उपन्यास समाज और इतिहास
Ncert Solution
प्रश्न:1 इनकी व्याख्या करें:
प्रश्न:a) ब्रिटेन में आए सामाजिक बदलावों से पाठिकाओं की संख्या में इजाफा हुआ।
उत्तर: औद्योगिक क्राँति के बाद ब्रिटेन की महिलाओं के पास खाली समय बचने लगा। इस दौरान महिलाओं में साक्षरता भी बढ़ गई। इसलिए अब अधिक से अधिक महिलाएँ अपने खाली समय का उपयोग पढ़ने के लिए करती थीं। इसलिए पाठिकाओं की संख्या में इजाफा हुआ।
प्रश्न:b) राबिंसन क्रूसो के वे कौन से कृत्य हैं, जिनके कारण वह हमें ठेठ उपनिवेशकार दिखाई देने लगता है।
उत्तर: राबिंसन क्रूसो ने अश्वेत लोगों को मनुष्यों की तरह नहीं बल्कि नीच प्राणियों की तरह चित्रित किया है। वह उन्हें गुलाम बना लेता है। वह उनके नाम नहीं पूछता बल्कि किसी का नाम फ्राइडे रख देता है। उसकी इन हरकतों से पता चलता है कि रॉबिन्सन क्रूसो एक ठेठ उपनिवेशकार था।
प्रश्न:c) 1740 के बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।
उत्तर: उस जमाने में उपन्यास महंगे हुआ करते थे। 1740 के बाद किराये पर किताबें देने वाले पुस्तकालयों का प्रचलन शुरु हुआ। इसलिए उसके बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।
प्रश्न:d) औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे।
उत्तर: जिस तरीके से औपनिवेशी शासक भारत के इतिहास और वर्तमान की व्याख्या करते थे उससे कई उपन्यासकार सहमत नहीं थे। वह भारत की अपनी एक अलग तसवीर बनाना चाहते थे। कई उपन्यासकार भारतीय साहित्य और भारतीय जनता को अन्य से बेहतर दिखाना चाहते थे। इसलिए औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे।
प्रश्न:2 तकनीक और समाज में आए उन बदलावों के बारे में बतलाइए जिनके चलते अठारहवीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।
उत्तर: प्रिंट टेक्नॉलोजी में कई ऐसे सुधार आये जिनके किसी किताब की असंख्य कॉपियाँ छापना संभव हो गया था। इस दौरान यूरोप में साक्षरता दर भी बढ़ गई थी। लोग पहले अधिक अमीर हो चुके थे और उनके पास खाली समय भी रहने लगा था। प्रकाशकों की सटीक मार्केटिंग से भी उपन्यासों की बिक्री बढ़ाने में मदद मिली। अब लेखक किसी रईस के संरक्षण से स्वतंत्र हो चुके थे और अपनी रचनात्मक स्वतंत्रता का भरपूर इस्तेमाल कर सकते थे। इन सब कारणों से अठारहवीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।
प्रश्न:3 निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें:
प्रश्न:a) उड़िया उपन्यास
उत्तर: नाटककार रामाशंकर रे ने 1877 – 78 में पहले उड़िया उपन्यास को धारावाहिक के रूप में पेश करना शुरु किया। लेकिन वह इस काम को पूरा नहीं कर पाये। उसके तीस साल के भीतर उड़ीसा से एक प्रमुख उपन्यासकार उभरा जिसका नाम था फकीर मोहन सेनापति (1843 – 1918)। उनके उपन्यास का शीर्षक है छ: माणौ आठौ गुंठो (1902)(1902) जिसका मतलब है छ: एकड़ और बत्तीस गट्ठे जमीन। इस उपन्यास में जमीन हड़पने की समस्या का जिक्र है।
प्रश्न:b) जेन ऑस्टिन द्वारा औरतों का चित्रण
उत्तर: जेन ऑस्टिन ने अपने जमाने की ग्रामीण औरतों के बारे में लिखा था। उनके उपन्यास की ग्रामीण महिला हमेशा अपने लिए एक योग्य वर की तलाश में लगी रहती है और कोई धनी आदमी ही योग्य वर हो सकता है।
प्रश्न:c) उपन्यास परीक्षा गुरु में दर्शाई गई नए मध्यवर्ग की तसवीर
