दिल्ली सुल्तान
आखिरी दौर
दिल्ली और आगरा पर 1526 तक तुगलक, लोदी और सैय्यद राजवंशों का शासन रहा। लेकिन उस दौरान कई प्रदेशों में स्वतंत्र शासक फले फूले, जैसे जौनपुर, बंगाल, मालवा, गुजरात, राजस्थान और दक्षिण भारत। इस दौरान अफगान और राजपूर जैसे नये शासक भी उभर कर आए। कुछ राज्य छोटे आकार के थे लेकिन शक्तिशाली थे और वहाँ का प्रशासन बहुत अच्छा था।
सूरी राजवंश
इस राजवंश ने 1540 से 1555 तक यानि पंद्रह वर्षों तक शासन किया। सूरी राजाओं ने अलाउद्दीन खलजी के प्रशासन नीति को अपनाया और उसमें कई सुधार किये। शेरशाह सूरी ने बिहार में अपने चाचा की छोटी सी जागीर के मैनेजर के तौर पर शुरुआत की थी। आगे चलकर उसने मुगल सम्राट हमायूं को हराया। उसने दिल्ली पर कब्जा करके अपने राज की शुरुआत की और 1540 से 1545 तक शासन किया। जब अकबर अपना शासन मजबूत करने लगा तो उसने शेरशाह सूरी के प्रशासन की नीतियों को अपनाया।
मस्जिद
यह एक अरबी शब्द है जिसका मतलब है मुसलमानों के प्रार्थना करने की जगह। मस्जिद-ए जामी या जामा मस्जिद का मतलब है जहाँ लोग एक साथ इकट्ठा होकर इबादत करते हैं। मुस्लिम समूह में नमाज पढ़ते हैं और सबसे अधिक विद्वान आदमी इमाम बनता है। शुक्रवार यानि जुम्मे की नमाज के वक्त इमाम उपदेश (खुतबा) भी देता है। नमाज पढ़ते वक्त मुसलमान मक्का की तरफ मुँह करके रहते हैं, यानि भारत से पश्चिम की ओर।
दिल्ली सुलतानों ने उपमहाद्वीप में कई मस्जिद बनवाए थे। ऐसा वे इसलिए करते थे ताकि अपने आपको इस्लाम और मुसलमान के रक्षक साबित कर सकें। मस्जिद से पूरे समुदाय को एकजुट होने की भावना मिलती थी। यह जरूरी था क्योंकि मुसलमान अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते थे।
कुव्वत अल-इस्लाम मस्जिद
कुव्वत अल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश द्वारा बारहवीं सदी के आखिरी दशक में हुआ था। यह दिल्ली सल्तनत के सबसे पहले शहर दिल्ली-ए कुह्ना में बनी थी। बाद में इल्तुतमिश और अलाउद्दीन खलजी ने इसका विस्तार किया था।
बेगमपुरी मस्जिद
बेगमपुरी मस्जिद को मुहम्मद तुगलक के समय बनवाया गया था। जहाँपनाह नामक शहर का यह मुख्य मस्जिद थी। मोठ की मस्जिद को सिकंदर लोदी के समय उसके एक मंत्री ने बनवाया था। जमाली कमाली की मस्जिद 1520 के दशक के आखिर में बनी थी। इन मस्जिदों से स्थापत्य के क्रमिक विकास का पता चलता है जो शाहजहाँ द्वारा बनवाये मस्जिद में अपने चरम पर दिखता है।