खाद्य सुरक्षा
हरित क्रांति का प्रभाव
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत में हरित क्रांति की शुरुआत हुई। 1970 के दशक में हरित क्रांति के शुरु होने से आज तक एक बार भी अकाल नहीं पड़ा है जबकि इस बीच कई वर्ष ऐसे बीते हैं जब मौसम प्रतिकूल था। खाद्द्यान्न का उत्पादन 1960-61 के 70 मिलियन टन से बढ़कर 2015-16 में 252 मिलियन टन हो गया। 2016-17 में 275 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ।
बफर स्टॉक
भारतीय खाद्य निगम (एफ सी आई) द्वारा खरीदे गये खाद्यान्न (गेहूँ और चावल) के स्टॉक को बफर स्टॉक कहते हैं। जिन राज्यों में अधिशेष उत्पादन होता है वहाँ से एफ सी आई गेहूँ और चावल खरीदता है। इसके लिए समय समय पर सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम एस पी) निर्धारित किया जाता है। बफर स्टॉक के कुछ हिस्से को कम कीमत पर गरीबों को खाद्यान्न दिया जाता है। इस कीमत को निर्गत कीमत कहते हैं। गरीबों तक सस्ते दर पर अनाज पहुँचाने के लिए जन वितरण प्रणाली (पी डी एस) का सहारा लिया जाता है। बाकी के बफर स्टॉक को सुरक्षित रखा जाता है ताकि किसी आपदा में काम आए।
जन वितरण प्रणाली
यह प्रणाली लाखों दुकानों से मिलकर बनी है जिन्हें उचित मूल्य की दुकान या राशन की दुकान कहते हैं। इन दुकानों से लोगों को खाद्यान्न, चीनी और मिट्टी का तेल सस्ते दामों पर बेचा जाता है। यदि कोई परिवार राशन की दुकान से सामान खरीदना चाहता है तो इसके लिए उसे एक राशन कार्ड बनवाना पड़ता है। आमतौर पर एक राशन कार्ड पर महीने में 35 किलो अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल और 5 किलो चीनी मिलती है। लेकिन वस्तु की लिस्ट और मात्रा राज्यों के हिसाब से बदल भी सकती है।
राशन की दुकानों की शुरुआत भारत में बंगाल के अकाल से निबटने के लिए हुई थी। इस सिस्टम को 1960 के दशक में फिर से जिंदा किया गया। उसके बाद 1970 के दशक में खाद्य असुरक्षा से निबटने के लिए तीन महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरु किए गये।
- जन वितरण प्रणाली: इस सिस्टम को और भी मजबूत किया गया ताकि अधिक से अधिक जरूरतमंद लोगों तक खाद्यान्न पहुँचाया जा सके।
- एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (आई सी डी एस): गरीब बच्चों को उचित पोषण प्रदान करने के उद्देश्य से इस सेवा को शुरु किया गया।
- काम के बदले अनाज (एफ एफ डब्ल्यू): इस कार्यक्रम को शुरु किया गया ताकि गरीब लोग काम के बदले कुछ कमा भी सकें।
इनके अलावा समय समय पर खाद्यान्न असुरक्षा से निबटने के लिए गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरु किए जाते हैं। सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन स्कीम शुरु की गई ताकि गरीब बच्चों को ताजा पका हुआ भोजन मिल सके।
पी डी एस की वर्तमान स्थिति
अभी पूरे देश में लगभग 5.5 लाख राशन की दुकाने हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ी वितरण प्रणाली है।
पी डी एस के महत्वपूर्ण तथ्य
योजना का नाम | आरंभ का वर्ष | लक्षित समूह | अद्यतन मात्रा | निर्गत कीमत (रु प्रति कि) |
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली | 1992 तक | सर्वजनिन | गेहूँ (2.34), चावल (2.89) | |
संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली | 1992 | पिछड़े ब्लॉक | 20 कि अनाज | गेहूँ (2.80), चावल (3.77) |
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली | 1997 | निर्धन और गैर-निर्धन ए.पी.एल बी.पी.एल | 35 कि अनाज | बीपीएल: गे (2.50), चा (3.50) एपीएल: गे (4.50), चा (7.00) |
अंत्योदय अन्न योजना | 2000 | निर्धनों में सबसे निर्धन | 35 कि अनाज | गे (2.0), चा (3.00) |
अन्नपूर्णा योजना | 2000 | दीन वरिष्ठ नागरिक | 10 कि अनाज | मुफ्त |
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम | 2013 | योग्य परिवार | 5 कि प्रति व्यक्ति प्रति माह | गे (2.00), चा (3.00), अनाज (1.00) |
गरीबों की मदद करने में पी डी एस काफी कारगर साबित हुआ है। लेकिन खराब प्रबंधन और भ्रष्टाचार के कई मामले देखने को मिल जाते हैं। कई लोगों की शिकायत रहती है कि एपीएल और बीपीएल के अलग हो जाने के बाद से एपील कार्डधारी शायद ही राशन की दुकानों से सामान खरीदते हैं क्योंकि बाजार भाव से खास अंतर नहीं रहता है। ऐसे में राशन की दुकानवाला अक्सर उस अनाज को खुले बाजार में बेच देता है और फिर राशन की दुकानों में घटिया क्वालिटी के अनाज बेचता है। कई दुकानदार दुकान खोलने में नियमित नहीं होते हैं जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
बफर स्टॉक की स्थिति
2002 की जुलाई में एफसीआई के पास खाद्यान्न का 63 मिलियन टन स्टॉक था जो कि निर्धारित स्टॉक (23.4 मिलियन टन) से बहुत अधिक था। जब 2002-03 में सूखा पड़ा था तो राहत देने के क्रम में एफसीआई का स्टॉक कुछ हद तक खाली हुआ। बफर स्टॉक का अधिक होना एक अच्छी बात है लेकिन इससे कई समस्याएँ भी उठ खड़ी हुई है। एफसीआई के गोदामों में अनाज या तो सड़ जाता है या फिर उन्हें चूहे खा जाते हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य से समस्या
गेहूँ और धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने से कई समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज बेचने के उद्देश्य से अधिकतर किसान अब गेहूँ और धान उगाने पर अधिक ध्यान देते हैं। इससे मोटे अनाजों (ज्वार, बाजरा, मक्का) की कमी होने लगी है। धान और गेहूँ कि खेती में गहन सिंचाई की जरूरत पड़ती है, जिसके कारण भौम जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है।
कई राज्यों में सहकारी समितियों ने पीडीएस से बेहतर काम किया है। तमिलनाडु में 94% राशन की दुकानें सहकारी समितियों द्वारा चलाई जा रही हैं। महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस ने अनाज बैंकों की स्थापना में गैर-सरकारी संगठनों की सहायता की है जिससे गरीबों को लाभ मिल रहा है। दिल्ली में मदर डेयरी की दुकानों के द्वारा लोगों तक फल, सब्जियाँ और दूध सस्ते दरों पर पहुँचाया जा रहा है। गुजरात का अमूल, दूध और दूध उत्पादों को घर घर पहुँचाने में सहकारी समिति का एक सफल उदाहरण है।