यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
राष्ट्र की कल्पना
कलाकारों ने एक राष्ट्र को दर्शाने के लिए महिला की तस्वीर का इस्तेमाल किया। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकारों ने उदारवाद, न्याय और प्रजातंत्र जैसी अमूर्त भावनाओं को दर्शाने के लिए औरत को एक रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया।
फ्रांस में राष्ट्र को मैरियेन का नाम दिया गया; जो कि इसाइओं में एक लोकप्रिय नाम हुआ करता है। उसके चरित्र चित्रण में उदारवाद और प्रजातंत्र के रुपकों की मदद ली गई; जैसे कि लाल टोपी, तिरंगा, कलगी, आदि। मैरियेन की मूर्तियों को चौराहों पर लगाया गया। उसकी तस्वीरों को सिक्कों और टिकटों पर छापा गया; ताकि लोगों में इसकी पहचान घर कर जाए।
जर्मन राष्ट्र का प्रतीक जर्मेनिया को बनाया गया। जर्मेनिया के सिर पर जैतून के पत्तों का ताज हुआ करता है। जर्मनी में जैतून बहादुरी का प्रतीक माना जाता है।
राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
उन्नीसवीं सदी के अंत आते आते राष्ट्रवाद में उदारवादी और प्रजातांत्रिक भावनाओं की कमी होने लगी। यह एक हथियार बन गया जिससे क्षणिक लक्ष्यों को साधा जाने लगा। यूरोप की मुख्य ताकतों ने लोगों की राष्ट्रवादी भावना का इस्तेमाल अपने साम्राज्यवादी महात्वाकांछाओं को साधने के लिए शुरु कर दिया।
बाल्कन में संकट: बाल्कन ऐसा क्षेत्र था जहाँ भौगोलिक और नस्ली विविधता भरपूर थी। आज के रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, ग्रीस, मैकेडोनिया, क्रोशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टेनीग्रो इसी क्षेत्र में आते थे। इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को मोटे तौर पर स्लाव कहा जाता था।
बाल्कन का एक बड़ा हिस्सा ओटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था। यह वह दौर था जब ओटोमन साम्राज्य बिखर रहा था और बाल्कन में रोमांटिक राष्ट्रवादी भावना बढ़ रही थी। इसलिए यह क्षेत्र ऐसा था जैसे किसी बारूद की ढ़ेर पर बैठा हो। पूरी उन्नीसवीं सदी में ओटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों से अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश की थी। लेकिन इसमे उसे अधिक सफलता नहीं मिली। इसके नियंत्रण में आने वाले यूरोपीय देश एक एक करके इससे अलग होते गए और अपनी आजादी घोषित करते गए। बाल्कन के देशों ने अपने इतिहास और राष्ट्रीय पहचान का हवाला देते हुए अलग होने की घोषणा की। लेकिन जब ये देश अपनी पहचान बनाने और आजादी पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे तब यह क्षेत्र कई गंभीर झगड़ों का अखाड़ा बन चुका था। इस प्रक्रिया में बाल्कन के क्षेत्र में ताकत हथियाने के लिए भी जबरदस्त लड़ाई जारी थी।
उसी दौरान विभिन्न यूरोपियन ताकतों के बीच उपनिवेशों और व्यापार को लेकर कशमकश चल रही थी; और वह झगड़ा नौसेना और सेना की ताकत बनाने लिए भी जारी था। रूस, जर्मनी, इंगलैंड, ऑस्ट्रो-हंगरी; हर शक्ति का लक्ष्य था कि किस तरह से बाल्कन पर नियंत्रण पाया जाए और फिर अन्य क्षेत्रों पर्। इसके कारण कई लड़ाइयाँ हुईं; जिसकी परिणति प्रथम विश्व युद्ध के रूप में हुई।
इस बीच उन्नीसवीं सदी में यूरोपियन शक्तियों के उपनिवेश बने कई देश अब उपनिवेशी ताकतों का विरोध शुरु कर चुके थे। अलग-अलग उपनिवेशों के लोगों ने राष्ट्रवाद की अपनी नई परिभाषा बनाई। इस तरह से ‘राष्ट्र’ का आइडिया एक विश्वव्यापी आइडिया बन गया।