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संसाधन

संसाधनों का अंधाधुंध इस्तेमाल

संसाधन हमारे लिये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन हम संसाधनों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे कई समस्याएँ खड़ी हो रही हैं। कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं।

कुछ संसाधन कुछ सीमित लोगों के हाथों में है। इससे दूसरे लोगों को तकलीफ होती है।

संसाधन के अंधाधुंध इस्तेमाल से पूरी दुनिया में पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई है, जैसे कि ग्लोबल वार्मिंग, पारितंत्र पर खतरा, ओजोन लेयर में सुराख, आदि।

संसाधन का समान रूप से वितरण और सही इस्तेमाल इसलिये जरूरि है ताकि सतत पोषणीय विकास हो सके।

सतत पोषणीय विकास: जब विकास होने के क्रम में पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे और भविष्य की जरूरतों की अनदेखी न हो तो ऐसे विकास को सतत पोषणीय विकास कहते हैं।

संसाधनों के सही इस्तेमाल और सतत पोषणीय विकास के मुद्दे पर 1992 में रियो डे जेनेरो में अर्थ समिट का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में एक सौ राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए थे। वे सभी एजेंडा 21 पर सहमत हुए थे। इस एजेंडा का मुख्य मुद्दा था सतत पोषणीय विकास और संसाधन का सही इस्तेमाल। इस एजेंडा मे समान हितों, पारस्परिक जरूरतों और सम्मिलित जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए विश्व सहयोग की बात की गई है ताकि पर्यावरण की क्षति, गरीबी और रोगों से मुकाबला किया जा सके।

संसाधन नियोजन:

संसाधन नियोजन के द्वारा हम संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल कर सकते हैं। भारत में संसाधनों का वितरण समुचित नहीं है। ऐसे में संसाधन नियोजन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। कई राज्यों के पास प्रचुर मात्रा में खनिज तो अन्य संसाधनों का अभाव है। झारखंड में खनिजों के प्रचुर भंडार हैं लेकिन वहाँ पेय जल और अन्य सुविधाओं का अभाव है। मेघालय में जल की कोई कमी नहीं है लेकिन वहाँ अन्य संसाधनों का अभाव है। इसलिए इन क्षेत्रों का सही विकास नहीं हो पाया है। ऐसे में होने वाली समस्या को हम संसाधनों के विवेकपूर्ण इस्तेमाल से ही कम कर सकते हैं।

भारत में संसाधन नियोजन:

संसाधनों की मदद से समुचित विकास करने के लिये यह जरूरी है कि योजना बनाते समय टेक्नॉलोजी, कौशल और संस्थागत बातों का ध्यान रखा जाये। प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही भारत में संसाधन नियोजन एक प्रमुख लक्ष्य रहा है। भारत में संसाधन नियोजन के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

संसाधनों का संरक्षण:

संसाधनों के दोहन से कई सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। गांधीजी का मानना था कि आधुनिक टेक्नॉलोजी की शोषणात्मक प्रवृत्ति ही पूरी दुनिया में संसाधनों के क्षय का मुख्य कारण है। गांधीजी अत्यधिक उत्पादन के खिलाफ थे और उसकी जगह जनसमुदाय द्वारा उत्पादन की वकालत करते थे।

पृथ्वी पर संसाधन सीमित मात्रा में ही हैं। यदि उनके अंधाधुंध इस्तेमाल पर रोक नहीं लगती है तो भविष्य में मानव जाति के लिये कुछ भी नहीं बचेगा। फिर हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि हम संसाधनों का संरक्षण करें।