इंडो चीन का राष्ट्रवाद
उपनिवेशी शिक्षा पद्धति की दुविधा:
अन्य यूरोपियन शक्तियों की तरह फ्रांस भी अपनी ‘आधुनिक’ संस्कृति को वियतनाम के लोगों पर थोपना चाहता था। उनका मानना था कि वियतनामियों को सुधारने के लिये यह आवश्यक था। फ्रांसीसी लोग स्थानीय लोगों को इसलिये भी शिक्षित करना चाहते थे ताकि क्लर्की करने के लिये उन्हें श्रमिक मिल सकें। लेकिन वे अच्छी शिक्षा देने से बचते रहे। उन्हें डर था कि अच्छी शिक्षा से लोगों में जागृति आ जायेगी जिससे उपनिवेशी शासकों के लिये खतरा पैदा हो जायेगा।
आधुनिक होने का मतलब
वियतनाम के संभ्रांत लोगों पर चीनी संस्कृति का गहरा प्रभाव था। इस प्रभाव को कम करना फ्रांसीसियों के लिये महत्वपूर्ण था। पुरानी शिक्षा पद्धति को योजनाबद्ध तरीके से तहस नहस किया गया और उसकी जगह नई शिक्षा पद्धति को जमाने की कोशिश की गई। लेकिन संभ्रांत लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीनी भाषा को उखाड़ फेंकना बहुत मुश्किल साबित हो रहा था।
कुछ फ्रांसीसी नीति निर्माता चाहते थे कि पढ़ाई का मीडियम फ्रेंच हो। वे एक ऐसा एशियाई फ्रांस बनाना चाहते थे जिसके तार यूरोप के फ्रांस से मजबूती से जुड़े हों।
कुछ अन्य विचारकों को लगता था कि निचली क्लासों में वियतनामी भाषा पढ़ाई जाये और उँचे क्लासों में फ्रेंच भाषा पढ़ाई जाये। जो कोई भी फ्रेंच भाषा और फ्रेंच संस्कृति में महारत हासिल कर लेता था उसके लिए फ्रांस की नागरिकता का भी प्रावधान रखा गया।
लेकिन फ्रेंच क्लास की फाइनल परीक्षा में छात्रों को जानबूझकर फेल कर दिया जाता था। ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि स्थानीय लोग अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों के लिए आगे न आ पाएँ। स्कूल की किताबों में फ्रेंच संस्कृति का गुणगान किया जाता था और उपनिवेशी शासन को उचित बताया जाता था। इन किताबों में वियतनामियों को पिछड़ा दिखाया जाता था।
फ्रांसीसियों के मुताबिक आधुनिक होने का मतलब था पश्चिमी संस्कृति की नकल करना। वियतनामी लोग लंबे बाल रखते थे जबकी छोटे बालों को बढ़ावा दिया जाता था।
स्कूलों में विरोध
लेकिन स्कूलों में इन बातों का विरोध होता था। शिक्षक और छात्र सिलेबस में लिखी बातों को पूरी तरह नहीं मानते थे। कुछ विरोध खुले तौर पर होते थे तो कुछ चुपचाप। जब निचली क्लासों में वियतनामी शिक्षकों की संख्या बढ़ गई तो इसपर नियंत्रण रखना संभव नहीं रह गया कि वास्तव में क्या पढ़ाय जा रहा था।
वियतनाम में राष्ट्रवाद की भावना को जन्म देने के लिए स्कूलों ने अहम भूमिका निभाई। 1920 का दशक आते-आते छात्रों ने राजनैतिक पार्टियाँ बनानी शुरु कर दी और राष्ट्रवादी पत्रिकाएँ भी निकालने लगे। यंग अन्नन पार्टी (एक राजनैतिक पार्टी) और अन्ननीज स्टूडेंट (एक पत्रिका) इसके कुछ उदाहरण हैं।
फ्रेंच शिक्षा और संस्कृति का थोपा जाना उल्टा पड़ने लगा था क्योंकि वियतनाम के बुद्धिजीवी इसे अपनी संस्कृति के लिए खतरा मानते थे।
साफ सफाई और बीमारियाँ
हनोई शहर के निर्माण में आधुनिक इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर का इस्तेमाल हुआ था। उपनिवेशी शासकों के लिये सुंदर शहर बनाया गया था जहाँ चौड़ी-चौड़ी सड़कें और नालियाँ थीं। लेकिन स्वच्छता के मिसाल के तौर पर जो नालियाँ बनीं थीं उनमें चूहों की जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी। इसके परिणामस्वरूप हनोई में प्लेग की महामारी फैल गई।
चूहों का शिकार
प्लेग की रोकथाम के लिये 1902 में चूहों को पकड़ने की स्कीम शुरु की गई। इस काम के लिये वियतनाम के मजदूरों को लगाया गया और प्रति चूहे की दर से उन्हें पैसे मिलते थे। लोगों ने हजारों की संख्या में चूहे पकड़ने शुरु किये। चूहा मारने के सबूत के तौर पर चूहे की पूँछ को दिखाना होता था और मेहनताना मिल जाता था। कई लोगों ने इस मौके का फायदा उठाया। लोग चूहों की दुम काटने लगे और पैसे कमाने लगे। कई लोगों ने तो चूहों को पालना शुरु कर दिया ताकि अच्छी कमाई कर सकें। इस घटना से यह पता चलता है कि कुछ परिस्थितियों में बहुत ताकतवर लोग भी असहाय हो जाते हैं और कमजोर लोग मजबूत स्थिति में आ जाते हैं।