तवा मत्स्य संघ
तवा मत्स्य संघ, मछुआरों की सहकारी समितियों का संघ है। यह संस्था मध्य प्रदेश के सतपुरा के वनों से विस्थापित निवासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ती है।
हमारे देश में विस्थापित लोगों और समुदायों की समस्या विकट है। जब भी किसी बांध का निर्माण होता है या किसी वन को जानवरों का अभयारण्य घोषित किया जाता है तो इससे हजारों लोग विस्थापित हो जाते हैं।
विस्थापन का असर
विस्थापन से लोगों के जीवन में तबाही आ जाती है। उनका जीवन कई रूप में बरबाद हो जाता है, जिनके उदाहरण नीचे दिए गए हैं।
गाँवों का उजड़ना
बांध या सड़क या हवाई अड्डा बनाने के लिए गाँव के गाँव उजाड़ दिए जाते हैं। लोगों को जबरदस्ती नई जगह पर घर बनाने और अपना जीवन फिर से शुरु करने के लिए बाध्य किया जाता है। गरीबी के कारण उनकी समस्या और विकट हो जाती है।
बस्तियों का उजड़ना
शहरी क्षेत्रों में सौंदर्यीकरण के नाम पर बस्तियाँ उजाड़ दी जाती हैं। बस्ती में रहने वाले लोगों को शहर के बाहर भेज दिया जाता है। इससे उनकी पूरी जिंदगी बरबाद हो जाती है। शहर के बाहर चले जाने के कारण लोगों को अपने काम की जगह पर पहुँचने में अधिक परेशानी होती है। बच्चों का स्कूल छूट जाने के कारण उनकी पढ़ाई बंद हो जाती है।
तवा मत्स्य संघ की पृष्ठभूमि
तवा नदी बेतुल से होकर बहती है और उसके बाद यह होशंगाबाद में नर्मदा से मिल जाती है। इस नदी का उद्गम छिंदवाड़ा जिले के महादेव पहाड़ी में है। तवा नदी पर बांध बनाने का काम 1958 में शुरु हुआ था और यह 1978 में बनकर तैयार हो गया था। बांध बनने के कारण वन और खेती लायक जमीन का एक बड़ा हिस्सा डूब गया। इससे वन में रहने वाले लोगों का जीवन चौपट हो गया। विस्थापित लोगों में से कुछ ने बांध के आस पास ही अपने घर बना लिए। यहाँ पर उन्हें जीविका का एक नया साधन मिल गया। खेती के अलावा उन्होंने मछली पकड़ने का काम शुरु कर दिया। लेकिन उनकी कमाई बहुत कम थी।
1994 में सरकार ने निजी ठेकेदारों को तवा के जलाशय में मछली पकड़ने का पट्टा दे दिया। ठेकेदारों ने अपने गुंडों की मदद से स्थानीय लोगों को भगा दिया और बाहर से सस्ते मजदूर लेकर आये। जिस किसी ने भी विरोध करने की कोशिश की उसे गुंडों से धमकाया गया। आजिज आकर गाँव वालों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एक संगठन बनाने का फैसला किया। इस तरह से तवा मत्स्य संघ की स्थापना हुई। इस संगठन ने मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर रैली और चक्का जाम शुरु किया।
तवा मत्स्य संघ का असर
विरोध प्रदर्शन का असर यह हुआ कि सरकार ने मुद्दे का आकलन करने के लिए एक समिति का गठन किया। उस समिति ने ग्रामीणों के जीविकोपार्जन के लिए उन्हें मछली पकड़ने का अधिकार देने की अनुशंसा की। आखिर में 1996 में मध्य प्रदेश सरकार ने विस्थापित लोगों को उस जलाशय में मछली पकड़ने का अधिकार देने का फैसला लिया। अब गाँव वालों को जलाशय से मछली पकड़ने के लिए पाँच साल का पट्टा मिल गया। इस खुशी में 33 गाँव के लोगों ने 2 जनवरी 1997 को सही मायने में नये साल का उत्सव मनाया।
मत्स्य संघ का कामकाज
लोगों ने एक सहकारी समिति बनाई जो मछुआरों से उचित मूल्य पर मछली खरीदती थी। इस समिति का काम था मछली को मंडी तक पहुँचाना और उसे उचित मूल्य पर बेचना। इससे मछुआरों की आमदनी तीन गुना बढ़ गई। समिति ने जाल खरीदने और उसकी मरम्मत के लिए कर्ज देना भी शुरु किया।
इस मत्स्य संघ ने यह साबित कर दिया कि जब लोगों को जीविका का अधिकार मिल जाता है तो वे अच्छे प्रबंधक बन सकते हैं।
संविधान: एक सजीव दस्तावेज
सजीव दस्तावेज का मतलब है कि हमारा संविधान कागज का पुलिंदा मात्र नहीं है बल्कि यह सही मायने में हमारे जीवन पर असर करता है। तवा मत्स्य संघ के मछुआरों के उदाहरण से पता चलता है कि हमारा संविधान लोगों का जीवन बदल सकता है। इस मामले में संविधान में दिए गए समानता के अधिकार को जमीन पर लागू किया गया। ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जब लोगों ने एकजुट होकर समानता के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें इसका सही फल मिला।