एक ग्लोबल विश्व
इस अध्याय की मुख्य बाते:
- उपनिवेशों का विस्तार
- बीमारी और फतह
- उन्नीसवीं सदी में वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण
- पहले विश्व युद्ध का प्रभाव
- बड़े पैमाने पर उत्पादन
- आर्थिक मंदी
- भारतीय व्यवसायी और अंतर्राष्ट्रीय बाजार
- दूसरे विश्व युद्ध के बाद की स्थिति
- बेटन वुड्स इंस्टिच्यूशन
- आधुनिक भूमंडलीकरण
ऐसा सदियों से होता आया है कि व्यापार के कारण विचारों और संस्कृति का आदान प्रदान हुआ है। इस आदान प्रदान के कारण दुनिया के विभिन्न देश आपस में जुड़े हुए हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता के युग में भी विभिन्न देशों के बीच आपसी संपर्क हुआ करता था। ये और बात है कि आधुनिक युग में यह संपर्क तेजी से बढ़ा है।
सिल्क रूट
- जो व्यापार मार्ग चीन को पश्चिमी देशों और अन्य देशों से जोड़ता था उसे सिल्क रूट कहते हैं। उस जमाने में कई सिल्क रूट थे। सिल्क रूट ईसा युग की शुरुआत के पहले से ही अस्तित्व में था और पंद्रहवीं सदी तक बरकरार था।
- सिल्क रूट से होकर चीन के बर्तन दूसरे देशों तक जाते थे। इसी प्रकार यूरोप से एशिया तक सोना और चाँदी इसी सिल्क रूट से आते थे।
- सिल्क रूट के रास्ते ही ईसाई, इस्लाम और बौद्ध धर्म दुनिया के विभिन्न भागों में पहुँच पाए थे।
भोजन की यात्रा
व्यापार के कारण एक देश का भोजन दूसरे देश तक पहुँचा है। इसको समझने के लिये नूडल का उदाहरण लेते हैं। यह चीन की देन है जो आज पूरी दुनिया में विभिन्न रूपों में इस्तेमाल होता है। भारत में यह सेवियों के रूप में इस्तेमाल होता है तो इटली में स्पैगेटी के रूप में।
आज आलू, टमाटर, मिर्च, सोया, मक्का, मूंगफली और शकरकंद पूरी दुनिया में आम खाद्य पदार्थ की तरह इस्तेमाल किये जाते हैं। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि ये पदार्थ यूरोप में तब आये जब क्रिस्टोफर कोलंबस ने गलती से अमेरिकी महाद्वीपों को खोजा था।
आलू ने यूरोप के लोगों का जीवन ही बदल दिया। आलू ने यूरोप के लोगों को एक ऐसा विकल्प दिया कि वे बेहतर खाना खा सकें और अधिक दिन तक जी सकें। आयरलैंड में आलू पर निर्भरता इतनी बढ़ चुकी थी कि जब 1840 के दशक में किसी बीमारी से आलू की फसल तबाह हो गई तो कई लाख लोग भूख से मर गये। उस अकाल को आइरिस अकाल के नाम से जाना जाता है।
बीमारी, व्यापार और फतह
सोलहवीं सदी में यूरोप के नाविकों ने एशिया और अमेरिका के देशों के लिए समुद्री मार्ग खोज लिया था। नए समुद्री मार्ग की खोज ने न सिर्फ व्यापार को फैलाने में मदद की बल्कि विश्व के अन्य भागों में यूरोप की फतह की नींव भी रखी।
अमेरिका के पास खनिजों का अकूत भंडार था और यहाँ अनाज भी प्रचुर मात्रा में था। अमेरिका के अनाज और खनिजों ने दुनिया के अन्य भाग के लोगों का जीवन पूरी तरह से बदल दिया।
सोलहवीं सदी के मध्य तक पुर्तगाल और स्पेन द्वारा अमेरिकी उपनिवेशों की अहम शुरुआत हो चुकी थी। लेकिन यूरोपियन की यह जीत किसी हथियार के कारण नहीं बल्कि एक बीमारी के कारण संभव हो पाई थी। चेचक की बीमारी ने यूरोप के लोगों पर पहले ही आक्रमण किया था। इसलिये यूरोप के लोगों के शरीर में इस बीमारी के खिलाफ प्रतिरोधन क्षमता विकसित हो चुकी थी। लेकिन तब तक अमेरिका दुनिया के अन्य भागों से अलग थलग था। इसलिये अमेरिकी लोगों के शरीर में चेचक से लड़ने के लिये प्रतिरोधन क्षमता विकसित नहीं हुई थी। जब यूरोप के लोग अमेरिका पहुँचे तो वे अपने साथ चेचक के जीवाणु भी ले गये। इससे अमेरिका के लोगों में चेचक की बीमारी फैलने लगी। इस बीमारी ने अमेरिका के कुछ भागों की पूरी आबादी साफ कर दी। इस तरह से यूरोपियन लोगों को अमेरिका पर आसानी से जीत हासिल हो गई।
उन्नीसवीं सदी तक यूरोप में कई समस्याएँ थीं; जैसे गरीबी, बीमारी और धार्मिक टकराव। धर्म के खिलाफ बोलने वाले कई लोग सजा के डर से अमेरिका भाग गए थे। उन्होंने अमेरिका में मिलने वाले अवसरों का भरपूर इस्तेमाल किया और इससे उनकी काफी तरक्की हुई।
अठारहवीं सदी तक भारत और चीन दुनिया के सबसे धनी देश हुआ करते थे। लेकिन पंद्रहवीं सदी से ही चीन ने बाहरी संपर्क पर अंकुश लगाना शुरु किया था और दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग थलग हो गया था। चीन के घटते प्रभाव और अमेरिका के बढ़ते प्रभाव के कारण विश्व के व्यापार का केंद्रबिंदु यूरोप की तरफ शिफ्ट कर रहा था।