भारत में राष्ट्रवाद
इस अध्याय की मुख्य बातें:
- सत्याग्रह का मतलब
- असहयोग आंदोलन
- दांडी मार्च
- विभिन्न लोगों के लिए स्वराज के विभिन्न मतलब
- दलितों और मुसलमानों की भागीदारी
प्रथम विश्व युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव: हालांकि भारत प्रत्यक्ष रूप से प्रथम विश्व युद्ध में शामिल नहीं था लेकिन उस युद्ध में इंगलैंड के शामिल होने के कारण भारत पर भी असर पड़ा था। युद्ध के कारण इंगलैंड के रक्षा संबंधी खर्चे में बढ़ोतरी हुई थी। उस खर्चे को पूरा करने के लिये कर्ज लिये गये और टैक्स बढ़ाए गये। अंग्रेजी सरकार ने कस्टम ड्युटी और इनकम टैक्स को बढ़ाया ताकि अतिरिक्त राजस्व संग्रह किया जा सके। युद्ध के दौरान चीजों की कमतें बढ़ गईं। 1913 से 1918 के बीच अधिकतर चीजों के दाम दोगुने हो गये। इससे आम आदमी की मुश्किलें बढ़ गईं। लोगों को जबरन सेना में भर्ती किया गया। इससे ग्रामीण इलाकों में काफी आक्रोश था।
भारत के कई भागों में उपज खराब होने के कारण भोजन की कमी हो गई। इंफ्लूएंजा की महामारी ने समस्या को और गंभीर कर दिया। 1921 की जनगणना के अनुसार, अकाल और महामारी के कारण 120 लाख से 130 लाख तक लोग मारे गए।
सत्याग्रह का अर्थ: महात्मा गांधी ने जनांदोलन का एक नायाब तरीका अपनाया जिसका नाम था सत्याग्रह। सत्याग्रह का सिद्धांत कहता था कि यदि कोई सही मकसद के लिये लड़ाई लड़ रहा हो तो उसे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले से लड़ने के लिये ताकत की जरूरत नहीं होती है। गांधीजी का मानना था कि एक सत्याग्रही अपनी लड़ाई अहिंसा के द्वारा ही जीत सकता है।
गाँधीजी द्वारा आयोजित शुरु के कुछ सत्याग्रह आंदोलन:
- 1916 में चंपारण में किसान आंदोलन।
- 1917 में खेड़ा का किसान आंदोलन।
- 1918 में अहमदाबाद के मिल मजदूरों का आंदोलन।
रॉलैट ऐक्ट (1919):
रॉलैट ऐक्ट को इंपीरियल लेगिस्लेटिव काउंसिल ने 1919 में पारित किया था। भारतीय सदस्यों के विरोध के बावजूद यह ऐक्ट पारित हो गया था। इस ऐक्ट ने सरकार को राजनैतिक गतिविधियों को कुचलने के लिये असीम शक्ति दे दी थी। इस ऐक्ट के मुताबिक बिना ट्रायल के ही राजनैतिक कैदियों को दो साल तक के लिये बंदी बनाया जा सकता था।
रॉलैट ऐक्ट के विरोध में गांधीजी ने 6 अप्रैल 1919 को राष्ट्रव्यापी आंदोलन की शुरुआत की। गांधीजी ने हड़ताल का आह्वान किया जिसे भारी समर्थन मिला। विभिन्न शहरों में लोग इसके समर्थन में निकल पड़े। दुकानें बंद हो गईं और रेल कारखानों के मजदूर हड़ताल पर चले गये। अंग्रेजी हुकूमत ने इस आंदोलन के खिलाफ कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया। कई स्थानीय नेताओं को बंदी बना लिया गया। महात्मा गांधी को दिल्ली में आने से रोका गया।
जलियांवाला बाग:
10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोली चलाई। इससे गुस्साए लोगों ने जगह-जगह पर सरकारी संस्थानों पर आक्रमण किया। अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। अमृतसर की कमान जनरल डायर के हाथों में सौंप दी गई।
13 अप्रैल को पंजाब में बैसाखी का त्योहार मनाया जा रहा था। ग्रामीणों का एक समूह जलियांवाला बाग में लगे एक मेले में शरीक होने आया था। वह बाग चारों तरफ से बंद था और निकलने के रास्ते संकीर्ण थे। जनरल डायर ने निकलने के रास्ते बंद करवा दिये और भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। उस गोलीकांड में सैंकड़ो लोग मारे गये। इससे चारों तरफ हिंसा फैल गई। महात्मा गांधी हिंसा नहीं चाहते थे इसलिये उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया।
आंदोलन के विस्तार की आवश्यकता:
रॉलैट सत्याग्रह मुख्य रूप से शहरों तक ही सीमित था। महात्मा गांधी को महसूस हुआ कि भारत में आंदोलन का विस्तार होना चाहिए। उनको लगता था कि ऐसा तभी संभव था जब हिंदू और मुसलमान एक मंच पर आ जाएँ।
खिलाफत आंदोलन:
खिलाफत के मुद्दे ने गांधीजी एक ऐसा अवसर दिया जिससे हिंदू और मुसलमानों को एक मंच पर लाया जा सकता था। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की कराड़ी हार के बाद ऑटोमन के शासक पर कड़े संधि समझौते की अफवाह फैल चुकी थी। ऑटोमन का शासक मुस्लिम समुदाय का खलीफा भी हुआ करता था। खलीफा को समर्थन देने के लिये बंबई में मार्च 1919 में एक खिलाफत कमेटी बनाई गई। इस कमेटी के नेता थे दो भाई जिनके नाम थे मुहम्मद अली और शौकत अली। उनकी इच्छा थी कि महात्मा गांधी इस मुद्दे पर आंदोलन करें। 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में खिलाफत के समर्थन में और स्वराज के लिये एक अवज्ञा आंदोलन शुरु करने का प्रस्ताव पारित हुआ।