राजनीतिक पार्टी
राजनीतिक पार्टी की जरूरत
लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टी एक अभिन्न अंग होती है। यदि कोई पार्टी न हो तो हर उम्मीदवार एक स्वतंत्र उम्मीदवार होगा। भारत में लोकसभा में कुल 543 सदस्य हैं। यदि हर सदस्य स्वतंत्र रूप से चुनाव जीत कर आयेगा तो स्थिति बड़ी भयावह हो जायेगी। कोई भी दो सदस्य किसी एक मुद्दे पर एक ही तरह से सोचने में असमर्थ होगा। एक सांसद हमेशा अपने चुनावी क्षेत्र के बारे में सोचेगा और राष्ट्र हित को दरकिनार कर देगा। राजनीतिक पार्टी विभिन्न सोच के राजनेताओं को एक मंच पर लाने का काम करती ताकि वे सभी मिलकर किसी भी बड़े मुद्दे पर एक जैसी सोच बना सकें।
आज पूरे विश्व में प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतंत्र को अपनाया गया है। ऐसे लोकतंत्र में नागरिकों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि सरकार चलाते हैं। यथार्थ में यह संभव नहीं है कि हर नागरिक प्रत्यक्ष रूप से सरकार चलाने में योगदान दे पाये। इसी सिस्टम ने राजनीतिक पार्टियों को जन्म दिया है।
कितने राजनीतिक दल
कुछ देशों में एक ही पार्टी होती है, जबकि कुछ देशों में दो पार्टियाँ होती हैं तो कुछ देशों में अनेक पार्टियाँ होती हैं। किसी भी देश में प्रचलित पार्टी सिस्टम के कई ऐतिहासिक और सामाजिक कारण होते हैं। हर तरह के सिस्टम के अपने गुण और दोष होते हैं।
चीन में एकल पार्टी सिस्टम है। लेकिन लोकतंत्र के दृष्टिकोण से यह सही नहीं है क्योंकि एकल पार्टी सिस्टम में लोगों के पास कोई विकल्प नहीं होता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में दो पार्टी सिस्टम है। ऐसे सिस्टम में लोगों के पास विकल्प होता है।
भारत में मल्टी पार्टी सिस्टम है और यहाँ कई राजनीतिक पार्टियाँ हैं। भारत के समाज में भारी विविधता है। इसलिए यहाँ मल्टी पार्टी सिस्टम विकसित हुई है। मल्टी पार्टी सिस्टम में कई खामियाँ लगती हैं। कई बार इससे राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बन जाता है और साल दो साल में ही सरकार बदल जाती है। लेकिन भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में अलग-अलग हितों और मतधारणाओं का सही प्रतिनिधित्व मल्टी पार्टी सिस्टम से ही संभव हो पाता है।
आजादी के बाद के शुरुआती दिनों से लेकर 1977 भारत में केंद्र में केवल कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती थी। 1977 से 1980 के बीच जनता पार्टी की सरकार बनी। उसके बाद 1980 से 1989 तक कांग्रेस की सरकार बनी। फिर दो साल के अंतराल के बाद फिर से 1991 से 1996 तक कांग्रेस की सरकार रही। फिर अगले 8 वर्षों तक गठबंधन की सरकारों का दौर चला। 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस पार्टी की ऐसी सरकार रही जिसमें अन्य पार्टियों का गठबंधन था। 2014 में 18 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और वह अपने दम पर सरकार बना पाई।
राजनैतिक दलों में जन-भागीदारी:
लोगों में एक आम धारणा बैठ गई है कि लोग राजनीतिक पार्टियों के प्रति उदासीन हो गये हैं। लोग राजनीतिक पार्टियों पर भरोसा नहीं करते हैं।
जो सबूत उपलब्ध हैं वो ये बताते हैं कि यह धारणा भारत के लिये कुछ हद तक सही है। पिछले कई दशकों में किये गये सर्वे से प्राप्त सबूतों के आधार पर निम्न बातें सामने आती हैं:
पूरे दक्षिण एशिया मे लोगों का विश्वास राजनीतिक पार्टियों पर से उठ गया है। सर्वे में पूछा गया कि वे राजनीतिक पार्टियों पर ‘एकदम भरोसा नहीं’ या ‘बहुत भरोसा नहीं’ या ‘कुछ भरोसा’ या ‘पूरा भरोसा’ करते हैं। ऐसे लोगों की संख्या अधिक थी जिन्होंने कहा कि वे ‘एकदम भरोसा नहीं’ या ‘बहुत भरोसा नहीं’ करते हैं। जिन्होंने यह कहा कि वे ‘कुछ भरोसा’ या ‘पूरा भरोसा’ करते हैं उनकी संख्या कम थी।
पूरी दुनिया में लोग राजनीतिक दलों पर कम ही भरोसा करते हैं और उन्हें संदेह की दृष्टि से देखते हैं।
लेकिन जब बात लोगों द्वारा राजनीतिक दलों के क्रियाकलापों में भाग लेने की आती है तो स्थिति अलग हो जाती है। कई विकसित देशों की तुलना में भारत में ऐसे लोगों का अनुपात अधिक है जिन्होंने माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं।
पिछले तीन दशकों में ऐसे लोगों का प्रतिशत बढ़ा है जिन्होंने यह माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं।
इस अवधि में ऐसे लोगों का अनुपात भी बढ़ा है जिन्हें ऐसा लगता है कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के करीब हैं।
(Source: SDSA Team, State of Democracy in South Asia, Delhi: Oxford University Press, 2007)