फ्रांसीसी क्रांति
क्रांति की शुरुआत
टैक्स बढ़ाने के प्रस्ताव को पास कराने के लिए लुई 16 ने इस्टेट जेनरल की एसेंबली बुलाई। 5 मई 1789 के दिन कुल 1200 प्रतिनिधि एक आलीशान भवन में एसेंबली के लिए इकट्ठे हुए। इनमें पहले और दूसरे इस्टेट से तीन तीन सौ प्रतिनिधि थे और तीसरे इस्टेट के 600 प्रतिनिधि थे। पहले और दूसरे इस्टेट के प्रतिनिधि दो कतारों में बैठे थे और उनके पीछे तीसरे इस्टेट के प्रतिनिधियों को खड़ा किया गया था। किसानों और मजदूरों को एसेंबली में जाने की अनुमति नहीं थी, लेकिन उनकी शिकायतों को लेकर 40000 चिट्ठियाँ तीसरे इस्टेट के प्रतिनिधियों द्वारा लाई गई थीं।
उस समय के नियम के अनुसार हर इस्टेट का एक वोट था, यानि राजा आसानी से बिल पास करा लेता। लेकिन तीसरे इस्टेट के प्रतिनिधियों का कहना था कि हर प्रतिनिधि का एक वोट हो और फिर वोटिंग कराई जाये। लुई 16 ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके विरोध में तीसरे इस्टेट के प्रतिनिधि उस सभा से बाहर चले गये।
20 जून को तीसरे इस्टेट के प्रतिनिधि वर्साय के एक टेनिस कोर्ट में जमा हुए और अपनी एक नेशनल एसेंबली की घोषणा कर दी। उन लोगों ने कहा कि जब तक एक नया संविधान तैयार नहीं होगा वे वहाँ से नहीं हटेंगे। संविधान लिखने का काम मिराब्यो और आबे सिये के नेतृत्व में होना था। मिराब्यो एक कुलीन परिवार के थे और आबे सिये एक पादरी थे। लेकिन वे दोनों भी जन्म के आधार पर मिलने वाले विशेषाधिकारों के खिलाफ थे।
उस साल घोर सर्दी के कारण फसल तबाह हो गई थी, जिससे पावरोटी की कीमत बढ़ गई थी। मुनाफाखोरों ने पावरोटी की जमाखोरी भी शुरु कर दी थी। एक दिन काफी देर तक कतार में खड़े रहने के बाद महिलाओं ने एक बेकरी पर धावा बोल दिया था। विरोध को कुचलने के लिए पेरिस में सेना बुला ली गई थी। उसके विरोध में भीड़ ने 14 जुलाई को बास्तील पर धावा बोला और उसे नेस्तनाबूद कर दिया।
उसी समय एक अफवाह फैल गई कि सेना को आदेश दिया गया है कि फसल को बरबाद कर दे। आतंकित होकर किसानों ने गाँव में किलों (chateaux) पर हमला कर दिया और अनाज को लूट लिया। लगान संबंधी फाइलों को जला दिया गया। उस आंदोलन में कई लोग मारे गये। अपनी जान बचाने के लिए पहले और दूसरे इस्टेट के कई लोग पड़ोसी देशों में भाग गये।
आखिरकार लुई 16 ने अपनी हार मान ली और नेशनल एसेंबली को मान्यता देने को तैयार हो गया। 4 अगस्त 1789 को टैक्स, सामंती व्यवस्था और कुलीन तथा पादरी वर्ग के विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया गया और चर्च की जमीन को जब्त कर लिया गया। इससे सरकार को 2 बिलियन लिव्रे की संपत्ति हासिल हो गई।
संवैधानिक राजतंत्र
संविधान का मसौदा 1791 में पूरा हो गया। अब सत्ता को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बाँट दिया गया। इस तरह से फ्रांस एक संवैधानिक राजतंत्र बन गया।
संविधान के अनुसार नागरिकों के दो प्रकार थे: सक्रिय नागरिक और निष्क्रिय नागरिक। जो लोग कम से कम 3 दिन का वेतन टैक्स के रूप में अदा करते थे उन्हें सक्रिय नागरिक की श्रेणी में रखा गया और बाकी को निष्क्रिय नागरिक की श्रेणी में रखा गया। 25 वर्ष से अधिक आयु वाले सक्रिय नागरिकों को वोट देने का अधिकार मिला लेकिन महिलाओं को इस अधिकार से वंचित रखा गया।
