10 नागरिक शास्त्र

जन संघर्ष और आंदोलन

राजनैतिक पार्टियों पर प्रभाव

दबाव समूह और आंदोलन राजनैतिक पार्टियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर उनका एक खास राजनैतिक मत और सिद्धांत होता है। हो सकता है कि कोई दबाव समूह किसी राजनैतिक पार्टी से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी जुड़ा हुआ हो।

भारत के अधिकांश ट्रेड यूनियन और स्टूडेंट यूनियन किसी न किसी मुख्य पार्टी से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। इस तरह के समूहों के कार्यकर्ता सामान्यतया किसी पार्टी के कार्यकर्ता या नेता भी होते हैं।

कई बार किसी जन आंदोलन से राजनैतिक पार्टी का भी जन्म होता है। इसके कई उदाहरण हैं; जैसे असम गण परिषद, डीएमके, एआईडीएमके, आम आदमी पार्टी, आदि। असम गण परिषद का जन्म असम में बाहरी लोगों के खिलाफ चलने वाले छात्र आंदोलन के कारण 1980 के दशक में हुआ था। डीएमके और एआईडीएमके का जन्म तामिलनाडु में 1930 और 1940 के दशक में चलने वाले समाज सुधार आंदोलन के कारण हुआ था। आम आदमी पार्टी का जन्म सूचना के अधिकार और लोकपाल की मांग के आंदोलन के कारण हुआ था।

अधिकांश मामलों में दबाव समूह और किसी राजनैतिक पार्टी के बीच का रिश्ता उतना प्रत्यक्ष नहीं होता है। अक्सर यह देखा जाता है कि दोनों एक दूसरे के विरोध में ही खड़े होते हैं। राजनैतिक पार्टियाँ भी दबाव समूहों द्वारा उठाये जाने वाले अधिकांश मुद्दों को आगे बढ़ाने का काम करती हैं। कई बड़े राजनेता किसी दबाव समूह से ही निकलकर आये हैं।

दबाव समूह के प्रभाव का मूल्यांकन

कई लोग दबाव समूहों के खिलाफ तर्क देते हैं। कई विचारक ऐसा मानते हैं कि दबाव समूह को सुनने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि ऐसे समूह समाज के एक छोटे से वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र किसी छोटे वर्ग के संकीर्ण हितों के लिये काम नहीं करता बल्कि पूरे समाज के हितों के लिये काम करता है। राजनैतिक पार्टी को तो जनता को जवाब देना होता है लेकिन दबाव समूह पर यह बात लागू नहीं होती है। इसलिए कुछ विचारकों का मानना है कि दबाव समूह की सोच का दायरा बड़ा नहीं हो सकता है। कई बार कोई बिजनेस लॉबी या अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी भी कुछ दबाव समूहों को हवा देती रहती हैं। इसलिए दबाव समूह की बात को नाप तौलकर ही सुनना चाहिए।

कई लोग दबाव समूह का समर्थन करते हैं। कुछ विचारकों का मानना है कि लोकतंत्र की जड़ें जमाने के लिये सरकार पार दबाव डालना उचित होता है। ऐसा माना जाता है कि राजनैतिक पार्टियाँ सत्ता हथियाने के चक्कर में अक्सर जनता के असली मुद्दों की अवहेलना करती हैं। उनको नींद से जगाने का काम दबाव समूह का ही होता है।

ऐसा कहा जा सकता है कि दबाव समूह विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं में संतुलन का काम करते हैं और सामान्यतया लोगों की असली समस्याओं को उजागर करते हैं।