लोकतंत्र और विविधता
समाज में विविधता
किसी भी समाज में विविधता तभी आती है जब उस समाज में विभिन्न आर्थिक तबके, धार्मिक समुदायों, विभिन्न भाषाई समूहों, विभिन्न संस्कृतियों और जातियों के लोग रहते हैं।
भारत देश विविधताओं का एक जीता जागता उदाहरण है। इस देश में दुनिया के लगभग सभी मुख्य धर्मों के अनुयायी रहते हैं। यहाँ हजारों भाषाएँ बोली जाती हैं, अलग-अलग खान पान है, अलग-अलग पोशाक और तरह तरह की संस्कृति दिखाई देती है।
सामाजिक विभाजन और राजनीति:
आपने जीव विज्ञान की कक्षा में डार्विन के क्रमिक विकास के सिद्धांत के बारे में पढ़ा होगा। इस सिद्धांत के अनुसार जो सबसे फिट होता है वही जिंदा रह पाता है। मनुष्यों को अपना जीवन सही तरीके से जीने के लिए आर्थिक रूप से तरक्की करनी होती है। जब कोई व्यक्ति आर्थिक तरक्की कर लेता है तो उसे समाज में ऊँचा स्थान मिल जाता है। हर देश के इतिहास में यह देखने को मिलता है कि आर्थिक रूप से संपन्न समूह ने आर्थिक रूप से कमजोर समूह पर शासन किया है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता था कि संसाधन और शक्ति के स्रोतों पर किसी खास समूह का एकाधिकार कायम हो सके।
सामाजिक विविधता का राजनीति पर परिणाम तीन बातों पर निर्भर करता है, जो निम्नलिखित हैं:
लोग अपनी सामाजिक पहचान को किस रूप में लेते हैं इससे सामाजिक विविधता का राजनीति पर परिणाम तय होता है। यदि किसी खास समूह के लोग अपने को विशिष्ट मानने लगते हैं तो फिर वे सामाजिक विविधता को गले नहीं उतार पाते हैं।
किसी समुदाय की मांगों को राजनेता द्वारा किस तरह से पेश किया जाता है।
यह इस पर भी निर्भर करता है कि किसी समुदाय की मांग पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया होती है। यदि सरकार किसी समुदाय की मांग को उचित तरीके से मान लेती है तो फिर उस समुदाय की राजनीति सबल हो जाती है।
प्राचीन भारत में समाज को कार्य के आधार पर चार समूहों में बाँटा गया था। समय बीतने के साथ इन चार समूहों का स्थान जाति व्यवस्था ने ले लिया। जाति व्यवस्था में जन्म को ही किसी व्यक्ति के कर्म का आधार मान लिया जाता है। कुछ काम ऊँची जाति के लोग ही कर सकते हैं, जबकि कुछ काम केवल नीची जाति के लोगों के लिए तय होते हैं।
आजादी के कुछ वर्षों पहले तक सभी आर्थिक संसाधन ऊँची जाति के लोगों के हाथों में थे। इन लोगों ने नीची जाति के लोगों को दबाकर रखा था ताकि नीची जाति के लोग सामाजिक व्यवस्था में ऊपर न उठ सकें।
अंग्रेजी हुकूमत ने भारत में आधुनिक शिक्षा पद्धति की शुरुआत की थी। आजादी के बाद की सरकारों ने भी शिक्षा को बढ़ावा दिया। इससे पिछड़े वर्गों के लोग भी आधुनिक शिक्षा का लाभ उठाने लगे। मीडिया ने भी समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया।
धीरे-धीरे समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों में जागरूकता फैलने लगी। इसके दूरगामी परिणाम हुए हैं। आज लगभग हर क्षेत्र में नीची जाति के लोगों का प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। आज नीची जाति के लोग ऊँचे पदों पर आसीन दिखते हैं।
आज सरकारी तंत्र में समाज के लगभग हर वर्ग का प्रतिनिधित्व दिखाई देता है। इससे यह पता चलता है कि समाज के हर वर्ग को सत्ता में साझेदारी मिलने लगी है। भारत एक मजबूत लोकतंत्र बनने की दिशा में अग्रसर है।
हासिये पर खड़े लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिये सरकार के प्रयास:
आजादी के बाद संविधान में दो ऐसे अहम प्रावधान किये गये जो भारत को सही दिशा में ले जा सकें।
पहला प्रावधान था देश के हर वयस्क नागरिक को मताधिकार देना। उस जमाने में कई जानकारों ने इस बात की हँसी उड़ाई थी। उनका मानना था कि अशिक्षित लोगों में इतना विवेक नहीं हो सकता कि वे अपने मताधिकार का सही उपयोग कर पाएँ। लेकिन गांधीजी का मानना था कि यदि कोई आदमी इतना विवेकपूर्ण हो सकता है कि अपने परिवार का भरण-पोषण कर ले तो फिर उसमें सरकार चुनने लायक विवेक भी अवश्य ही होगा।
दूसरा प्रावधान था अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण देना ताकि उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। आज एक दलित का बेटा भी आइआईएम और आइआइटी जैसी शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त कर पाता है और भारतीय प्राशासनिक सेवा में कार्य कर पाता है। यह सब आरक्षण के कारण ही संभव हो पाया है।
इसका सही महत्व समझने के लिए हमें विश्व के अन्य देशों के उदाहरणों को देखना होगा। यूरोप के देशों में महिलाओं को मताधिकार मिलने में कई सौ साल लग गये थे। अमेरिका जैसे अति विकसित देश में भी आज तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बन पाई है। बारक ओबामा से पहले तक कोई भी अश्वेत अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं बन पाया था।
हमारे देश में लाखों समस्याओं के बावजूद अल्पसंख्य समुदाय और दलित समुदाय के लोग ऊँचे पदों पर पहुँच चुके हैं। भारत में महिला प्रधानमंत्री और महिला राष्ट्रपति भी बन चुकी हैं। भारत के राष्ट्रपति के पद पर सिख, मुसलमान और दलित भी आसीन हो चुके हैं। सिख समुदाय से एक व्यक्ति तो प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं।