एक ग्लोबल विश्व
उन्नीसवीं शताब्दी (1815 – 1914)
उन्नीसवीं सदी में दुनिया तेजी से बदल रही थी। इस अवधि में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी के क्षेत्र में बड़े जटिल बदलाव हुए। उन बदलावों की वजह से विभिन्न देशों के रिश्तों के समीकरण में अभूतपूर्व बदलाव आए।
अर्थशास्त्री मानते हैं कि आर्थिक आदान प्रदान तीन प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित हैं:
- व्यापार का आदान प्रदान
- श्रम का आदान प्रदान
- पूँजी का आदान प्रदान
वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण
यूरोप में भोजन के उत्पादन और उपभोग का बदलता स्वरूप: पारंपरिक तौर पर ऐसा देखा गया है कि हर देश भोजन के मामले में आत्मनिर्भर होना चाहता है। लेकिन यूरोप में भोजन के लिये आत्मनिर्भर होने का मतलब था लोगों के लिये घटिया क्वालिटी का भोजन मिलना।
अठारहवीं सदी में यूरोप की जनसंख्या में भारी वृद्धि के कारण भोजन की माँग में भी तेजी से वृद्धि हुई। सरकार को जमींदारों के दबाव के कारण मक्के के आयात पर नियंत्रण लगाना पड़ा। इसके फलस्वरूप ब्रिटेन में भोजन की कीमतें बढ़ गईं। उसके बाद उद्योगपतियों और शहरी लोगों ने सरकार को इस बात के लिये बाध्य किया कि कॉर्न लॉ समाप्त किया जाये।
कॉर्न लॉ हटने के प्रभाव:
कॉर्न लॉ के समाप्त होने से बाहर से सस्ता अनाज ब्रिटेन में आयात होने लगा। ब्रिटेन में उपजाया जाने वाला अनाज महंगा था इसलिये सस्ते आयात के आगे टिक नहीं सकता था।
किसानों ने खेती की जमीन का एक बड़ा हिस्सा खाली छोड़ दिया। लोग भारी संख्या में बेरोजगार हो गये। इसके परिणामस्वरूप गाँवों से भारी संख्या में लोग शहरों की ओर पलायन करने लगे। कई लोग तो रोजगार की तलाश में विदेशों की तरफ भी पलायन कर गये।
दाम गिरने से ब्रिटेन में खाने पीने की चीजों की माँग बढ़ने लगी। औद्योगीकरण के कारण लोगों की आमदनी भी बढ़ने लगी थी। इसलिये ब्रिटेन में अतिरिक्त भोजन आयात करने की जरूरत होने लगी। इस माँग को पूरा करने के लिये पूर्वी यूरोप, अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया में जमीन के एक बड़े हिस्से को साफ किया जाने लगा।
अनाज को खेतों से बंदरगाहों तक सही समय पर पहुँचाना भी जरूरी हो गया था। इसके लिये रेल लाइनें बिछाई गईं और खेतों को बंदरगाहों से जोड़ा गया। खेतों पर काम करने के लिये आसपास नई आबादी बसाने की जरूरत भी महसूस हुई। इन जरूरतों को पूरा करने के लिये लंदन जैसे वित्तीय केंद्रों से इन स्थानों तक पूँजी भी आने लगी।
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में मजदूरों की किल्लत हो रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिये लोग भारी संख्या में पलायन करके वहाँ पहुँचने लगे। उन्नीसवीं सदी में लगभग पाँच करोड़ लोग यूरोप से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पहुँच चुके थे। इस अवधि में पूरी दुनिया के विभिन्न भागों से लगभग 15 करोड़ लोगों का पलायन हुआ था। इस तरह से 1890 का दशक आते-आते कृषि क्षेत्र में एक वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण हो चुका था। इस के साथ श्रम और पूँजी के प्रवाह तथा तकनीकी बदलाव के क्षेत्र में बड़े ही जटिल बदलाव आये।
तकनीक की भूमिका
इस दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण में टेकनॉलोजी ने एक अहम भूमिका निभाई। इस युग के कुछ मुख्य तकनीकी खोज हैं रेलवे, स्टीम शिप और टेलिग्राफ।
- रेलवे ने बंदरगाहों और आंतरिक भूभागों को आपस में जोड़ दिया।
- स्टीम शिप के कारण माल को भारी मात्रा में अतलांतिक के पार ले जाना आसान हो गया।
- टेलीग्राफ की मदद से संचार व्यवस्था में तेजी आई और इससे आर्थिक लेन देन बेहतर रूप से होने लगे।
मीट का व्यापार: मीट का व्यापार इस बात का बहुत अच्छा उदाहरण है कि नई टेक्नॉलोजी से किस तरह आम आदमी का जीवन बेहतर हो जाता है। 1870 के दशक तक जानवरों को जिंदा ही अमेरिका से यूरोप ले जाया जाता था। जिंदा जानवरों को जहाज से ले जाने में कई परेशानियाँ होती थीं। वे ज्यादा जगह लेते थे। कई जानवर रास्ते में बीमार हो जाते थे या मर भी जाते थे। इसके कारण यूरोप के ज्यादातर लोगों के लिए मीट एक विलासिता की वस्तु ही थी।
रेफ्रिजरेशन टेक्नॉलोजी ने तस्वीर बदल दी। अब जानवरों को अमेरिका में हलाल किया जा सकता था और प्रोसेस्ड मीट को यूरोप ले जाया जा सकता था। इससे जहाज में उपलब्ध जगह का बेहतर इस्तेमाल संभव हो पाया। इससे कीमतें गिर गईं और यूरोप में मीट अधिक मात्रा में उपलब्ध होने लगा। अब आम आदमी भी नियमित रूप से मीट खा सकता था।
लोगों का पेट भरा होने के कारण देश में सामाजिक शाँति आ गई। अब ब्रिटेन के लोग अपने देश की उपनिवेशी महात्वाकाँछा को गले उतारने को तैयार लगने लगे।