विनिर्माण उद्योग
सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग का मुख्य केंद्र बंगलोर है। इस उद्योग के अन्य मुख्य केंद्र हैं मुम्बई, पुणे, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ और कोयम्बटूर। देश में 18 सॉफ्टवेयर टेक्नॉलोजी पार्क हैं। ये सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा और उच्च डाटा संचार की सुविधा देते है।
इस उद्योग ने भारी संख्या में रोजगार प्रदान किये है। 31 मार्च 2005 तक 10 लाख से अधिक लोग सूचना प्रौद्योगिकी में कार्यरत हैं। हाल के वर्षों में बीपीओ में तेजी से वृद्धि हुई है। इसलिये इस सेक्टर से विदेशी मुद्रा की अच्छी कमाई होती है।
औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरण निम्नीकरण
वायु प्रदूषण: उद्योग में वृद्धि से पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचता है। कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के बढ़ते स्तर के कारण वायु प्रदूषण होता है। वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थों से भी समस्या होती है। कुछ उद्योगों से हानिकारक रसायन के रिसाव का खतरा रहता है; जैसा भोपाल गैस त्रासदी के समय हुआ था। वायु प्रदूषण इंसानों की सेहत, जानवरों, पादपों और भवनों के लिये हानिकारक होता है। इससे पूरे वातावरण पर असर पड़ता है।
जल प्रदूषण: उद्योग से निकलने वाला कार्बनिक और अकार्बनिक कचरा और अपशिष्ट से जल प्रदूषण होता है। जल प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार उद्योग हैं; कागज, लुगदी, रसायन, कपड़ा, डाई, पेट्रोलियम रिफाइनरी, चमड़ा उद्योग, आदि।
जल का तापीय प्रदूषण: जब थर्मल प्लांट से गरम पानी सीधा नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है तो जल का तापीय प्रदूषण होता है। इससे जल में रहने वाले सजीवों को बहुत नुकसान होता है क्योंकि ज्यादातर सजीव एक खास तापमान रेंज में ही जीवित रह सकते हैं।
रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट: परमाणु ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाले अपशिष्ट में रेडियोऐक्टिव पदार्थ होते हैं। इन पदार्थों को सही ढ़ंग से रखने की जरूरत होती है। रेडियोऐक्टिव पदार्थों में हल्की सी भी लीकेज होने से इंसानों और अन्य सजीवों को होने वाले नुकसान दूरगामी होते हैं।
ध्वनि प्रदूषण: कारखानों से ध्वनि प्रदूषण की भी समस्या होती है। ध्वनि प्रदूषण से बेचैनी, उच्च रक्तचाप और बहरापन की समस्या होती है। कारखाने के मशीन, जेनरेटर, इलेक्ट्रिक ड्रिल, आदि से काफी ध्वनि प्रदूषण होता है।
उद्योग द्वारा पर्यावरण को होने वाले नुकसान की रोकथाम:
जल का पुन:चक्रीकरण होना चाहिए। जल के पुन:चक्रीकरण से ताजे पानी के इस्तेमाल को कम किया जा सकता है।
वर्षाजल संग्रहण पर जोर देना चाहिए।
गरम पानी और अपशिष्टों को समुचित उपचार के बाद ही नदियों और तालाबों में छोड़ना चाहिए।