धर्मनिरपेक्षता की समझ
धर्मनिरपेक्षता के दो मौलिक आधार हैं। पहला आधार यह है कि कानून, संविधान और सरकार की नजर में विभिन्न धर्मों को मानने वाले एक समान हैं। दूसरा आधार यह है कि धर्म और राजनीति को एक दूसरे से पूरी तरह अलग रहना चाहिए।
इसका मतलब यह हुआ कि धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। साथ में बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की निरंकुशता पूरी तरह से नियंत्रण में होनी चाहिए। यदि राजनीति में धर्म का दखल होने लगता है तो इससे बहुसंख्यक समुदाय के हाथों में सत्ता का एकाधिकार आ जाता है। इससे बहुसंख्य की निरंकुशता का खतरा बढ़ जाता है।
भारत का संविधान यहाँ के नागरिकों को अपनी पसंद का धर्म मानने और उसकी अपने तरीके से व्याख्या करने की छूट देता है। इसके अलावा भारत में धर्म की शक्ति को राज्य की शक्ति से बिलकुल अलग रखा गया है।
धर्मनिरपेक्षता का महत्व
किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए धर्मनिरपेक्षता जरूरी होती है। लगभग हर देश में एक से अधिक धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। इसमें कोई न कोई धार्मिक समुदाय ऐसा होता है जो किसी देश में बहुसंख्यक होता है। यदि बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय के हाथों में सत्ता आ जाती है तो इस बात की पूरी संभावना होती है कि बहुसंख्यक समुदाय उस सत्ता और धन का दुरुपयोग करके अल्पसंख्यक समुदाय के साथ भेदभाव करेगा और हो सकता है कि उनकी हत्या भी करने लगेगा। इस तरह से बहुसंख्यक की निरंकुशता से धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव, उनके साथ बुरा व्यवहार और उनकी हत्या तक होने लगती है। कई बार बहुसंख्यक समुदाय ऐसा भी करता है कि अल्पसंख्यक समुदाय को उसकी धार्मिक गतिविधियों से रोकने लगता है। किसी भी लोकतांत्रिक समाज में हर नागरिक को समान अधिकार दिए जाते हैं। लेकिन यदि बहुसंख्यक की निरंकुशता होती है तो इन अधिकारों का हनन होता है। इसलिए, लोकतांत्रिक समाज में धर्मनिरपेक्षता जरूरी हो जाती है।
कुछ लोग अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म में शामिल होना चाहते हैं। कुछ व्यक्ति अपने तरीके से किसी धर्म की व्याख्या करना चाहते हैं। कुछ लोग नास्तिक होते हैं और किसी भी धर्म को नहीं मानते हैं। ऐसे लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा करना भी संविधान का कर्तव्य है। इस कारण से भी धर्मनिरपेक्षता की जरूरत पड़ती है।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता
भारत के संविधान में यह बताया गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। संविधान के अनुसार, एक धर्मनिरपेक्ष देश नीचे दिए उद्देश्यों को हासिल कर सकता है।
- कोई भी धर्म किसी अन्य धर्म पर हावी न हो।
- किसी एक धर्म के कुछ सदस्य अपने ही धर्म के कुछ अन्य सदस्यों पर हावी न हों।
- राज्य किसी धर्म को प्रश्रय नहीं दे और किसी की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन न करे।
इन उद्देश्यों को पाने के लिए भारत सरकार कई तरीके अपनाती है। सबसे पहली नीति है कि सरकार धर्म से दूर ही रहती है। भारत में किसी धार्मिक समूह का शासन नहीं है और ना ही यहाँ किसी धर्म विशेष को सरकार का समर्थन दिया जाता है। सरकारी संस्थानों (कोर्ट, पुलिस स्टेशन, सरकारी स्कूल, दफ्तर, आदि) में किसी भी विशेष धर्म के प्रचार प्रसार का काम होने की अपेक्षा नहीं की जाती है।
दूसरी नीति के तहत, सरकार किसी भी धार्मिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है। हालाँकि इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं।
भारत में धार्मिक दबदबे से बचने के लिए संविधान ने कई नियम बनाए हैं। लेकिन फिर भी भारत में लोगों के धार्मिक अधिकारों का हनन होता है। एक धर्म के लोग अक्सर दूसरे धर्म के लोगों से लड़ते हैं। कई बार एक ही धर्म के दो अलग-अलग समूहों के बीच झगड़े होते हैं। इस तरह के झगड़ों को नियंत्रण से बाहर होने से बचाने के लिए संविधान में कुछ सिस्टम की जरूरत होती है। शायद इन्हीं कानूनों की वजह से समुदायों के बीच होने वाले अधिकतर झगड़े कोई भयानक रूप नहीं ले पाते हैं।