9 समाज शास्त्र

मानव संसाधन

जो लोग किसी न किसी आर्थिक क्रिया में लगे रहते हैं वे सभी मानव संसाधन कहलाते हैं। जिस तरह से निर्माण का काम देश की जीडीपी में योगदान करता है उसी तरह से मानव पूँजी भी (उत्पादन में योगदान करके) देश की जीडीपी में योगदान करती है। मानव पूँजी के दखल के बिना अन्य सभी संसाधन बेकार साबित होते हैं।

मानव पूँजी निर्माण

मानव पूँजी में निवेश करने से वैसा ही लाभ मिलता है जैसा किसी अन्य संसाधन में निवेश करने से। शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवाओं के द्वारा मानव पूँजी में निवेश किया जाता है। आमतौर पर एक शिक्षित आदमी किसी अशिक्षित आदमी के मुकाबले अधिक कमाता है। इसी तरह से, किसी अस्वस्थ आदमी के मुकाबले एक स्वस्थ आदमी बेहतर ढ़ंग से काम कर पायेगा और उसकी उत्पादकता भी बेहतर होगी।

शिक्षित और अशिक्षित माता पिता में अंतर

शिक्षित माता-पिता को शिक्षा का महत्व पता होता है। इसलिए वे अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के उद्देश्य से उनकी शिक्षा में निवेश करते हैं। शिक्षित माता-पिता अपने बच्चों के स्वास्थ्य का भी विशेष ध्यान रखते हैं। इससे बेहतर मानव पूँजी बनाने का एक अंतहीन चक्र शुरु हो जाता है।

अशिक्षित माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश नहीं कर पाते हैं। इससे एक ऐसा अंतहीन चक्र शुरु हो जाता है कि आने वाली कई पीढ़ियाँ गरीब रह जाती हैं।

आर्थिक क्रिया

क्षेत्रक के अनुसार, आर्थिक क्रियाओं के तीन प्रकार होते हैं: प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक।

  1. प्राथमिक क्रियाएँ: जो आर्थिक क्रियाएँ कृषि, मुर्गी पालन, मछली पालन, वानिकी, पशुपालन, खनन, उत्खनन, आदि से संबंधित होती हैं उन्हें प्राथमिक क्रिया कहते हैं। प्राथमिक क्रियाओं में प्राकृतिक संसाधनों को केवल निकाला जाता है और उनमें ना के बराबर बदलाव लाया जाता है।
  2. द्वितीयक क्रियाएँ: विनिर्माण से जुड़ी क्रियाओं को द्वितीयक क्रिया कहते हैं। द्वितीयक क्रियाओं में प्राकृतिक संसाधनों का पूरी तरह से रूपांतरण किया जाता है।
  3. तृतीयक क्रियाएँ: जो क्रियाएँ प्राथमिक और द्वितीयक क्रियाओं का समर्थन करती हैं उन्हें तृतीयक क्रिया कहते हैं। बैंकिंग, ट्रांसपोर्ट, वित्त, दूर-संचार, आदि तृतीयक क्रियाओं के उदाहरण हैं।

उत्पादन के लक्ष्य के आधार पर आर्थिक क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं: बाजार क्रिया और गैर-बाजार क्रिया।

  1. बाजार क्रिया: जब किसी उत्पाद या सेवा को बेचने के उद्देश्य से बनाया जाता है, तो इसे बाजार क्रिया कहते हैं।
  2. गैर-बाजार क्रिया: जब किसी उत्पाद या सेवा को खुद के उपभोग के लिए बनाया जाता है तो इसे गैर-बाजार क्रिया कहते हैं। जब कोई किसान मंडी में बेचने के उद्देश्य से धान उगाता है तो वह बाजार क्रिया करता है। लेकिन जब वही किसान अपने परिवार के भोजन के लिए अनाज उगाता है तो वह गैर-बाजार क्रिया करता है।

जनसंख्या की गुणवत्ता

साक्षरता, स्वास्थ्य और कुशलता से जनसंख्या की गुणवत्ता का पता चलता है। अशिक्षित और अस्वस्थ लोग किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व या भार बन जाते हैं। शिक्षित और स्वस्थ व्यक्ति अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति बन जाता है। एक शिक्षित और स्वस्थ जनसंख्या देश की जीडीपी में अपना योगदान देती है।

शिक्षा

शिक्षा से किसी भी आदमी की साक्षरता और कुशलता बढ़ जाती है। शिक्षा से समाज की संस्कृति भी उन्नत होती है। किसी समाज में शिक्षित लोगों के रहने से परोक्ष रूप से अशिक्षित लोगों का भी लाभ होता है।

सरकार ने लोगों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए कई कदम उठाए हैं। सरकार ने शिक्षा को हर व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए अथक प्रयास किये हैं। स्कूलों में छात्र ठहरें और अपनी शिक्षा जारी रखें, इसके लिए भी कई काम किये जा रहे हैं। लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

पहली पंचवर्षीय योजना में शिक्षा का बजट 151 करोड़ रुपए था। दसवीं योजना में यह बढ़कर 43,825 करोड़ रुपए हो गया। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में यह राशि 3767 करोड़ रु थी। 1950-51 में शिक्षा पर जीडीपी का 0.64% खर्च हुआ था, जो कि 2002-03 में 3.98% हो गया। 2015-16 में यह 3% और 2017-18 में 2.7% है।

लगातार कोशिशों के कारण भारत में साक्षरता दर 1951 के 18% से बढ़कर 2011 में 70% से अधिक हो गई। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में साक्षरता दर अधिक है। केरल में 90% से अधिक साक्षरता है, जबकि कई राज्यों में हालत बहुत ही खराब है।

देश के दूर दराज के इलाकों तक शिक्षा पहुँचाने के उद्देश्य से सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान को शुरु किया है। इस अभियान में 6 से 14 वर्ष की आयु के हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा दी जाएगी।

सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन भी दिया जाता है ताकि गरीब तबके के बच्चे स्कूल आ सकें। इससे गरीब तबके के कई बच्चों को स्कूल जाने का अवसर मिला है।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना में उच्च शिक्षा में 18 से 23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में 2017-18 तक 25.2% की वृद्धि करने का लक्ष्य है। इसे 2020-21 तक 30% करने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई पहलुओं पर काम किया जा रहा है, जैसे कि पहुँच में वृद्धि, गुणवत्ता, राज्यों के लिए विशेष पाठ्यक्रम, व्यावसायीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी का जाल बिछाना, आदि।

वर्षमहाविद्यालयविश्वाविद्यालयछात्रशिक्षक
1950-5175030263,00024,000
1990-9173461774,925,000272,000
1998-99110892387,417,000342,000
2010-113302352318,670,050816,966
2016-1742,33879529,427,1581,470,190

SOURCE: UGC annual report 2016-17