9 समाज शास्त्र

ऋतुएँ

भारत में मुख्यत: चार ऋतुएँ होती हैं: शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और मानसून के आगमन और वापसी का काल।

शीत ऋतु

उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवंबर से फरवरी तक रहती है। देश के उत्तरी भागों दिसंबर और जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर तापमान घटता जाता है। पूर्वी तट पर चेन्नई का औसत तापमान 24° सेल्सियस से 25° सेल्सियस के बीच रहता है। दूसरी ओर, उत्तरी मैदान में औसत तापमान 10° सेल्सियस से 15° सेल्सियस के बीच रहता है। उत्तर में तुषारापात सामान्य है और हिमालय के उपरी ढ़ालों पर हिमपात होता है।

शीत ऋतु में, देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें बहती हैं। ये पवनें स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं, इसलिए देश के अधिकतर भाग में मौसम शुष्क होता है। तमिलनाडु में ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं, इसलिए तमिलनाडु के तट पर कुछ मात्रा में वर्षा होती है।

भारत के उत्तरी भाग में, कमजोर उच्च दाब का एक क्षेत्र बन जाता है, जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं। उच्चावच से प्रभावित होकर यह पवन पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती है। इस मौसम में आसमान साफ, तापमान तथा आर्द्रता कम एवं पवनें शिथिल तथा परिवर्तित होती हैं।

शीत ऋतु में विशेष लक्षण है उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह। यह एक कम दाब वाली प्रणाली है जो भूमध्यसागर और पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है। इस चक्रवाती विक्षोभ के कारण शीत ऋतु में मैदानों में वर्षा होती है और पर्वतों पर हिमपात होता है। इस वर्षा को स्थानीय तौर पर ‘महावट’ कहते हैं।

ग्रीष्म ऋतु

भारत में मार्च से मई तक ग्रीष्म ऋतु होती है। मार्च में दक्कन के पठार का उच्च तापमान लगभग 38° सेल्सियस होता है। अप्रैल में मध्य प्रदेश एवं गुजरात का तापमान लगभग 42° सेल्सियस होता है। मई में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों का तापमान लगभग 45° सेल्सियस रहता है। लेकिन प्रायद्वीपीय भारत में समुद्र के प्रभाव के कारण तापमान कम रहता है।

तापमान में वृद्धि के साथ देश के उत्तरी भाग में वायु दाब में कमी आती है। मई के अंत में उत्तर-पश्चिम में थार के रेगिस्तन से लेकर पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व में पटना तथा छोटानागपुर पठार तक कम दाब का एक लंबवत क्षेत्र बन जाता है। इस गर्त के चारों ओर पवन का परिसंचरण शुरु होता है।

लू: ग्रीष्म ऋतु में भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में दिन के समय चलने वाली गर्म एवं शुष्क पवनों को लू कहते हैं। उत्तरी भारत में मई के महीने में धूल भरी आँधियाँ भी आती हैं। ये आँधियाँ तापमान को कम कर देती हैं और अपने साथ ठंडे समीर एवं हल्की वर्षा लाती है। कभी-कभी तेज हवाओं के साथ गरज वाली मूसलाधार वर्षा भी होती है, जिसके साथ अक्सर हिम वृष्टि भी होती है।

कर्नाटक और केरल में अक्सर ग्रीष्म ऋतु के अंत में पूर्व-मानसूनी वर्षा होती है। इसके कारण आम जल्दी पक जाते हैं और इसलिए इसे ‘आम्र वर्षा’ भी कहते हैं।

वर्षा ऋतु या मानसून का आगमन

जून की शुरुआत में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तेज हो जाती है। इससे दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवनें आकर्षित होती हैं। ये पवनें अपने साथ अत्यधिक मात्रा में नमी लाती हैं। सुदूर उत्तर-पूर्वी भाग को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में ये मानसूनी पवनें लगभग 1 महीने में पहुँच जाती हैं।

