकोण बनाते हैं तो 3 प्रतिबिंब बनेंगे। यदि दोनों दर्पणों के बीच 30° का कोण होगा तो कुल 11 प्रतिबिंब बनेंगे। यदि दोनों दर्पण एक दूसरे के आमने सामने रखे जाएँगे तो अनगिनत प्रतिबिंब बनेंगे।