राजनीतिक पार्टी
राजनीतिक दलों के लिये चुनौतियाँ:
आंतरिक लोकतंत्र का अभाव: अधिकांश पार्टियों का नियंत्रण कुछ चुनिंदा लोगों के हाथों में रहता है। पार्टी का साधारण सदस्य शायद ही ऊँचे पदों पर पहुँचने का सपना देख पाता है। शीर्ष नेतृत्व अक्सर जमीनी कार्यकर्ताओं से कटा हुआ रहता है। इसलिए कार्यकर्ता अपनी पार्टी से स्वामिभक्ति करने की बजाय शीर्ष नेतृत्व से स्वामिभक्ति करते हैं।
वंशवाद: कई पार्टियों में शीर्ष नेतृत्व के लोग किसी एक ही परिवार के सदस्य होते हैं। जब पार्टी का उत्तराधिकार जन्म के आधार पर मिलने लगे तो वहाँ लोकतंत्र बेमानी हो जाता है। यह स्थिति केवल भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी है।
पैसा और अपराधी तत्वों का प्रभाव: चुनाव में काँटे की टक्कत होती है और उसे जीतना किसी भी पार्टी के लिये बहुत बड़ी चुनौती होती है। इसके लिये राजनीतिक पार्टी हर तरह के हथकंडे अपनाती है। चुनाव के दौरान पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। मतदाताओं और चुनाव अधिकारियों को डराने धमकाने के लिए आपराधिक तत्वों का सहारा भी लिया जाता है।
विकल्पहीनता: ज्यादातर पार्टियाँ एक दूसरे की कार्बन कॉपी लगती हैं। बहुत कम ही राजनीतिक पार्टी एक सही विकल्प दे पाती हैं। लोगों के पास आगे खाई और पीछे कुआँ वाली स्थिती रहती है और दोनों में से किसी एक को चुनने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाता है। कई राज्यों में तो हर पाँच साल पर सत्ताधारी पार्टी बदल जाती है लेकिन फिर भी लोगों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आ पाता।
राजनीतिक दलों को सुधारने के उपाय:
हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं में सुधार लाने के लिये कुछ उपाय नीचे दिये गये हैं:
दलबदल कानून: इस कानून को राजीव गांधी की सरकार के समय पास किया गया था। इस कानून के मुताबिक यदि कोई विधायक या सांसद पार्टी बदलता है तो उसकी विधानसभा या संसद की सदस्यता समाप्त हो जायेगी। इस कानून से दलबदल को कम करने में काफी मदद मिली है। लेकिन इस कानून ने पार्टी में विरोध का स्वर उठाना मुश्किल कर दिया है। अब सांसद या विधायक को हर वह बात माननी पड़ती है जो पार्टी के नेता का निर्णय होता है।
नामांकण के समय संपत्ति और क्रिमिनल केस का ब्यौरा देना: अब चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के लिये यह अनिवार्य हो गया है कि वह नामांकण के समय एक शपथ पत्र दे जिसमें उसकी संपत्ति और उसपर चलने वाले क्रिमिनल केस का ब्यौरा हो। इससे जनता के पास अब उम्मीदवार के बारे में अधिक जानकारी होती है। लेकिन उम्मीदवार द्वारा दी गई सूचना की सत्यता जाँचने के लिये अभी कोई भी सिस्टम नहीं बना है।
अनिवार्य संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न: चुनाव आयोग ने अब पार्टियों के लिये संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न को अनिवार्य कर दिया है। राजनीतिक पार्टियों ने इसे शुरु कर दिया है लेकिन अभी यह महज औपचारिकता के तौर पर होता है।
भविष्य के लिये सलाह:
राजनीतिक पार्टी के आंतरिक कामकाज को व्यवस्थित करने के लिये एक कानून बनाया जाये।
हर पार्टी के लिये यह अनिवार्य हो कि कुछ टिकट (लगभग एक तिहाई) महिला उम्मीदवारों को दें।
चुनाव का खर्चा सरकार वहन करे। चुनावी खर्चे का वहन करने के लिये सरकार की ओर से पार्टियों को पैसे मिलने चाहिए। कुछ खर्चे सुविधाओं के रूप में दिये जा सकते हैं; जैसे पेट्रोल, कागज, टेलिफोन, आदि। या किसी पार्टी द्वारा पिछले चुनाव में जीते गये वोटों के आधार पर सरकार कैश दे सकती है।
दो अन्य तरीके हैं जिनसे राजनीतिक पार्टियों में सुधार किया जा सकता है। ये तरीके हैं; लोगों का दबाव और लोगों की भागीदारी।