प्राकृतिक परिघटनाएँ
तड़ित
आंधी तूफान के वक्त आसमान में कौंधने वाली चमकदार रोशनी की रेखा को तड़ित या बिजली चमकना कहते हैं। तड़ित के साथ हमेशा मेघ गरजने की आवाज आती है। बादल से बादल तक या बादल से पृथ्वी तक चार्ज के ट्रांसफर को तड़ित कहते हैं। साधारण शब्दों में कहा जाए तो तड़ित बिजली की वह चिंगाड़ी है जो आसमान में एक विशाल पैमाने पर निकलती है।
तड़ित का बनना
- आंधी या चक्रवात के दौरान, हवा ऊपर की ओर जाती है और पानी की बूँदें नीचे की ओर। ये गतिविधियाँ बहुत तेजी से होती हैं जिसके कारण बादलों में आवेश उत्पन्न होता है।
- बादल के ऊपरी किनारे पर पॉजिटिव चार्ज बनता है और निचले किनारे पर नेगेटिव चार्ज। वैज्ञानिक अभी तक इसकी वजह नहीं समझ पाए हैं।
- उसी समय पृथ्वी पर पॉजिटिव चार्ज बनता है।
- आमतौर पर वायु बिजली का हीन चालक है। लेकिन जब बादलों में चार्ज बहुत अधिक हो जाता है तो वायु उसे अधिक देर तक संभाल नहीं पाता। इसके परिणामस्वरूप चार्ज का ट्रांसफर पृथ्वी तक हो जाता है। जब ऐसा होता है तो आसमान में चमकीली रेखा जैसी बनती है तो चंद सेकंड ही रहती है।
तड़ित से नुकसान
तड़ित से भवनों और वृक्षों को नुकसान होता है। इससे इंसानों और मवेशियों की जान चली जाती है। कई बार, आदमी यदि जिंदा भी बच जाए तो जीवन भर के लिए अपाहिज हो जाता है।
तड़ित से सुरक्षा
- जब बिजली गिरती है तो कोई भी खुली जगह सुरक्षित नहीं है। ऐसे में घर या किसी भवन से अधिक सुरक्षित जगह कोई नहीं होती है।
- झंझा की पहली आवाज एक तरह की चेतावनी होती है। इसलिए झंझा की पहली आवाज सुनते ही किसी मकान के अंदर चले जाना चाहिए। जब तूफान थम जाए और मेघ गर्जना बंद हो जाए तभी बाहर निकलना चाहिए।
- आंधी तूफान के समय ऐसा छाता लेकर नहीं निकलना चाहिए जिसका हैंडल धातु का हो। धातु के हैंडल पर बिजली गिर सकती है।
- लंबे पेड़ और लंबी संरचनाएँ (टेलिफोन टावर, बिजली का खंभा, आदि) पर बिजली गिरने का खतरा अधिक रहता है। यदि तूफान के समय कोई खुले में फँस गया हो तो उसे किसी छोटे पेड़ के नीचे खड़े होना चाहिए।
- यदि छुपने की कोई जगह ना मिले तो जमीन पर बैठ जाएँ और अपने सिर को घुटनों और हथेलियों के बीच छुपा लें।
- तूफान के दौरान शावर में नहाने से बचना चाहिए। तार वाले टेलिफोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। एंटेना को टेलीविजन से डिसकनेक्ट कर देना चाहिए। बिजली के स्विच को छूने से बचना चाहिए।
तड़ित चालक
यह एक सरल उपकरण है जो भवनों को तड़ित से बचाता है। तड़ित चालक में एक खड़ा छड़ होता है जिसके ऊपर त्रिशूल लगा होता है। छड़ के निचले हिस्से से धातु की एक मोटी तार जुड़ी होती है। इस तार को जमीन के अंदर गहराई तक गाड़ दिया जाता है। इससे चार्ज को पृथ्वी तक जाने का रास्ता मिल जाता है। जब बिजली गिरती है तो उससे मिलने वाला चार्ज तड़ित चालक से जुड़े तार से होकर धरती में पहुँच जाता है। इस तरह भवन को होने वाले नुकसान की रोकथाम होती है।
भूकंप
धरती के हिलने (जो चंद पलों के लिए ही होता है) को भूकंप कहते हैं।
टेक्टॉनिक प्लेट
