जन सुविधाएँ
कई ऐसी सुविधाएँ होती हैं, जिनकी जरूरत हर किसी को होती है। ऐसी सुविधाओं को जन सुविधाएँ कहते हैं। उदाहरण: स्वास्थ्य, स्वच्छता, बिजली, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, स्कूल, कॉलेज, पीने का पानी, आदि।
जन सुविधाओं का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एक बार ऐसी कोई सुविधा शुरु हो जाती है तो उसका लाभ कई लोगों को मिलता है। जैसे, यदि किसी गाँव में एक स्कूल खुल जाता है तो उससे कई बच्चों को पढ़ने लिखने का मौका मिल जाता है। इसी तरह, सड़क बन जाने से कई लोगों को फायदा मिलता है।
संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार की बात कही गई है। पानी पर अधिकार, इसी अधिकार का एक हिस्सा है। इसलिए हर नागरिक को पीने का साफ पानी देना सरकार की जिम्मेदारी बन जाती है।
जन सुविधाओं में सरकार की भूमिका
- सरकार को जनसुविधाओं की सार्वभौमिक पहुँच निश्चित करना होता है।
- सरकार को ये सुविधाएँ या तो मुफ्त या फिर ऐसे शुल्क के साथ देनी है जिसे हर कोई आसानी दे सके।
कुछ जनसुविधाओं में प्राइवेट कम्पनियाँ रुचि दिखा सकती हैं। लेकिन किसी भी प्राइवेट कम्पनी का मुख्य मकसद होता है अधिक से अधिक मुनाफा कमाना। इसलिए प्राइवेट कम्पनी किसी भी जनसुविधा के लिए बहुत अधिक फीस चार्ज करेगी, जिसे देना बहुत कम लोगों के वश में होगा। इससे सार्वभौमिक पहुँच का लक्ष्य नहीं पूरा हो पाएगा। इसलिए, जनसुविधाएँ अक्सर सरकारों द्वारा दी जाती हैं।
लेकिन, प्राइवेट कम्पनियों द्वारा जनसुविधाएँ देने के कई उदाहरण भी हैं। जैसे, दिल्ली में बिजली सप्लाई का काम प्राइवेट कम्पनी के हाथों में है। ऐसी स्थिति में सरकार कुछ कायदे कानून बनाती है ताकि चार्ज एक सीमा में रहे।
शहर में वाटर सप्लाई
अर्बन वाटर कमिटी के अनुसार, शहरी क्षेत्र में एक व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम 135 लीटर पानी की जरूरत होती है। लेकिन किसी झुग्गी में रहने वाले आदमी को एक दिन में केवल 20 लीटर पानी ही मिल पाता है।
शहर में पानी की सप्लाई जल बोर्ड द्वारा की जाती है, जो नगरपालिका के अधीन होता है। अधिकतर शहरों में पानी की सप्लाई जरूरत से कम होती है। जिन लोगों के घर पंपिंग स्टेशन या स्टोरेज टैंक के नजदीक होते हैं उन्हें तो पूरा पानी मिल जाता है। लेकिन दूर रहने वाले लोगों को सही से पानी नहीं मिल पाता है। इसके अलावा, पाइपलाइन में लीकेज से समस्या और भी बढ़ जाती है।
जब किसी मुहल्ले में पानी नहीं आता है तो नगरपालिका पानी के टैंकरों की व्यवस्था करती है। लेकिन टैंकरों पर माफिया का शिकंजा रहता है। इससे अधिकतर लोगों के लिए पानी महंगा साबित होता है। मध्यम और उच्च वर्ग के लोगों के पास इतने पैसे होते हैं कि वे टैंकर माफिया द्वारा चार्ज किए गए पैसे दे पाते हैं। कई लोग अपनी जरूरत के लिए बोर-वेल और वाटर पंप लगा लेते हैं। कई लोग पीने के साफ पानी के लिए वाटर प्यूरिफायर रखते हैं। लेकिन ऐसी चीजें गरीबों की पहुँच से दूर होती हैं।
शहरों की स्थिति कुछ हद तक ठीक भी है, लेकिन अधिकतक़र गाँवों और कस्बों में जरूरत के हिसाब से पानी नहीं मिल पाता है।