9 समाज शास्त्र

अक्तूबर क्रांति

लेनिन को डर हो रहा था कि अंतरिम सरकार तानाशाही न लागू कर दे। 15 अक्तूबर 1917 को लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी के नेताओं को सोशलिस्ट द्वारा सत्ता कब्जा करने के लिए मना लिया। तख्तापलट को अंजाम देने के लिए लियॉन त्रोत्सकी के नेतृत्व में एक मिलिट्री रिवोल्यूशनरी कमिटी का गठन हुआ।

24 अक्तूबर को विद्रोह शुरु हुआ। प्रधान मंत्री केरेंसकी मौके की नजाकत भांपते हुए शहर से बाहर चले गये ताकि सेना को बुला सकें। सुबह सुबह सरकार के वफादार सैनिकों ने बोल्शेविक अखबारों के दो भवनों पर कब्जा कर लिया। फिर टेलिफोन और टेलीग्राफ ऑफिस तथा विंटर पैलेस पर कब्जा करने के लिए सैनिकों को भेजा गया।

उधर मिलिट्री रिवोल्यूशनरी कमिटी भी हरकत में आ गई और अपने समर्थकों को सरकारी दफ्तरों पर कब्जा करने और मंत्रियों को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। उसी दिन बाद में, ऑरोरा नामक युद्धपोत से विंटर पैलेस पर बमबारी की गई। नेवा नदी में कई अन्य युद्धपोत आ गये और कई ठिकानों पर तैनात हो गये। रात होते होते शहर पर कमिटी का नियंत्रण था और मंत्रियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। पेत्रोग्राद में ऑल रसियन कॉन्ग्रेस ऑफ सोवियत की बैठक में बोल्शेविक की इस कार्यवाही को बहुमत से पास कर दिया गया। दिसंबर आते आते बोल्शेविक ने मॉस्को-पेत्रोग्राद क्षेत्र पर भी कब्जा कर लिया।

अक्तूबर के बाद

  • 1917 के नवंबर में अधिकतर उद्योगों और बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो गया। सरकार ने उनका स्वामित्व और मैनेजमेंट अपने हाथ में ले लिया।
  • जमीन को समाज की संपत्ति घोषित कर दिया गया। किसानों को सामंतों की जमीन पर कब्जा करने की इजाजत मिल गई।
  • शहरों के बड़े घरों को परिवार के अनुसार कई हिस्सों में बाँट दिया गया।
  • अभिजात वर्ग की पुरानी पदवियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • सेना और ऑफिसर के यूनिफॉर्म के डिजाइन के लिए 1918 में एक प्रतियोगिता आयोजित हुई।

बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर रसियन कम्यूनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) कर दिया गया। 1917 के नवंबर में कॉन्स्टिच्युएंट एसेंबली के लिए चुनाव हुए। इस चुनाव में वोलशेविक को बहुमत नहीं मिला। 1918 की जनवरी में एसेंबली ने बोल्शेविक के प्रस्तावों को खारिज कर दिया और फिर लेनिन ने एसेंबली भंग कर दी। लेनिन को लगता था कि एसेंबली की तुलना में ऑल रसियन कॉन्ग्रेस अधिक लोकतांत्रिक थी क्योंकि चुनाव विषम परिस्थितियों में हुए थे।

अपने राजनैतिक सहयोगियों के विरोध के बावजूद बोल्शेविक ने 1918 के मार्च में जर्मनी के साथ समझौता कर लिया। समय बीतने के साथ ऑल रसियन कॉन्ग्रेस ऑफ सोवियत के चुनावों में भाग लेने वाली अकेली पार्टी रह गई वोलशेविक। फिर ऑल रसियन कॉन्ग्रेस ऑफ सोवियत ही देश का पार्लियामेंट बन गई।

रूस एक पार्टी वाला देश बन गया। ट्रेड यूनियन को पार्टी के नियंत्रण में रखा गया। जो वोलशेविक की आलोचना करते थे उन्हें सेक्रेट पुलिस सजा देती थी। बोल्शेविक द्वारा लगाये गये सेंसरशिप के कारण कई लेखक और कलाकार (जो पहले इसी पार्टी के समर्थन में थे) अब निराश हो चुके थे।

गृह युद्ध

जब बोल्शेविक ने जमीन के पुनर्वितरण का आदेश दिया तो रूस की सेना बिखरने लगी। अधिकतर सैनिक खेतिहर पृष्ठभूमि से आते थे और इसलिए जमीन पाने के लिए अपने घर जाना चाहते थे।

गैर-बोल्शेविक , लिबरल और अभिजात वर्ग के समर्थक अब बोल्शेविक के विरोध में खड़े होने लगे थे। उनके नेता दक्षिणी रूस चले गये थे। वहाँ उन्होंने बोल्शेविक से लड़ने के लिए सेना (रेड्स) तैयार की।

1918 और 1919 के दौरान रूसी साम्राज्य के अधिकांश हिस्सों पर सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी (ग्रींस) और जार-समर्थकों (व्हाइट्स) का नियंत्रण था। उन्हें फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन और जापान की सेनाओं का समर्थन मिला हुआ था। इन शक्तियों को रूस में समाजवाद के बढ़ते प्रभाव से चिंता हो रही थी। इसलिए इन शक्तियों और बोल्शेविक के बीच गृह युद्ध छिड़ गया।

व्हाइट्स में निजी संपत्ति के समर्थकों ने उन किसानों के खिलाफ कड़े कदम उठाये जिन्होंने जमीन हथिया ली थी। लेकिन इससे गैर-बोलशेविकों का जनाधार कम होने लगा।