धरती की ऊपरी परत यानी भूपर्पटी कई विशाल टुकड़ों से मिलकर बनी है। इन टुकड़ों को टेक्टॉनिक प्लेट कहते हैं। ये प्लेटें हमेशा चलती रहती हैं और ऐसा करने के दौरान वे एक दूसरे से रगड़ खाती हैं और टकराती रहती हैं। टेक्टॉनिक प्लेटों के आपस में रगड़ खाने या टकराने की वजह से उनमें कम्पन पैदा होता है। जब कम्पन जोर से होता है हमें भूकंप का पता चलता है।
भूकंपी क्षेत्र या भ्रंश क्षेत्र
टेक्टॉनिक प्लेट की सीमा वाले क्षेत्र में भूकंप आने का खतरा सबसे अधिक रहता है। इन क्षेत्रों को भूकंपी क्षेत्र या भ्रंश क्षेत्र (फॉल्ट क्षेत्र) कहते हैं। भारत में कश्मीर, पश्चिमी और मध्य हिमालय, पूरा पूर्वोत्तर, कच्छ का रन, राजस्थान और गंगा का मैदान वाले इलाके भूकंपी क्षेत्र में आते हैं। दक्कन पठार के कुछ भाग भी भूकंपी क्षेत्र में पड़ते हैं।
सीसमोग्राफ
इस उपकरण से भूकंपी गतिविधियों को रेकॉर्ड किया जाता है। सीसमोग्राम (भूकंपलेखी) में एक दोलक, एक लिखने वाला उपकरण और कागज का रॉल लगा रहता है। जब भूकम्प आता है तो दोलक में कम्पन होता है, जिसके कारण लिखने वाले उपकरण द्वारा कागज पर तरंग जैसा पैटर्न बन जाता है। सीसमोलॉजिस्ट उस पैटर्न का अध्ययन करके भूकंप के बारे में जरूरी जानकारी देते हैं।
रिक्टर स्केल
अमेरिका के कैलिफोर्निया इंस्टिच्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी के चार्ल्स रिक्टर और बेनो गुटेनबर्ग नें 1935 में रिक्टर स्केल को बनाया था। यह एक लॉगरिदमिक स्केल है जो भूकम्प की तीव्रता को दिखाता है। इस स्केल पर भूकम्प की तीव्रता को शून्य से 10 के बीच मापा जाता है। लॉगरिदमिक स्केल का अर्थ है कि यदि कोई भूकम्प 5 रिक्टर स्केल का है तो वह 4 रिक्टर वाले भूकम्प से 100 गुना अधिक शक्तिशाली होगा। अधिकतर भूकम्प 4 रिक्टर से कम के होते हैं और हमें उनका पता भी नहीं चलता है। 7.5 रिक्टर से अधिक के भूकम्प से अत्यधिक नुकसान होता है।
भूकम्प से नुकसान
भूकम्प अपने आप कोई नुकसान नहीं पहुँचाता है। जो भी नुकसान होता है व भूकम्प के कारण मानव निर्मित संरचनाओं के गिरने से होता है। यदि कोई मकान या पुल या खंभा भूकम्प के कारण गिर जाता है तो उससे भारी नुकसान होता है। कभी कभी भूकम्प के फलस्वरूप सुनामी आती है जिसके विनाशकारी परिणाम होते हैं।
भूकम्प से सुरक्षा
- भूकम्प की भविष्यवाणी करना असम्भव है। इसलिए भूकम्प से होने वाले नुकसान से बचने के लिए हर संभव सावधानियाँ बरतनी चाहिए।
- भवनों को भूकम्प रोधी बनाना चाहिए।
- भूकम्प संभावित क्षेत्रों में मकान बनाने के लिए हलकी सामग्रियों का इस्तेमाल करना चाहिए।
- आलमारियों को दीवार से जड़ देना चाहिए ताकि भूकम्प के दौरान वे गिरे नहीं।
- लोगों को समय समय पर भूकम्प से बचने का ड्रिल करते रहना चाहिए।
- यदि भूकम्प आ जाए तो आप किसी टेबल के नीचे बैठ जाएँ। यदि आप बिस्तर पर हों तो अपने सिर के ऊपर तकिया रख लें और बिस्तर में ही रहें। यदि आप खुले में हों तो किसी भी भवन से दूर चले जाएँ।
- भवनों में अग्निशामक व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए। भूकम्प के दौरान शॉर्ट सर्किट से होने वाली आग से बहुत अधिक नुकसान होता है।