संसाधन
भू संसाधन:
प्राकृतिक संसाधनों में भू संसाधन सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि भूमि हमारे जीवन को आधार प्रदान करती है। हम भूमि पर रहते हैं, इसपर खेती करते हैं, इसपर मकान बनाते हैं और हमारी जरूरत के लिये अधिकांश संसाधन भूमि से ही प्राप्त होते हैं। इसलिए भू संसाधन के इस्तेमाल के लिये सही योजना की आवश्यकता है। भारत में कई तरह की भूमि है; जैसे कि पहाड़, पठार, मैदान और द्वीप।
पहाड़: भारत की कुल भूमि का 30% पहाड़ों के रूप में है। भारत की कई नदियों का उद्गम इन्हीं पहाड़ों में है। पहाड़ों के कारण ही बारहमासी नदियों में जल का प्रवाह बना रहता है। ये नदियाँ अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती हैं और मैदानों का निर्माण करती हैं। इन नदियों से मिलने वाला पानी हमारे खेतों की सिंचाई करता है। इन्हीं नदियों से हमें पीने का पानी भी मिलता है।
मैदान: भारत की कुल भूमि का 43% मैदान के रूप में है। मैदान की भूमि समतल होती है और इसलिए अधिकतर आर्थिक क्रियाओं के लिये अनुकूल होती है। मैदान की जमीन खेती के लायक होती है इसलिये मैदानों में घनी आबादी होती है। मकान और कल कारखाने भी समतल भूमि में आसानी से बनाये जा सकते हैं।
पठार: भारत की कुल भूमि का 27% पठारों के रूप में है। पठारों से हमें कई प्रकार के खनिज, जीवाष्म ईंधन और वन संपदा मिलती है।
भू उपयोग:
- वन
- कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि: कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि दो प्रकार की है।
- बंजर और कृषि अयोग्य भूमि
- गैर कृषि प्रयोगों के लिए भूमि: जैसे मकान, सड़क, कारखाने, आदि के लिए भूमि।
- परती भूमि के अतिरिक्त अन्य कृषि अयोग्य भूमि
- स्थाई चारागाहें तथा अन्य गोचर भूमि
- विविध वृक्षों, वृक्ष फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि ((जो शुद्ध बोए गये क्षेत्र में शामिल नहीं हैं)
- कृषि योग्य बंजर भूमि जहाँ पाँच से अधिक वर्षों से खेती नहीं हुई हो।
- परती भूमि:
- वर्तमान परती (जहाँ एक वर्ष या उससे कम समय से खेती नहीं हुई हो)
- पुरातन परती (जहाँ एक से पाँच वर्षों से खती नहीं हुई हो)
- शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र: एक वर्ष में एक बार से अधिक बोये गये खेत को यदि शुद्ध बोये गये क्षेत्र में जोड़ दिया जाए तो उसे सकल बोया गया क्षेत्र कहते हैं।