1920 की जनवरी तक बोल्शेविक ने रूसी साम्राज्य के अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण बना लिया। उन्हें गैर-रुसी नागरिकों और मुस्लिम जादीदियों के समर्थन के कारण यह सफलता मिल पाई।

लेकिन जब रूसी उपनिवेशवादी बोल्शेविक के अनुयायी बन गये तो यह समर्थन काम नहीं आया। मध्य एशिया में स्थित खीवा में बोल्शेविक उपनिवेशवादियों ने समाजवाद की रक्षा के नाम पर स्थानीय राष्ट्रवादियों का नरसंहार कर दिया। इससे स्थिति बहुत खराब हो गई।

1922 के दिसंबर में रूसी साम्राज्य में से सोवियत संघ (USSR) का गठन हुआ। रूसी उपनिवेशवादियों के अत्याचार से बचाने के लिए अधिकतर गैर-रूसी राष्ट्रों को राजनैतिक स्वायत्तता दे दी गई। लेकिन बोल्शेविक की कई गलत नीतियों के कारण विभिन्न राष्ट्रीयताओं का विश्वास जीतने की कोशिशें पूरी तरह सफल नहीं हो पाईं।

समाजवादी समाज का निर्माण

नियोजित अर्थव्यवस्था

बोल्शेविक ने केंद्रीय योजना की शुरुआत की। अधिकारियों द्वारा अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए पंच वर्षीय योजनाएँ बनाई गईं। पहली दो योजनाओं (1927-32 और 1933-38) का लक्ष्य था औद्योगिक विकास। इस दौरान औद्योगिक उत्पादन बढ़ा और कई औद्योगिक शहरों का जन्म हुआ।

लेकिन तेजी से निर्माण होने से मजदूरों की हालत खराब हो गई। मजदूरों के क्वार्टर बेतरतीब ढ़ंग से बनाये गये और उनकी सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया गया। कई बार शौचालय और अन्य सुविधाओं को क्वार्टर से हट कर सड़क के दूसरे किनारे पर बनाया जाता था। इससे कड़ाके की सर्दी में जीवन कठिन हो जाता था।

मजदूरों के बच्चों के लिये स्कूल खोले गये और मजदूरों और किसानों को भी आगे की शिक्षा की सुविधा दी गई। महिला मजदूरों की सहूलियत के लिए बालवाड़ियाँ बनाई गईं। सरकार द्वारा सस्ती स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई गई।

स्तालिनवाद और सामूहिकीकरण

नियोजित अर्थव्यवस्था के शुरुआती वर्ष कृषि के सामूहिकीकरण की तबाही का कारण माने जाते हैं। 1927-28 में शहरों में अनाज की सप्लाई की विकट समस्या थी। सरकार ने कीमत निर्धारित कर दी थी लेकिन उन कीमतों पर किसान सरकारी खरीददारों को बेचने से इंकार करते थे।

यह वह दौर था जब पार्टी की कमान स्तालिन के हाथों में थी। उसने कई कठोर कदम उठाए। पार्टी के सदस्यों को 1928 में उन क्षेत्रों में भेजा गया जहाँ अनाज का उत्पादन होता था। वे अनाज के संग्रह की निगराणी करते थे और जरूरत पड़ने पर जबरदस्ती भी करते थे। कुलक (धनी किसान) पर छापे मारे गये। लेकिन इन उपायों से भी अनाज की समस्या समाप्त नहीं हुई।

उसके बाद स्तालिन ने सामूहिकीकरण शुरु किया। 1919 के बाद हर किसान को कोलखोज (सामूहिक खेत) पर खेती करने के लिए बाध्य किया गया। सामूहिक खेतों को जमीन और उपकरणों का स्वामित्व दे दिया गया।

गुस्साये किसानों ने इसका विरोध किया और अपने मवेशियों को मारने लगे। जो सामूहिकीकरण का विरोध करता उसे कड़ी सजा दी जाती थी। कई लोगों को निर्वासन या देशनिकाला दे दिया गया। लेकिन जब विरोध बढ़ने लगा तो कुछ किसानों को अपने खेतों पर काम करने की अनुमति मिल गई लेकिन सरकार उन्हें कोई भी समर्थन नहीं देती थी।

लेकिन सामूहिकीकरण का सही परिणाम नहीं मिला। 1930-33 में फसल खराब होने के कारण रूस के इतिहास का सबसे भयंकर अकाल पड़ा जिसमें 40 लाख से अधिक लोग मारे गये।

पार्टी में जो स्तालिन की नीतियों की आलोचना करता था उसपर समाजवाद के खिलाफ षडयंत्र का आरोप लगता था। 1939 तक 20 लाख से अधिक लोग या तो जेल में थे या लेबर कैंप में। कई लोगों से जबरदस्ती झूठे बयान लिखवाये गये और उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।

रूसी क्रांति का वैश्विक प्रभाव

पूरी दुनिया में मजदूरों की सरकार की कल्पना से बहुत लोग प्रभावित थे। लेकिन यूरोप की अधिकतर समाजवादी पार्टियाँ रूस की नीतियों का खुलकर समर्थन नहीं करती थीं। कई देशों में कम्यूनिस्ट पार्टियाँ बनी थीं। जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरु हुआ तब तक USSR को दुनिया में समाजवाद का पर्याय समझा जाने लगा।

1950 के दशक तक देश में कई लोग अब यह मानने लगे थे रूस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। हालाँकि USSR एक औद्योगिक शक्ति बन चुका था लेकिन लोगों को मूलभूत स्वतंत्रता नहीं मिल रही थी। कई देशों में समाजवाद के सिद्धांतों को अपनाया गया लेकिन हर जगह उसकी अपनी अलग व्याख्या थी।