कृषि
भारत में कृषि के प्रकार
प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि:
जिस प्रकार की खेती से केवल इतनी उपज होती हो कि उससे परिवार का पेट भर सके तो उसे प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि कहते हैं। इस प्रकार की खेती जमीन के छोटे टुकड़ों पर की जाती है। इसमें आदिम औजार और परिवार या समुदाय के श्रम का इस्तेमाल होता है। यह मुख्यतया मानसून पर और जमीन की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करती है। इस प्रकार की कृषि में किसी स्थान विशेष की जलवायु के हिसाब से ही किसी फसल का चुनाव किया जाता है।
इसे ‘कर्तन दहन खेती’ भी कहा जाता है। ऐसा करने के लिये सबसे पहले जमीन के किसी टुकड़े की वनस्पति को काटा जाता और फिर उसे जला दिया जाता है। वनस्पति के जलाने से राख बनती है उसे मिट्टी में मिला दिया जाता है। उसके बाद फसल उगाई जाती है।
किसी जमीन के टुकड़े पर दो चार बार खेती करने के बाद उसे परती छोड़ दिया जाता है। उसके बाद एक नई जमीन को खेती के लिये तैयार किया जाता है। इस बीच पहले वाली जमीन को इतना समय मिल जाता है कि प्राकृतिक तरीके से उसकी खोई हुई उर्वरता वापस हो जाती है।
कर्तन दहन खेती के विभिन्न नाम:
नाम | क्षेत्र |
---|---|
झूम | असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड |
पामलू | मणिपुर |
दीपा | बस्तर, अंदमान और निकोबार द्वीप समूह |
बेवर या दहिया | मध्य प्रदेश |
पोडु या पेंडा | आंध्र प्रदेश |
पामा दाबी या कोमन या बरीगाँ | उड़ीसा |
कुमारा | पश्चिमी घाट |
वालरे या वाल्टरे | दक्षिण पूर्व राजस्थान |
खी | हिमालय |
कुरुवा | झारखंड |
मिल्पा | मेक्सिको और मध्य अमेरिका |
कोनुको | वेनेजुएला |
रोका | ब्राजील |
मसोले | मध्य अफ्रिका |
रे | वियतनाम |
गहन जीविका कृषि:
जब कृषि बड़े भूभाग पर होती है और सघन आबादी वाले क्षेत्रों में होती है तो उसे गहन जीविका कृषि कहते हैं। इस प्रकार की कृषि में जैव रासायनिक निवेशों और सिंचाई का अत्यधिक इस्तेमाल होता है।
गहन जीविका कृषि की समस्याएँ: पीढ़ी दर पीढ़ी जमीन का बँटवारा होने लगता है। इससे जमीन का आकार छोटा होता चला जाता है। छोटे आकार के भूखंड से होने वाली पैदावार लाभप्रद नहीं रह जाती है। इसके फलस्वरूप किसानों को रोजगार की तलाश में पलायन करना पड़ता है।
वाणिज्यिक कृषि:
जब खेती का मुख्य उद्देश्य पैदावार की बिक्री करना हो तो उसे वाणिज्यिक कृषि कहते हैं। इस प्रकार की कृषि में आधुनिक साजो सामान का इस्तेमाल होता है। इसमें अधिक पैदावार वाले बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और खरपतवारनाशक का इस्तेमाल होता है। भारत में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक कृषि होती है। इसके अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिल नाडु, आदि में भी इस प्रकार की खेती होती है।
रोपण कृषि: जब किसी एक फसल को एक बड़े क्षेत्र में उपजाया जाता है तो उसे रोपण कृषि कहते हैं। इस प्रकार की कृषि में बड़ी पूंजी और बहुत सारे कामगारों की जरूरत पड़ती है। रोपण कृषि से मिलने वाला उत्पाद अक्सर उद्योग में इस्तेमाल होता है। चाय, कॉफी, रबर, गन्ना, केला, आदि रोपण कृषि के मुख्य फसल हैं। चाय का उत्पादन मुख्य रूप से असम और उत्तरी बंगाल के चाय बागानों में होता है। कॉफी तमिल नाडु में उगाई जाती है। केला बिहार और महाराष्ट्र में उगाया जाता है। रोपण कृषि की सफलता के लिये यातायात और संचार के विकसित माध्यम और अच्छे बाजार की आवश्यकता होती है।
शस्य प्रारूप (CROPPING PATTERN)
भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं; रबी, खरीफ और जायद।
रबी:रबी की फसल जाड़े में उगायी जाती है इसलिये इसे जाड़े की फसल भी कहते हैं। रबी की बुआई अक्तूबर से दिसंबर की बीच होती है। इसकी कटाई अप्रिल से जून के बीच होती है। रबी की मुख्य फसलें हैं गेहूँ, बार्ली, मटर, चना और सरसों। पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश रबी की फसल के मुख्य उत्पादक हैं।
खरीफ:खरीफ की फसल गरमी में उगायी जाती है इसलिये इसे गरमी की फसल भी कहते हैं। खरीफ की बुआई जुलाई में होती है और कटाई सितंबर अक्तूबर में होती है। खरीफ की मुख्य फसलें हैं धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, तुअर, मूंग, उड़द, मूंगफली और सोयाबीं। धान के मुख्य उत्पादक हैं असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा के तटवर्ती इलाके, आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु, केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार। असम, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में एक साल में धान की तीन फसलें उगाई जाती हैं; जिन्हें ऑस, अमन और बोरो कहते हैं।
जायद:जायद का मौसम रबी और खरीफ के बीच आता है। इस में तरबूज, खरबूजा, खीरा, सब्जियाँ और चारे वाली फसलें उगाई जाती हैं। गन्ने को भी इसी मौसम में लगाया जाता है लेकिन उसे पूरी तरह से बढ़ने में एक साल लग जाता है।