8 नागरिक शास्त्र

न्यायपालिका

NCERT अभ्यास

प्रश्न 1: आप पढ़ चुके हैं कि कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना न्यायपालिका का एक मुख्य काम होता है। आपकी राय में इस महत्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना क्यों जरूरी है?

उत्तर: अगर न्यायपालिका पर राजनेताओं की पकड़ हो जाएगी तो कोई भी जज स्वतंत्र फैसले नहीं ले पाएगा। ऐसा होने से जज को हमेशा राजेंताओं के पक्ष में निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। ऐसे में न्यायपालिका के लिए कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना लगभग असंभव हो जाएगा। इसलिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना जरूरी है।

प्रश्न 2: अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है। उसे फिर पढ़ें। आपको ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है?

उत्तर: संवैधानिक उपचार के अधिकार का मतलब है कि यदि किसी नागरिक को लगता है कि उसके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो उसे अदालत के पास जाने का अधिकार है। संविधान की व्याख्या करने का मुख्य अधिकार न्यायपालिका के पास है। मौलिक अधिकारों को लागू करना भी न्यायपालिका का काम है। इसलिए हम कह सकते हैं कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है।

प्रश्न 3: नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया है। प्रत्येक के सामने लिखिए कि उस न्यायालय ने सुधा गोयल के मामले में क्या फैसला दिया था? अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलाकर देखें।

(a) निचली अदालत

उत्तर: इस अदालत ने तीनों आरोपियों को दोषी करार दिया और उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई।

(b) उच्च न्यायालय

उत्तर: इस अदालत तीनों आरोपियों को बरी कर दिया।

(c) सर्वोच्च न्यायालय

उत्तर: इस अदालत दो आरोपियों को दोषी करार दिया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। तीसरे आरोपी को बरी कर दिया गया।

प्रश्न 4: सुधा गोयल के मामले को ध्यान में रखते हुए नीचे दिए गए बयानों को पढ़िए। जो वक्तव्य सही है उन पर सही का निशान लगाइए और जो गलत है उनको ठीक कीजिए।

(a) आरोपी इस मामले को उच्च न्यायालय लेकर गए क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थे।

उत्तर: सही

(b) वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए।

उत्तर: गलत, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उसके नीचे की सभी अदालतों को मानना होता है।

(c) अगर आरोपी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में जा सकते हैं।

उत्तर: गलत, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अंतिम फैसला होता है।

प्रश्न 5: आपको ऐसा क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरु की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम थी?

उत्तर: कानूनी प्रक्रिया लंबी और महंगी होती है। इसलिए अधिकतर लोग (खासकर गरीब तबके के लोग) अदालतों तक पहुँच ही नहीं पाते हैं। ऐसे लोगों को अक्सर न्याय से वंचित रहना पड़ता है। जनहित याचिका की व्यवस्था ऐसे लोगों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। इसके अनुसार, कोई भी व्यक्ति आम आदमी की समस्या को लेकर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर सकता है ताकि लोगों को न्याय मिल सके। इसलिए मुझे लगता है कि जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम थी।

प्रश्न 6: ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के अंशों को दोबारा पढ़िए। इस फैसले में कहा गया है कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है। अपने शब्दों में लिखिए कि इस बयान से जजों का क्या मतलब था?

उत्तर: जजों के बयान का मतलब था कि केवल जिंदा रहने को जीवन नहीं माना जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति की आजीविका छिन जाती है तो वह जीते जी मर जाता है। उसके लिए जीवन किसी मुर्दे के समान हो जाता है। इसलिए आजीविका को जीवन के अधिकार का एक आयाम माना गया।

प्रश्न 7: इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल इस विषय पर एक कहानी बनाइए।

उत्तर: इस विषय पर आप ऐसे व्यक्ति की कहानी बना सकते हैं जिसे झूठे केस में गिरफ्तार कर लिया जाता है। फिर किसी न किसी बहाने उसे 30 वर्षों तक जेल में रखा जाता है। आखिर में 30 वर्षों के बाद अदालत उसे निर्दोष पाती है और बाइज्जत बरी कर देती है। देरी से न्याय मिलने के कारण उस व्यक्ति के जीवन के 30 बहुमूल्य वर्ष बरबाद हो जाते हैं। जेल से बाहर आने के बाद उसे पता चलता है कि उसके परिवार में कोई भी जीवित नहीं बचा है। उसके लिए आगे बची पहाड़ जैसी जिंदगी काटना मुश्किल साबित होता है।