जल संसाधन
जल: कुछ रोचक तथ्य:
- पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का 97.5% समुद्र और सागरों में पाया जाता है।
- पूरे जल का लगभग 2.5% ताजे पानी के रूप में उपलब्ध है।
- कुल ताजे पानी का 70% आइसबर्ग और ग्लेशियर में जमी हुई बर्फ के रूप में मौजूद है।
- कुल ताजे पानी का 30% से थोड़ा कम हिस्सा भूमिगत जल के रूप में संचित है।
- पूरे विश्व की कुल वर्षा का 4% हिस्सा भारत में होता है।
- प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष जल की उपलब्धता के मामले में भारत का विश्व में 133 वाँ स्थान है।
- भारत में पुन:चक्रीकरण के लायक जल संसाधन 1,897 वर्ग किमी प्रति वर्ष है।
- ऐसा अनुमान है कि 2025 तक भारत उन क्षेत्रों में शामिल हो जायेगा जहाँ पानी की भारी कमी है।
जल दुर्लभता:
जल की दुर्लभता के मुख्य कारण हैं; जल का अत्यधिक दोहन, अत्यधिक इस्तेमाल और विभिन्न सामाजिक समूहों में असमान वितरण।
जल हमारे जीवन के लिये अत्यंत जरूरी होता है। हमारे दैनिक कामों के अलावा अधिकतर आर्थिक क्रियाओं के लिये भी जल की आवश्यकता होती है। जनसंख्या बढ़ने के साथ साथ जल की मांग भी बढ़ रही है। लेकिन भूमिगत जल का प्राकृतिक तरीके से रिचार्ज अब कई कारणों से बाधित होने लगा है।
हमारे जंगल तेजी से कट रहे हैं। तेजी से होने वाले वनोन्मूलन के कारण भूमिगत जल के प्राकृतिक रिचार्ज में कमी आई है। जमीन के ऊपर कंक्रीट के मकान, कारखाने और सड़कें बनने से जमीन की जल सोखने की क्षमता कम हुई है। इसलिये अब वर्षा के पानी का जमीन के अंदर रिसाव कम हो गया है और भूमिगत जल ठीक से रिचार्ज नहीं हो पा रहा है।
कई स्थानों पर भूमिगत जल इसलिये प्रदूषित हो गया है कि वहाँ पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक इस्तेमाल हुआ है। कई स्थानों पर भूमिगत जल इतना प्रदूषित हो चुका है कि वह अब हमारे इस्तेमाल लायक नहीं बचा है।
नाले का पानी अक्सर बिना सुचारु उपचार किये ही नदियों और तालाबों में बहा दिया जाता है। इससे नदियों और तालाबों का पानी प्रदूषित हो चुका है।
जल संसाधन प्रबंधन
भारत में सदियों से जल संसाधन के समुचित प्रबंधन के लिये तरह तरह की संरचनाएँ बनाई जाती रही हैं। सिंचाई प्रणाली तो मौर्य साम्राज्य से पहले से ही बनने लगी थीं।
आधुनिक भारत में अनेक बहुद्देशीय बांध परियोजनाएँ बनी हैं। इस तरह की परियोजनाएँ कई जरूरतों को पूरा करती हैं। ये पानी के बहाव को काबू में करती हैं और बाढ़ की रोकथाम करती हैं। इन बांधों के पानी को नहरों के तंत्र के द्वारा दूर दराज के गांवों में भेजा जाता है ताकि वहाँ खेतों की सिंचाई हो सके। इनसे पीने के पानी की आपूर्ति भी की जाती है।
लेकिन बड़े बांध बनाने के लिये कई एकड़ जमीन खाली करानी पड़ती है। बांध के बहाव क्षेत्र में आने वाली जमीन का एक बडा हिस्सा डूब जाता है। ऐसे क्षेत्र के लोगों को अपने जमीन से बेदखल होने को बाध्य होना पड़ता है। जमीन के जलमग्न होने से पर्यावरण पर भीषण समस्या आ जाती है। इसलिये कई लोगों ने बांधों के खिलाफ आवाज उठानी शुरु कर दी है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ऐसा ही एक आंदोलन है।
वर्षाजल संग्रहण
वर्षा का अधिकांश जल जमीन में प्रवेश नहीं कर पाता है और बेकार में बह जाता है। इस बरबादी को वर्षाजल संग्रहण के द्वारा रोका जा सकता है। वर्षाजल संग्रहण से जमा हुए जल को भविष्य में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे भूमिगत जल को रिचार्ज करने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। छोटे पैमाने पर छत वर्षाजल संग्रहण भी कारगर साबित होता है।
राजस्थान में टाँका बनाने की पुरानी परंपरा रही है। यह एक भूमिगत टंकी होती है जिसमें वर्षाजल संग्रहण किया जाता है। इस जल को गर्मी के दिनों में इस्तेमाल किया जाता है।