लोकतंत्र की चुनौतियाँ
चुनौती का मतलब:
वैसी समस्या जो महत्वपूर्ण हो, जिसे पार पाया जा सके और जिसमें आगे बढ़ने के अवसर छुपे हुए हों, चुनौती कहलाती है। जब हम किसी चुनौती को जीत लेते हैं तो हम आगे बढ़ पाते हैं।
लोकतंत्र की मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
- आधार तैयार करने की चुनौती
- विस्तार की चुनौती
- लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना
आधार तैयार करने की चुनौती
अभी भी दुनिया के 25% हिस्से में लोकतंत्र नहीं है। ऐसे हिस्सों में लोकतंत्र की चुनौती है वहाँ आधार बनाने की। ऐसे देशों में अलोकतांत्रिक सरकारें हैं। वहाँ से तानाशाही को हटाना होगा और सरकार पर से सेना के नियंत्रण को दूर करना होगा। उसके बाद एक स्वायत्त राष्ट्र की स्थापना करनी होगी जहाँ लोकतांत्रिक सरकार हो। इसे समझने के लिये नेपाल का उदाहरण लिया जा सकता है। नेपाल में अभी हाल तक राजतंत्र का शासन हुआ करता था। लोगों के वर्षों के आंदोलन के फलस्वरूप नेपाल में लोकतंत्र ने राजतंत्र को विस्थापित कर दिया। अभी नेपाल के लिये लोकतंत्र नया है इसलिए वहाँ लोकतंत्र का आधार बनाने की चुनौती है।
विस्तार की चुनौती
जिन देशों में लोकतंत्र वर्षों से मौजूद है वहाँ लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती है। लोकतंत्र के विस्तार का मतलब होता है कि देश के हर क्षेत्र में लोकतांत्रिक सरकार के मूलभूत सिद्धांतो को लागू करना तथा लोकतंत्र के प्रभाव को समाज के हर वर्ग और देश की हर संस्था तक पहुँचाना। लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के कई उदाहरण हो सकते हैं, जैसे कि स्थानीय स्वशाषी निकायों को अधिक शक्ति प्रदान करना, संघ के हर इकाई को संघवाद के प्रभाव में लाना, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा से जोड़ना, आदि।
लोकतंत्र के विस्तार का एक और मतलब यह है कि ऐसे फैसलों कि संख्या कम से कम हो जिन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से परे हटकर लेना पड़े। आज भी हमारे देश में समाज में कई ऐसे वर्ग हैं जो मुख्यधारा से पूरी तरह से जुड़ नहीं पाये हैं। आज भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जो भारत राष्ट्र की मुख्यधारा से कटे हुए हैं। ये सभी चुनौतियाँ लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के उदाहरण हैं।
लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना
हर लोकतंत्र को इस चुनौती का सामना करना पड़ता है। लोकतंत्र की प्रक्रियाओं और संस्थानों को मजबूत करने से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं। लोकतंत्र की प्रक्रियाओं और संस्थानों को मजबूत करने से लोगों को लोकतंत्र से अपनी अपेक्षाओं के बारे में सही जानकारी मिल सकती है। जन साधारण की लोकतंत्र से अपेक्षाएँ अलग-अलग समाज में अलग-अलग तरह की होती हैं।
अस्सी के दशक तक भारत में होने वाले चुनावों में बूथ लूटने और फर्जी मतदान की घटना आम बात हुआ करती थी। नब्बे के दशक की शुरुआत में टी एन शेषण मुख्य चुनाव आयुक्त बने। उन्होंने कई ऐसे क्रांतिकारी कदम उठाए जिनसे राजनितिक दलों में अनुशासन आया और बूथ लूटने की घटनाएँ नगण्य हो गईं। इससे चुनाव आयोग को काफी मजबूती मिली और इसपर लोगों का विश्वास बढ़ गया।
अलग-अलग देश लोकतंत्र की अलग-अलग चुनौतियों का सामना करते हैं। किसी भी देश के समक्ष आने वाली एक खास चुनौती इस बात पर निर्भर करती है कि वह देश लोकतांत्रिक विकास के किस चरण पर है। किसी खास चुनौती से निबटने के तरीके भी अलग-अलग परिस्थितियों में भिन्न हो सकते हैं।