स्वास्थ्य में सरकार की भूमिका
निजी स्वास्थ्य सेवाएँ
इस प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं का स्वामित्व निजी हाथों में होता है। निजी स्वास्थ्य सेवाएँ बहुत महँगी होती हैं। आम आदमी ऐसे अस्पतालों में इलाज करवाने की हैसियत नहीं रखता है।
भारत में निजी स्वास्थ्य केंद्रों की भरमार है। कई डॉक्टर अपना निजी क्लिनिक चलाते हैं। गाँवों में रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर (RMPs) अपनी सेवा देते हैं। शहरों में कई विशेषज्ञ डॉक्टर होते हैं। कई अस्पताल, नर्सिंग होम, और जाँच केंद्र निजी लोगों द्वारा चलाए जाते हैं। आज कई बड़ी कम्पनियाँ पूरे देश में अस्पतालों की चेन चला रही हैं। हमारे देश में दवा बनाने वाली हजारों प्राइवेट कम्पनियाँ हैं। आपको हर गली मुहल्ले में दवा की दुकान अवश्य दिख जाएगी।
स्वास्थ्य सेवा में असमानता
भारत में निजी स्वास्थ्य सुविधाएँ तेजी से बढ़ रही हैं लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में ऐसा नहीं हो रहा है। इससे कई समस्याएँ होती हैं।
- अधिकतर निजी अस्पताल शहरों में है और गाँव के लोग उनसे वंचित रह जाते हैं।
- मुनाफा कमाने के चक्कर में प्राइवेट अस्पताल ऊँची फीस लेते हैं। ऐसे अस्पताल गरीबों की पहुँच से बाहर होते हैं।
- कई बार मुनाफा कमाने के चक्कर में प्राइवेट अस्पतालों में अनुचित काम किए जाते हैं। कई जाँच तो केवल पैसे बनाने के लिए करवाए जाते हैं। मरीज यदि घर में रहकर भी ठीक हो सकता है तो उसे अस्पताल में रहने की सलाह दी जाती है ताकि उससे अधिक पैसे वसूले जा सकें। जरूरत से अधिक दवाइयाँ लिखी जाती हैं।
भारत की आबादी का 20% हिस्सा ही चिकित्सा का खर्च उठाने की हैसियत रखता है। मध्यम वर्ग के लोग भी प्राइवेट अस्पतालों खर्च वहन नहीं कर पाते हैं। ऐसे में कई लोगों को कर्ज लेना पड़ा है जिससे वे कर्ज के चक्र में फँस जाते हैं। कई लोगों को इलाज के लिए अपनी संपत्ति बेचनी पड़ती है।
गरीबी और बिमारी
गरीब लोगों के लिए हर बिमारी अपने साथ कई चिंताएँ लाती है। ऐसे लोग बार बार बीमार पड़ते हैं। इसके कुछ कारण नीचे दिए गए हैं।
कुपोषण: गरीब व्यक्ति अक्सर कुपोषण का शिकार होता है। इन लोगों को संतुलित आहार नहीं मिल पाता है। इसलिए इन्हें जरूरी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज, आदि नहीं मिल पाते हैं।
बुनियादी सुविधाओं की कमी: गरीब लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता है। अक्सर ऐसे लोग तंग बस्तियों में रहते हैं जहाँ छोटे छोटे मकान होते हैं जिनमें सही से हवा भी नहीं जाती है। ऐसे में बिमारियाँ होने का खतरा बढ़ जाता है।
खराब स्वास्थ्य के अन्य कारण
- लोगों की मानसिकता भी खराब स्वास्थ्य का कारण बन जाती है। कई परिवारों में महिलाओं को चिकित्सा देने में देरी की जाती है। उनकी स्वास्थ्य जरूरतों का सही खयाल नहीं रखा जाता है।
- दूर दराज के गाँवों में स्वास्थ्य केंद्र तो हैं लेकिन उन्हें ठीक से चलाया नहीं जाता है। अक्सर डॉक्टर ड्यूटी से नदारद होते हैं।
केरल का अनुभव
केरल की सरकार ने 1996 में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया था। राज्य के बजट का 40% पंचायतों को दिया गया। उसके बाद पंचायत लोगों की बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बेहतर योजना बनाने में सक्षम हो गई। गाँवों में पीने का पानी, पोषण और महिलाओं की शिक्षा और विकास पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। चीजें सही करने के लिए कई कदम उठाए गए जो नीचे दिए गए हैं।
- पीने के पानी की आपूर्ति को दुरुस्त किया गया।
- स्कूल और आंगनवाड़ी का काम बेहतर होने लगा।
- चिकित्सा केंद्रों में सुधार किए गए।
इससे स्थिति में काफी सुधार हुआ। अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है, जैसे डॉक्टरों की संख्या को बढ़ाना।
कोस्टा रिका का अनुभव
कोस्टा रिका को दक्षिणी अमेरिका के सबसे स्वस्थ देशों में से एक माना जाता है। कोस्टा रिका सरकार के एक अहम फैसले के कारण यह संभव हो पाया। कई वर्ष पहले वहाँ की सरकार ने निर्णय लिया कि वहाँ सेना नहीं रखी जाएगी। ऐसा कहा गया कि सेना पर पैसे बरबाद करने से बेहतर होगा लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर पैसों का सदुपयोग किया जाए।
कोस्टा रिका की सरकार को लगता है कि विकास के लिए लोगों का स्वस्थ्य होना जरूरी है। वहाँ की सरकार पीने के पानी, स्वच्छता, पोषण और आवास जैसे मुद्दे पर बहुत ध्यान देती है। शिक्षा के हर स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा पर बल दिया जाता है।