संसद का महत्व
भारत के लोग अपनी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था पर गर्व महसूस करते हैं। लोकतंत्र का मूल आधार है सरकार के निर्णय लेने की प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी। हर लोकतांत्रिक सरकार को अपने नागरिकों की सहमति की जरूरत होती है। ये सारी बातें संसदीय संस्थान में महत्वपूर्ण होती हैं। संसद के माध्यम से भारत के नागरिक सरकार के निर्णय और सरकार पर नियंत्रण में भागीदारी करते हैं। इस तरह से संसद हमारी शासन व्यवस्था और संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन जाता है।
लोक शक्ति
भारत 15 अगस्त 1947 को एक लंबी गुलामी से आजाद हुआ। आजादी के संघर्ष में समाज के विभिन्न वर्गों ने हिस्सा लिया था। ऐसा करते समय यहाँ के लोगों को आजादी, समानता और भागीदारी की प्रेरणा मिली थी। अंग्रेजी शासन के दौरान सरकार के कई फैसलों से लोग सहमत नहीं होते थे। लेकिन उन फैसलों की आलोचना करने में बड़ा खतरा रहता था। स्वाधीनता आंदोलन ने उस स्थिति को बदल दिया था। यहाँ के राष्ट्रवादी नेताओं ने खुलकर अंग्रेजों की आलोचना शुरु कर दी थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तो 1885 में ही सदन में चुने हुए प्रतिनिधियों की मांग शुरु कर दी थी ताकि भारत के लोगों को सवाल पूछने का अधिकार मिल सके। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट (1909) ने निर्वाचित प्रतिनिधित्व की थोड़ी बहुत शुरुआत की थी। बाद में संविधान के माध्यम से भारत के लोगों के सपनों और आकांछाओं को मूर्त रूप मिला, क्योंकि संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को लागू किया।
लोगों के प्रतिनिधि
किसी भी लोकतंत्र के लिए सबसे पहला चरण होता है लोगों की सहमति, यानि लोगों की इच्छा, सहमति और भागीदारी। जनता के फैसले से ही लोकतांत्रिक सरकार बनती है और यह बात तय होती है कि सरकार कैसे चलेगी। प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है कि नागरिक सबसे महत्वपूर्ण होता है और सैद्धांतिक रूप से सरकार और अन्य लोक संस्थानों पर जनता का भरोसा होना जरूरी है।
लोग संसद के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। चुने हुए प्रतिनिधियों का एक समूह सरकार का गठन करता है। सारे चुने हुए सदस्यों से संसद का गठन होता है। संसद का काम है सरकार को नियंत्रित करना और दिशानिर्देश देना। इस तरह से जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार बनाती है और उसे नियंत्रित करती है।
संसद की भूमिका
लोकतंत्र के दो सिद्धांत हैं, निर्णय प्रक्रिया में जनता की भागीदारी और जनता की सहमति से सरकार का गठन। लोगों का प्रतिनिधित्व करने के कारण संसद को अकूत शक्ति मिली हुई है। राज्यों की विधान सभाओं की तरह संसद के चुनाव होते हैं। लोक सभा के चुनाव अमूमन हर पाँच वर्षों पर होते हैं। पूरे देश को कई निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। हर निर्वाचन क्षेत्र से संसद का एक सदस्य चुनकर आता है। निर्वाचित होने वाले उम्मीदवार को संसद सदस्य या सांसद कहा जाता है। सभी सांसद मिलकर संसद का निर्माण करते हैं।
संसद के काम
राष्ट्रीय सरकार का गठन
संसद के मुख्य घटक हैं राष्ट्रपति, राज्य सभा और लोक सभा। लोक सभा के चुनाव के बाद सांसदों की एक लिस्ट बनती है ताकि यह पता चले कि किस पार्टी के कितने सांसद जीतकर आये हैं। लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या 543 है, इसलिए जिस राजनैतिक दल या गठबंधन को 272 सीटें (कुल संख्या के आधे से एक अधिक) मिलती हैं उसे सरकार बनाने का मौका मिलता है। बाकी के सांसद मिलकर विपक्ष का गठन करते हैं। इनमें से सबसे बड़ी पार्टी को विपक्षी पार्टी कहा जाता है।
लोकसभा का एक महत्वपूर्ण काम है कार्यकारिणी का गठन करना। जो समूह संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को कार्यरूप देता है उसे कार्यकारिणी कहते हैं। कार्यकारिणी का मुखिया प्रधानमंत्री होते हैं। लोकसभा में सत्ताधारी दल के मुखिया को प्रधानमंत्री बनाया जाता है। प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के सांसदों में से कुछ सांसदों को चुनकर मंत्री बनाते हैं। मंत्रीपरिषद अहम मुद्दों पर निर्णय लेता है। मंत्रियों को विभिन्न विभागों (स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्त, आदि) का भार सौंपा जाता है।
राज्य सभा: संसद का यह सदन राज्यों के प्रतिनिधि के रूप में काम करता है। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा होता है। राज्य सभा के चुने हुए सदस्यों की कुल संख्या 233 है और इनके अलावा 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं। लोकसभा से पास होने के बाद किसी भी बिल को राज्य सभा से पास होने के बाद ही कानून की मान्यता मिलती है। राज्य सभा किसी भी बिल में संशोधन कर सकती है और उसे पुनर्विचार के लिए लोकसभा भेज सकती है। लेकिन आखिरी फैसला लोकसभा का ही मान्य होता है।
सरकार को नियंत्रित, निर्देशित और सूचित करना
संसद के सेशन की शुरुआत प्रश्न काल से होती है। प्रश्न काल में सांसद सरकार से उसके कामकाज के बारे में सवाल पूछ सकते हैं। इस तरह से संसद द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण किया जाता है। सांसद जब सवाल पूछते हैं तो वे सरकार को उसकी खामियों के बारे में बताते हैं और लोगों के मत के बारे में बताते हैं। इसलिए प्रश्न पूछना हर सांसद के लिए एक महत्वपूर्ण काम होता है। किसी भी लोकतंत्र के सुचारु रूप से काम करने में विपक्ष की बड़ी भूमिका होती है। विपक्ष का काम है सरकार की नीतियों और कामों की खामियों को उजागर करना और अपनी नीतियों पर आम समर्थन जुटाना।
संसद में लोग
आज हमारी संसद में विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमियों से अधिक से अधिक लोग दिखने लगे हैं। आज ग्रामीण क्षेत्रों से और क्षेत्रीय पार्टियों से अधिक से अधिक सांसद आने लगे हैं। कुछ वर्षों पहले तक जिन समूहों का प्रतिनिधित्व बिलकुल नहीं था उन समूहों के लोग भी आज संसद के लिए चुनकर आने लगे हैं।
पहली लोकसभा की तुलना में आज दलितों, पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी थोड़ा बहुत बढ़ा है। पहली लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या केवल 4% थी, जो आज 11% हो गई है। लेकिन यदि हम इस बात पर गौर करें कि लगभग आधी आबादी महिलाओं की है तो यह पता चलता है कि आज भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। पिछले कई वर्षों से संसद में महिलाओं को आरक्षण देने की बात चल रही है, लेकिन अभी भी यह मामला अधर में लटका हुआ है।