सक्रिय नागरिकों को निर्वाचकों का चुनाव करना था। उसके बाद निर्वाचकों को अपने जैसे निर्वाचकों में से नेशनल एसेंबली और न्यायपालिका का चुनाव करना था। राजा और मंत्रियों पर नेशनल एसेंबली का नियंत्रण था लेकिन राजा के पास मंत्रियों को चुनने का अधिकार था और वीटो पावर भी था। जो व्यक्ति उच्च करदाता की श्रेणी में था वही निर्वाचक और नेशनल एसेंबली का सदस्य बन सकता था।
पुरुष और नागरिक अधिकार घोषणापत्र
जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार, समानता का अधिकार, आदि को नैसर्गिक और अहरणीय अधिकार का दर्जा दिया गया। अब इन अधिकारों की रक्षा का दायित्व राज्य के पास था। उस समय फ्रांस के अधिकतर लोग अशिक्षित थे। इसलिए इन अधिकारों को समझाने के लिए प्रतीकों का सहारा लिया गया ताकि अनपढ़ व्यक्ति भी उन्हें आसानी से समझ सके।
राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना
फ्रांस में जो कुछ हो रहा था उससे आस पास के देशों के राजा डरे हुए थे। लुई 16 पड़ोसी राजाओं से सांठ गांठ कर रहा था ताकि लोगों को दबा सके और अपनी खोई हुई सत्ता पा सके। लेकिन 1972 के अप्रैल महीने में नेशनल एसेंबली ने प्रशिया और ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
उस युद्ध में हजारों स्वयंसेवी सेना में भर्ती हो गये। युद्ध के लिए रवाना होते समय वे रॉजेट दी लाइल द्वारा लिखी कविता मार्सिले को गाते थे, जिसका नाम बाद में मार्सिलेस हो गया। यही गीत आज फ्रांस का राष्ट्रगान है।
युद्ध में फ्रांस को भारी नुकसान हुआ जिससे लोगों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कई लोगों को लगता था कि 1791 के संविधान ने केवल अमीर लोगों को सत्ता दी थी। इसलिए लोग राजनैतिक क्लबों का गठन करने लगे जहाँ सरकार की नीतियों और एक नई तरह की शासन व्यवस्था पर चर्चाएँ होती थीं। इनमें जैकोबिन क्लब सबसे सफल क्लब था जिसका नाम सेंट जैकब के कंवेंट पर पड़ा था। जैकोबिन के नेता का नाम था मैक्समिलियन रॉबेस्पेयर।
जैकोबिन में समाज के हर वर्ग के लोग थे, जैसे कि महिलाएँ, छोटे किसान, मजदूर, दस्तकार, आदि। जैकोबिन के सदस्यों ने गोदी मजदूरों की तरह धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय लिया ताकि वे फैशनेबल लोगों से अलग दिख सकें। उस समय के फैशनपरस्त लोग घुटने तक के ब्रीचेस (घुटन्नी) पहनते थे। जैकोबिन के लोग एक लाल टोपी भी पहनते थे जिसे आजादी का प्रतीक माना जाता था। जैकोबिनों को सौं कुलौत (बिना घुटन्ने वाले) के नाम से जाना जाने लगा। लेकिन महिलाओं को जैकोबिन की खास पोशाक पहनने की अनुमति नहीं थी।
1792 की गर्मियों में जैकोबिन के लोगों ने ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोला और राजा को कई घंटो के लिए बंदी बनाए रखा। इस आक्रमण में राजा के अधिकतर गार्ड मारे गये थे।
उसके बाद चुनाव हुए और एक नई एसेंबली का गठन हुआ जिसका नाम रखा गया कंवेंशन। उस चुनाव में 21 वर्ष से अधिक आयु वाले हर पुरुष को वोट देने का अधिकार मिला। 21 सितंबर 1792 को राजतंत्र को समाप्त कर दिया गया और फ्रांस को एक गणतंत्र घोषित कर दिया गया। उसके बाद लुई 16 और उसकी पत्नी मैरि एंतोनिएत पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। उसके बाद उन्हें प्लेस डी ला कॉन्कॉर्ड में भरी भीड़ के सामने मौत के घाट उतार दिया गया।