निर्धनता
भारत में के विभिन्न क्षेत्रों में गरीबी
भारत के अलग-अलग राज्यों में गरीबी का स्तर अलग-अलग है। भारत में 22% लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। बिहार में 33.7% और ओडिसा में 32.6% लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। केरल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, आदि राज्यों में यह प्रतिशत राष्ट्रीय स्तर से कम है। केरल में केवल 7% लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं।
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकॉनोमिक रिसर्च की 2009 की रिपोर्ट के अनुसार कुछ रोचक तथ्य सामने आये हैं। भारत के 220 मिलियन घरों में से 15.6% या 35 मिलियन की वार्षिक आय 45,000 रु से कम है। लगभग 80 मिलियन घरों की वार्षिक कमाई 45,000 से 90,000 रु है। लगभग 48% घरों की वार्षिक आय 90,000 रु से अधिक है।
विश्व में निर्धनता
पूरी दुनिया में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात 1990 के 36% से गिर कर 2015 में 10% रह गया। चीन में निर्धनों की संख्या 1981 के 88.3% से गिर कर 2008 में 14.7% हो गई। दक्षिण एशिया के अन्य देशों (भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान) में भी गरीबों की संख्या तेजी से गिरी है और 2005 के 34% से यह 2013 में 16.2% हो गई है।
सब-सहारा अफ्रीका में निर्धनता 2005 के 51% से घटकर 2015 में 41% हो गई। लैटिन अमेरिका में निर्धनता 2005 के 10% से घटकर 2015 में 4% हो गई। संयुक्त राष्ट्र के नये सतत विकास का लक्ष्य है कि 2030 तक सभी प्रकार की गरीबी समाप्त हो जायेगी।
गरीबी के कारण
- ब्रिटिश राज की नीतियाँ भारत की अर्थव्यवस्था के अनुकूल नहीं थीं। इसलिए पारंपरिक हस्तशिल्प का ह्रास हुआ और आधुनिक उद्योगों का नाममात्र विकास हो पाया। आजादी के समय की प्रचंड गरीबी का यह एक मुख्य कारण माना जाता है।
- 1980 के दशक तक वृद्धि दर काफी कम रही। साथ में जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण गरीबों की संख्या में काफी इजाफा हुआ।
- हरित क्रांति से कृषि के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई लेकिन यह भारत के कुछ भागों तक ही सीमित रहा, जैसे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश।
- द्वितीयक क्षेत्रक में रोजगार के अवसरों का उचित मात्रा में सृजन नहीं हो पाया। इससे गाँव से पलायन करने वालों को अकुशल श्रमिकों के रूप में काम करने को बाध्य होना पड़ा।
- भारत में गरीबी का एक और मुख्य कारण है आय में असमानता। भूमि-सुधार के कई प्रयासों के बावजूद आज भी भारत के मुट्ठी भर लोगों के पास अधिकतर जमीन है और किसानों का एक बड़ा तबका भूमिहीन है।
- गरीबी के लिए यहाँ के कई सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी जिम्मेदार हैं। एक आम भारतीय को शादी विवाह और अन्य अनुष्ठानों में बहुत खर्च करना पड़ता है। इससे लोगों की बचत पर बुरा असर पड़ता है।
गरीबी दूर करने के उपाय
भारत में निर्धनता दूर करने के उपाय दो लक्ष्यों पर काम करते हैं: आर्थिक संवृद्धि और लक्षित गरीबी-उन्मूलन।
1980 के दशक तक भारत की अर्थव्यवस्था 3.5% की दर से बढ़ी थी। लेकिन 1980 और 1990 के दशकों में भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक थी। इस दौरान यहाँ की वृद्धि दर 6% रही। आर्थिक संवृद्धि की ऊँची दर के कारण रोजगार के अवसर बढ़े और लोगों की आय भी बढ़ी।
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
मनरेगा (महात्मा गांधी रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी स्कीम): यह कार्यक्रम 2005 में शुरु हुआ और इसका मूल नाम था नरेगा। इस कार्यक्रम के तहत, गाँव के हर घर के एक आदमी को एक वर्ष में कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी दी गई। शर्त यह है कि वह व्यक्ति अकुशल श्रमिक के तौर पर काम करने को तैयार हो। यदि 15 दिनों के भीतर उस व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलता है उसके बदले में उसे बेरोजगारी भत्ता दिया जायेगा। राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना को भी मनरेगा में शामिल कर दिया गया है। इसके अलावा कई अन्य योजनाएँ हैं, जिनमें से कुछ के नाम नीचे दिये गये हैं।
- प्रधानमंत्री रोजगार योजना 1993
- ग्रामीण रोजगार सृजन 1995
- स्वर्णजयंती ग्राम रोजगार योजना 1999
इन सभी कार्यक्रमों के स्थान पर अब केवल मनरेगा पर ही काम हो रहा है। मनरेगा की मदद से न केवल गरीबी को कम करना संभव हुआ है बल्कि गाँवों से पलायन भी काफी हद तक रुका है।