नगर, मंदिर, शिल्पीजन
NCERT अभ्यास
प्रश्न 1: रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:
- राजराजेश्वर मंदिर ................. में बनाया गया था।
- अजमेर सूफी संत .............. संबंधित है।
- हम्पी ............. साम्राज्य की राजधानी थी।
- हॉलैंडवासियों ने आंध्र प्रदेश में ........... पर अपनी बस्ती बसाई।
उत्तर: (a) तंजावूर, (b) ख्वाजा मोइनुद्दी चिश्ती, (c) विजयनगर, (d) कृष्णा नदी के डेल्टा
प्रश्न 2: सही और गलत बताएँ:
- हम राजराजेश्वर मंदिर के मूर्तिकार (स्थपति) का नाम एक शिलालेख से जानते हैं।
- सौदागर लोग काफिलों में यात्रा करने की बजाय अकेले यात्रा करना अधिक पसंद करते थे।
- काबुल हाथियों के व्यापार का मुख्य केंद्र था।
- सूरत बंगाल की खाड़ी पर स्थित एक महत्वपूर्ण व्यापारिक पत्तन था।
उत्तर: (a) सत्य, (b) असत्य, (c) असत्य, (d) असत्य
प्रश्न 3: तंजावूर नगर को जल की आपूर्ति कैसे की जाती थी?
उत्तर: तंजावूर में जल की आपूर्ति के लिए कुँए और जलाशय बनवाए गए थे।
प्रश्न 4: मद्रास जैसे बड़े नगरों में स्थित ब्लैक टाउंस में कौन रहता था?
उत्तर: भारतीय व्यापारी और शिल्पकर्मी
प्रश्न 5: आपके विचार से मंदिरों के आस-पास नगर क्यों विकसित हुए?
उत्तर: मंदिर कई तरह की सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र होता था। मंदिर के आस पास शिल्पकार, लोहार, सुनार, फूल वाले, पुजारी, आदि बसने लगे। इस तरह समय बीतने के साथ मंदिरों के आस पास नगर विकसित हुए।
प्रश्न 6: मंदिरों के निर्माण तथा उनके रख-रखाव के लिए शिल्पीजन कितने महत्वपूर्ण थे?
उत्तर: मंदिर के निर्माण और उसके रख-रखाव के लिए कई तरह के शिल्पकर्मियों की आवश्यकता होती है। उनके कुछ उदाहरण हैं: राजमिस्त्री, लोहार, सुनार, मूर्तिकार, आदि।
प्रश्न 7: लोग दूर-दूर के देशों प्रदेशों से सूरत क्यों आते थे?
उत्तर: पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में सूरत, पश्चिम से व्यापार का एक मुख्य केंद्र था। सूरत से ओरमुज की खाड़ी से होकर पश्चिमी एशिया का व्यापार होता था। यहाँ हज के लिए तीर्थयात्रियों के जहाज रवाना होने के कारण इसे मक्का का गेट भी कहते थे। इसलिए यहाँ दूर-दूर के देशों प्रदेशों से लोग आते थे।
प्रश्न 8: कलकत्ता जैसे नगरों में शिल्प उत्पादन तंजावूर जैसे नगरों के शिल्प उत्पादन से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर: तंजावूर के शिल्पकार अपने हिसाब से वस्तुओं को बनाते थे। उन्हें किसी एजेंट के दबाव में काम नहीं करना पड़ता था। कलकत्ता के शिल्पकार पेशगी लेकर काम करते थे। एक बार जिससे पेशगी ले लिया फिर उसकी फरमाइश के हिसाब से काम करना होता था। कलकत्ता का शिल्पकार अपना माल केवल उसी को बेच सकता था जिससे उसने पेशगी ली थी।