वर्षा ऋतु की शुरुआत में पश्चिमी घाट के पवनमुखी भाग में भारी वर्षा होती है। दक्कन का पठार और मध्य प्रदेश के कुछ भाग में भी वर्षा होती है, हालाँकि ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं।

मानसून की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर-पूर्वी भागों में होती है। पूर्वी भागों में अधिक वर्षा होती है। जैसे-जैसे गंगा के मैदान में पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, वर्षा की मात्रा घटती जाती है। राजस्थान तथा गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।

वर्षा में विराम: मानसूनी वर्षा एक साथ कुछ दिनों के लिए होती है। उसके बाद कुछ दिनों का वर्षा रहित अंतराल आता है। यह मानसूनी गर्त की गति के कारण होता है। मानसूनी गर्त और इसका अक्ष उत्तर और दक्षिण की ओर खिसकता रहता है। जब मानसूनी गर्त का अक्ष उत्तरी मैदानों के ऊपर होता है तो मैदानों में भारी वर्षा होती है। जब यह गर्त उत्तर में पर्वतों की ओर चला जाता है तो मैदान में वर्षा नहीं होती है बल्कि पहाड़ों में होती है।

मानसूनी वर्षा की मात्रा एवं समय को उष्ण कटिबंधीय निम्न दाब की तीव्रता एवं आवृत्ति भी प्रभावित करती है। यह निम्न दाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनता है और मुख्य स्थलीय भाग को पार कर जाता है।

मानसून की वापसी

अक्तूबर-नवंबर के दौरान सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण मानसून गर्त उत्तरी मैदानों के ऊपर शिथिल हो जाता है। धीरे-धीरे उच्च दाब प्रणाली इसका स्थान ले लेती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून शिथिल हो जाता है और धीरे-धीरे पीछे हटने लगता है।

अक्तूबर और नवंबर के महीने में आसमान साफ रहता है और तापमान बढ़ जाता है। स्थल अभी भी आर्द्र रहता है। उच्च तापमान एवं आर्द्रता के कारण दिन का मौसम असह्य हो जाता है। इसे सामान्यत: ‘क्वार की उमस’ कहते हैं।

नवंबर की शुरुआत में उत्तर-पश्चिम भारत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर स्थानांतरित हो जाती है। यह अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होने वाले चक्रवाती निम्न दाब के कारण होता है। ये चक्रवात भारत के पूर्वी तट को पार करते हैं जिनसे भारी वर्षा होती है। ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अक्सर विनाशकारी होते हैं। इसका असर अक्सर गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों पर पड़ता है। कभी-कभी यह चक्रवात उड़ीसा, पश्चिम बंगार और बांग्लादेश के तटीय इलाकों तक भी पहुँच जाता है।

वर्षा का वितरण

पश्चिमी तट के भागों और उत्तर-पूर्वी भारत में लगभग 400 सेमी वार्षिक वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी राजस्थान तथा इससे सटे पंजाब, हरियाण और गुजरात के हिस्सों में 60 सेमी से भी कम वर्षा होती है।

दक्षिणी पठार के आंतरिक भागों और सहयाद्री के पूर्व में कम वर्षा होती है। जम्मू-कश्मीर के लेह में बहुत कम वर्षा होती है। देश के शेष हिस्सों वर्षा मध्यम मात्रा में होती है। हिमपात केवल हिमालय के क्षेत्रों तक सीमित होता है।

मानसून: एकता का परिचायक

मानसून के आते ही भारत में कृषि की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है। आज भी भारत की आधे से अधिक आबादी अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। इसके अलावा कृषि के कारण ही हर भारतीय को प्रचुर मात्रा में भोजन मिल पाता है। इसलिए भारत के त्योहार, यहाँ की संस्कृति, कृषि-चक्र और यहाँ के जीव और वनस्पति पर मानसून का गहरा असर है। इसलिए मानसून को भारत की एकता का परिचायक माना जाता है।