उत्तर: उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’ में मध्यवर्ग को ऐसी स्थिति में दिखाया गया है जहाँ परंपरा और आधुनिक जीवन शैली के बीच होने वाले टकराव को दिखाया गया है। इस उपन्यास के पात्र अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हैं फिर भी संस्कृत के अच्छे जानकार हैं। वे पाश्चात्य ड्रेस पहनते हैं लेकिन लंबे बाल भी रखते हैं। यह उपन्यास पाश्चात्य संस्कृति की अंधी नकल की समस्या को उजागर करता है।
प्रश्न:4 उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे कुछ सामाजिक बदलावों की चर्चा करें जिनके बारे में टॉमस हार्डी और चार्ल्स डिकेंस ने लिखा है।
उत्तर: उन्नीसवीं सदी में यूरोप में औद्योगिक युग आ चुका था। औद्योगीकरण से एक ओर नई उम्मीदें जगी थीं वहीं दूसरी ओर मजदूरों और शहरी जीवन की समस्याएँ भी खड़ी हुई थीं। मुनाफे की होड़ में हमेशा साधारण मजदूर ही मार खाता था। कई उपन्यासकारों ने नये शहरों में रहने वाले साधारण लोगों के इर्द गिर्द कहानी बुनी थी।
प्रश्न:5 उन्नीसवीं सदी के यूरोप और भारत दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में जो चिंता पैदा हुई उसे संक्षेप में लिखें।
उत्तर: महिलाएँ अक्सर चारदीवारी के अंदर रहती थीं। उपन्यास ने उनके लिए बाहरी दुनिया की ओर खुलने वाली खिड़की का काम किया। उपन्यास ने उन्हें अपने निजी दुनिया में पढ़ने का आनंद उठाने की आजादी दी। लेकिन महिलाओं को पढ़ने की आजादी नहीं थी। यह बात भारत में खासकर से लागू होती थी। इससे महिलाओं के प्रति भेदभाव का पता चलता है।
प्रश्न:6 औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह उपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था?
उत्तर: उपनिवेशकारों के लिये उपन्यास से भारत के समाज और संस्कृति के बारे में अच्छी जानकारी मिल जाती थी। इससे भारत के बारे में उनकी समझ बेहतर हो पाती थी। उपन्यास के जरिये राष्ट्रवादी लोगों में राष्ट्रवादी भावनाओं का संचार कर सकते थे। कई राष्ट्रवादी नेता स्वयं भी कई उपन्यासों से गहरे तौर पर प्रभावित हुए थे।
प्रश्न:7 इस बारे में बताएँ कि हमारे देश में उपन्यासों में जाति के मुद्दे को किस तरह उठाया गया। किन्हीं दो उपन्यासों का उदाहरण दें और बताएँ कि उन्होंने पाठकों को मौजूदा सामाजिक मुद्दों के बारे में सोचने को प्रेरित करने के लिए क्या प्रयास किए।
उत्तर: कई लेखकों ने नीची जाति के लोगों के बारे में लिखना शुरु किया। उदाहरण के लिए सरस्वतीविजयम एक उपन्यास है जिसमें नम्बूदिरी और नायर जाति के बीच के टकराव को दिखाया गया है। केरल में नम्बूदिरी जाति के लोग जमींदार होते थे और उनके खेतों में नायर जाति के लोग काश्तकारी करते थे। इस उपन्यास में एक नायर लड़की की कहानी है। इस कहानी में वह एक रईस लेकिन मूर्ख नम्बूदिरी से शादी करने से मना कर देती है और बदले में एक पढ़े लिखे नायर से शादी करती है। फिर नव दंपति मद्रास चले जाते हैं जहाँ पति सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर लेता है। इस उपन्यास में इस बात के महत्व को बताया गया है कि कैसे शिक्षा के सहारे कोई सामाजिक व्यवस्था में ऊपर उठ सकता है। इसी तरह बंगाली उपन्यास तीताश एकटी नदीर नाम में मल्लाहों के जीवन के बारे में लिखा गया है।
प्रश्न:8 बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गई।
उत्तर: जीवन के हर क्षेत्र के लोग उपन्यास पढ़ सकते थे। इससे किसी की भाषा के आधार पर लोगों में साझा पहचान की भावना घर करने लगी। उपन्यास से लोगों को देश के दूसरे हिस्सों की संस्कृति को समझने का मौका भी मिला। इस तरह से उपन्यास से एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने में काफी मदद मिली।