नये राजा और राज्य
सत्रहवीं सदी में कई बड़े भूस्वामी या योद्धा सरदार थे जिन्हें राजा द्वारा मातहत या सामंत की मान्यता मिली हुई थी। इन सामंतों को राजा के लिए कई काम करने होते थे, जैसे उपहार लाना, राजा के दरबार में हाजिरी बजाना, जरूरत पड़ने पर सेना उपलब्ध कराना, आदि।
जब इन सामंतों का धन और शक्ति बढ़ जाती थी तो वे अपने आप को महासामंत या महामंडलेश्वर घोषित कर देते थे। कई बार वे अपने आप को स्वतंत्र भी घोषित कर देते थे। दक्कन के राष्ट्रकूटों की कहानी ऐसा ही उदाहरण दिखाती है।
राष्ट्रकूट
पहले राष्ट्रकूट लोग कर्णाटक के चालुक्य के अधीन रहते थे। आठवीं सदी के मध्य में दंतिदुर्ग नाम के एक राष्ट्रकूट मुखिया ने चालुक्य राजा को हटा दिया और स्वयं को राजा घोषित कर दिया। फिर उसने हिरण्यगर्भ यज्ञ किया।
हिरण्यगर्भ का शाब्दिक अर्थ है सोने का गर्भ। ऐसा माना जाता था कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति में जन्मा हो, यदि इस यज्ञ को करता था तो क्षत्रिय बन जाता था।
कई ऐसे उदाहरण भी मिले हैं, जब कुछ सक्षम पुरुष अपनी सैन्य कुशलता के सहारे अपना राज्य स्थापित कर लेते थे। उदाहरण के लिए कर्णाटक के कदम्ब मयूरशर्मन और राजस्थान के गुर्जर-प्रतिहार हरिचंद्र जन्म से ब्राह्मण थे। इन लोगों ने अपनी सैन्य शक्ति के बल पर अपना राज्य स्थापित किया था।
नये राज्य में प्रशासन
ये नये राजा अपने आपको शक्तिशाली और प्रभावशाली दिखाने के चक्कर में अपने नाम के आगे बड़ी-बड़ी उपाधियाँ लगा लेते थे, जैसे महाराजाधिराज, त्रिभुवन-चक्रवर्तिन, आदि। लेकिन इन बड़ी उपाधियों के बावजूद इन राजाओं को अक्सर स्थानीय सामंतों, भूस्वामियों, ब्राह्मणों और व्यापारियों से अपनी सत्ता साझा करनी पड़ती थी।
राजस्व की वसूली
सरकार चलाने और सेना रखने के लिए संसाधन की जरूरत पड़ती है। किसानों और अन्य उत्पादकों से समझा बुझाकर या फिर जबरदस्ती उनके उत्पाद का कुछ हिस्सा वसूला टैक्स के रूप में जाता था। कई बार राजा अपने आप को हर जमीन का स्वामी बताते हुए उन जमीनों पर लगान वसूलता था। वसूले हुए संसाधनों का इस्तेमाल राज्य की जरूरतों पर खर्च किया जाता था। उस धन से मंदिर और किले बनवाये जाते थे। कुछ धन का इस्तेमाल युद्ध के लिए किया जाता था। जहाँ से लूट कर अच्छा धन मिलने की संभावना होती थी वहाँ आक्रमण किया जाता था। कुछ फायदेमंद व्यापार मार्गों पर कब्जा करने की मंशा से भी युद्ध किये जाते थे।
कर वसूली के लिए अक्सर प्रभावशाली परिवार के लोगों को नियुक्त किया जाता था। सेना में नियुक्ति भी इसी तरीके से होती थी। ऐसे पद अक्सर वंशानुगत होते थे। अधिकतर पदों पर राजा के रिश्तेदार ही दिखते थे।
प्रशस्ति
यह शब्द प्रशंसा का समानार्थी है। किसी राजा की बड़ाई करने के उद्देश्य से प्रशस्ति लिखी जाती थी। प्रशस्ति में लिखी बातें सच्चाई से कोसों दूर होती थीं। प्रशस्ति से यह पता चलता है कि कोई राजा अपने आप को कैसा दिखाना चाहता था, जैसे कि विजेता, वीर, निर्भीक, दयालु, आदि। ऐसी प्रशस्तियाँ ब्राह्मणों द्वारा लिखी जाती थीं, जो कभी कभार प्रशासन में भी मदद करते थे।
भूमि अनुदान
ब्राह्मणों को उनकी सेवा के बदले में भूमि-अनुदान मिल जाते थे। इस रेकॉर्ड को ताम्रपत्र पर लिखा जाता था और जमीन पाने वाले को दिया जाता था।
कल्हण
कश्मीर के राजाओं के इतिहास पर कल्हण ने संस्कृत में एक लंबी कविता लिखी थी। कल्हण ने अपने स्रोत के रूप में अभिलेखों, दस्तावेजों, चश्मदीद गवाहों के किस्से और पहले के इतिहास का इस्तेमाल किया था। इस कविता की अनोखी बात यह है कि कल्हण ने राजाओं और उनकी नीतियों की आलोचना की है।
धन के लिए लड़ाई
नये राजवंशों में से हर किसी की शक्ति किसी खास क्षेत्र तक सीमित होती थी। लेकिन वे अपना शक्ति प्रदर्शन कई तरीके से करते थे। सभी राजा दूसरे क्षेत्रों को जीतकर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे। गंगा घाटी का कन्नौज सबके निशाने पर रहता था।
राजा अपना शक्ति प्रदर्शन के लिए बड़े बड़े मंदिर बनवाते थे। ये मंदिर किसी भी राज्य की धन-संपत्ति की निशानी होते थे। इसलिए जब कोई राजा किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण करता था तो मंदिर में लूटपाट अवश्य करता था।
त्रिपक्षीय संघर्ष
कई सदियों तक गुर्जर-प्रतिहार, राष्ट्रकूट और पाल राजवंशों के शासकों के बीच कन्नौज पर नियंत्रण के लिए युद्ध होते रहे। इस लंबे चलने वाले युद्ध में तीन पक्ष शामिल थे इसलिए इतिहासकार इसे त्रिपक्षीय संघर्ष कहते हैं।
महमूद गजनी
गजनी का शासन 997 से 1030 तक था। उसका राज्य मध्य एशिया, ईरान और उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी हिस्से तक फैला हुआ था। वह लगभग हर वर्ष भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण करता था, और मुख्यत: संपन्न मंदिरों को अपना निशाना बनाता था। गुजरात का सोमनाथ मंदिर उन्हीं मंदिरों में से एक है। यहाँ से लूटे हुए धन के इस्तेमाल से उसने गजनी में एक शानदार शहर बसाया था। वह भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के बारे में और अधिक जानने की रुचि रखता था। इसलिए उसने अल-बेरूनी को यहाँ के बारे में लिखने को कहा। अल-बेरूनी की किताब-अल-हिंद आज के इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत का काम करती है।
चाहमान
चाहमान राजाओं ने दिल्ली और अजमेर के इलाके पर शासन किया था। बाद में इन्हें चौहान के नाम से जाना जाने लगा। जब उन्होंने अपने शासन का विस्तार करने की कोशिश की तो गुजरात के चालुक्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गहड़वाल से उनका सामना हुआ। चौहान शासकों में सबसे प्रसिद्ध था पृथ्वीराज तृतीय जिसने 1168 से 1192 तक शासन किया था। पृथ्वीराज ने अफगानिस्तान के सुल्तान मुहम्मद गोरी को 1191 में हराया था लेकिन अगले साल उससे हार गया था।