दिल्ली सुल्तान
खलजी और तुगलक का प्रशासन
दिल्ली सल्ततन के विशाल भूभाग पर शासन के लिए भरोसेमंद सूबेदारों और प्रशासकों की जरूरत थी। इस काम के लिए शुरु के सुलतानों ने कुलीन वर्ग के लोगों की बजाय अपने भरोसेमंद गुलामों का चुनाव किया। फारसी में इन गुलामों को बंदगाँ कहते थे। तुगलक और खलजी ने मामूली परिवार में जन्मे लोगों को ऊँचे पदों की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन इससे राजनैतिक अस्थिरता भी आने लगी थी। ये गुलाम अपने मालिकों के प्रति वफादार थे लेकिन उनके उत्तराधिकारियों के प्रति वफादार नहीं थे। तवारीख लिखने वाले लेखकों ने निचले कुल में जन्मे व्यक्तियों को ऊँचे पद दिए जाने की काफी आलोचना की थी।
खलजी और तुगलक शासकों ने सेना के कमांडरों को सूबेदार नियुक्त किए थे। सूबेदारों के क्षेत्र को इक्ता कहते थे। इक्ता के शासक को इक्तेदार या मुक्ती कहते थे। मुक्ती का काम था अपने सैनिक अभियान का नेतृत्व करना और अपने इक्ते में कानून-व्यवस्था कायम करना। वेतन के रूप में उन्हें अपने इलाके से कर वसूलने का अधिकार मिला हुआ था।
मुक्ती को अधिक शक्तिशाली बनने से रोकने के लिए उस पद को वंशानुगत नहीं रखा गया था। किसी एक इक्ते में अधिक समय तक रखने की बजाय उनका तबादला कर दिया जाता था। मुहम्मद तुगलक और अलाउद्दीन खलजी ने यही नीती अपनाई थी।
मुक्ती द्वारा वसूले गए कर की जाँच पड़ताल के लिए एकाउंटेंट रखे जाते थे। इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता था कि मुक्ती उसी दर से कर वसूलें जैसा सुलतान का फरमान हो और सैनिकों की उचित संख्या भी रखें।
दिल्ली सुलतान का प्रभाव
दिल्ली के सुलतानों ने सामंतों और धनी भूस्वामियों को अपना आधिपत्य स्वीकार करने के लिए बाध्य किया था। अलाउद्दीन खलजी के शासन में:
- जमीन पर लगान को तय करने और वसूलने का काम शासन के नियंत्रण में था।
- स्थानीय सामंतों के पास कर लगाने का कोई अधिकार नहीं था, बल्कि उन्हें कर देना पड़ता था।
सुलतान के अफसर जमीन का रेकॉर्ड बहुत सावधानी से संभालते थे। सल्तनत के लिए लगान तय करने और वसूलने का काम कुछ पुराने सामंतों और भूस्वामियों को दिया जाता था। उस जमाने में तीन तरह के कर थे। खेती से हुई उपज का 50 प्रतिशत कर के रूप में वसूला जाता था। इसके अलावा मवेशियों और घर पर कर वसूला जाता था।
उपमहाद्वीप का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली सल्तनत के शासन से बाहर ही था। दिल्ली से दूर के राज्यों, जैसे बंगाल पर नियंत्रण रखना मुश्किल था। जब दक्षिण भारत पर जीत हासिल हुई तो पूरा का पूरा बंगाल स्वतंत्र हो गया था। गंगा के मैदान के जंगल वाले इलाके उनकी पहुँच से दूर थे। उन इलाकों पर स्थानीय सामंतों का शासन था। अलाउद्दीन खलजी और मुहम्मद तुगलक ने कभी कभार थोड़े समय के लिए इन इलाकों पर कब्जा किया था।