जलवायु
मौसम: एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को मौसम कहते हैं।
जलवायु: एक विशाल क्षेत्र में लंबे समयकाल में मौसम की अवस्थाओं और विविधताओं के कुल योग को जलवायु कहते हैं।
मौसम तथा जलवायु के तत्व: तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता तथा वर्षण।
जलवायवी नियंत्रण
किसी भी क्षेत्र की जलवायु को छ: कारक नियंत्रित करते हैं: अक्षांश, तुंगता (ऊँचाई), वायु दाब एवं पवन तंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण।
अक्षांश
विभिन्न अक्षांशों पर मिलने वाली सौर ऊर्जा विभिन्न होती है। विषुवत वृत्त के आसपास सबसे अधिक सौर ऊर्जा मिलती है, जबकि ध्रुवों पर सबसे कम। इसलिए विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर बढ़ने पर तापमान सामान्यत: घटता जाता है।
ऊँचाई
जैसे जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊँचाई की ओर जाते हैं तो वायुमंडल की सघनता कम हो जाती है, जिससे तापमान घट जाता है। इसलिए मैदानों की तुलना में पहाड़ियों का तापमान कम होता है।
वायु दाब एवं पवन तंत्र
किसी भी क्षेत्र का वायु दाब एवं पवन तंत्र उस क्षेत्र के अक्षांश तथा ऊँचाई पर निर्भर करता है। वायु दाब एवं पवन तंत्र तापमान और वर्षा के वितरण को प्रभावित करता है।
समुद्र से दूरी
जलवायु पर समुद्र का समकारी प्रभाव पड़ता है। इसलिए समुद्र के नजदीक वाले स्थानों पर मौसम एक समान रहता है। समुद्र से जितना दूर जाते हैं मौसम असमान होने लगता है। इसलिए चेन्नई का मौसम सालों भर एक समान रहता है जबकि दिल्ली के मौसम में एक वर्ष में कई उतार चढ़ाव आते हैं। मौसम की इस विषमता को महाद्वीपीय अवस्था कहते हैं।
महासागरीय धाराएँ
ये धाराएँ समुद्र से तट की ओर चलने वाली हवाओं के साथ तटीय क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित करती हैं। जैसे किसी तटीय क्षेत्र के पास यदि गर्म जलधारा बहती है और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर हो वह तटीय क्षेत्र गर्म हो जाता है। इसी तरह किसी तटीय क्षेत्र के पास यदि ठंडी जलधारा बहती है और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर हो तो वह तटीय क्षेत्र ठंडा हो जाएगा।
उच्चावच
ऊँचे पर्वत ठंडी या गर्म वायु को अवरोधित करते हैं। यदि वर्षा लाने वाली वायु किसी ऊँचे पर्वत से टकराती है तो उस क्षेत्र में वर्षा होती है। पर्वतों के पवनविमुख ढ़ाल अपेक्षाकृत सूखे रहते हैं। ऐसे क्षेत्र को वर्षा छाया क्षेत्र कहते हैं।
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
अक्षांश
कर्क रेखा भारत के लगभग बीचोबीच से गुजरती है। कर्क वृत्त के दक्षिण में स्थित भाग उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र है। कर्क वृत्त के उत्तर में स्थित भाग उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र है। इसलिए भारत में उष्ण कटिबंधीय जलवायु और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ देखने को मिलती हैं।
ऊँचाई
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत है जिसकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर है। दूसरी ओर, भारत के विशाल तटीय क्षेत्र की अधिकतम ऊँचाई 30 मीटर है। हिमालय मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करने से रोकता है। इसलिए मध्य एशिया की तुलना में भारत में कम ठंड पड़ती है।
वायु दाब एवं पवन
भारत की मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमंडलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं:
- वायु दाब एवं धरातलीय पवनें
- ऊपरी वायु परिसंचरण
- पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
व्यापारिक पवन
भारत उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवनों वाले क्षेत्र में स्थित है। ये पवनें उत्तरी गोलार्ध के उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती हैं। ये पवनें दक्षिण की ओर बहती हैं और कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं। स्थलीय भागों पर उत्पन्न होने के कारण इन पवनों में सामान्यत: नमी की बहुत कम मात्रा होती है। इसलिए इन पवनों के द्वारा वर्षा कम या नहीं होती है। इस तरह भारत को शुष्क क्षेत्र होना चाहिए, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।
कोरिआलिस बल: पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न होने वाले आभासी बल को कोरिआलिस बल कहते हैं। कोरिआलिस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इसे फेरेल का नियम कहते हैं।
भारत का वायु दाब एवं पवन तंत्र अद्वितीय है। सर्दी के मौसम में हिमालय के उत्तर में उच्च दाब होता है। इसलिए इस क्षेत्र की ठंडी एवं शुष्क हवाएँ दक्षिण में निम्न दाब वाले महासागरीय क्षेत्र के ऊपर बहती हैं।
गर्मी के मौसम में आंतरिक एशिया एवं उत्तर पूर्वी भारत के ऊपर निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है। इसलिए गर्मियों में वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण पूर्व दिशा में बहते हुए विषुवत वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बहने लगती है। इन पवनों को दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवन कहते हैं। ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हुई नमी ग्रहण करती हैं तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं।
इस इलाके में ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है। इस प्रवाह का एक मुख्य घटक जेट धारा है। जेट धाराएँ 27° से 30° उत्तर अक्षांशों के बीच स्थित होती हैं, इसलिए इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ कहा जाता है।
जेट धारा
क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई (12,000 मीटर से अधिक) पर एक संकरी पट्टी में बहने वाली हवाओं को जेट धारा कहते हैं। गर्मी में इनकी गति 110 किमी प्रति घंटा और सर्दी में 184 किमी प्रति घंटा होती है।
भारत में ये जेट धाराएँ गर्मी के मौसम को छोड़कर पूरे वर्ष हिमालय के दक्षिण में बहती हैं। इन धाराओं के कारण भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं। गर्मी के मौसम में सूर्य की आभासी गति के साथ ही उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धारा हिमालय के उत्तर में चली जाती है। (सूर्य की आभासी गति का मतलब है सूर्य का उत्तरायण से दक्षिणायन होना या फिर दक्षिणायन से उत्तरायन होना) एक पूर्वी जेट धारा (जिसे उपोष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट धारा कहते हैं) गर्मी के महीनों में प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर लगभग 14° उत्तरी अक्षांश में बहती है।