संघवाद
सत्ता का संतुलन
अलग अलग संघीय ढ़ाँचे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता के संतुलन अलग अलग प्रकार के होते हैं। यह संतुलन उस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है जिसपर उस संघ का निर्माण हुआ था।
संघों के निर्माण के दो तरीके हैं जो निम्नलिखित हैं:
सबको साथ लाकर संघ बनाना: इस प्रकार की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य स्वत: एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि वैसे राज्य अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के साथ साथ अपनी सुरक्षा बढ़ा सकें। इस प्रकार की व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं; संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया।
सबको जोड़कर संघ बनाना: इस प्रकार की संघीय व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्रों को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है। इस प्रकार की व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है। हो सकता है कुछ इकाइयों को अन्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई हो। उदाहरण के लिए; भारत में जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं: भारत, स्पेन, बेल्जियम, आदि।
विषयों की लिस्ट:
यूनियन लिस्ट: इस लिस्ट में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं। कुछ विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें यूनियन लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है। यूनियन लिस्ट के कुछ विषय हैं; देश की सुरक्षा, विदेश नीति, बैंकिंग, सूचना प्रसारण और मुद्रा।
स्टेट लिस्ट: जो विषय स्थानीय महत्व के होते हैं उन्हें स्टेट लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास होता है। उदाहरण; पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई।
साझा लिस्ट: इस लिस्ट को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं। वैसे विषय जो साझा महत्व के होते हैं, इस लिस्ट में आते हैं। साझा लिस्ट के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है। यदि केंद्र और राज्य द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। उदाहरण; शिक्षा, वन, ट्रेड यूनियन, विवाह, दत्तक अभिग्रहण, उत्तराधिकार, आदि।
बची हुई लिस्ट: वैसे विषय जो ऊपर दी गई किसी भी लिस्ट में न हो तो उन्हें बचे हुए विषयों की लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है।
विशेष दर्जा: जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है। इस राज्य का अपना अलग संविधान है। भारत के संविधान के कई प्रावधान इस राज्य में तब तक लागू नहीं किये जा सकते जब तक कि उन्हें राज्य की विधान सभा की अनुमति न मिले। यदि कोई भारतीय इस राज्य का स्थाई नागरिक नहीं है तो वह इस राज्य में जमीन या मकान नहीं खरीद सकता है। कुछ अन्य राज्यों को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है।
केंद्र शासित प्रदेश: भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है। इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है। इन्हें केंद्र शाषित प्रदेश कहते हैं। ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं। उदाहरण; दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, आदि।
भारत में सत्ता की साझेदारी की यह प्रणाली हमारे संविधान की मूलभूत संरचना में है। इस प्रणाली को बदलना बहुत कठिन है। अकेले संसद द्वारा यह संभव नहीं है। इस प्रणाली में कोई भी बदलाव लाने के लिए पहले तो उसे संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा। उसके बाद कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं से सहमति लेनी होगी।
भारत की संघीय व्यवस्था
भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता के कारण
भाषायी राज्य: भारत एक विशाल देश है जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। इसके अलावा यहाँ भौगोलिक, जातीय, सांस्कृतिक, आदि विविधताएँ भी हैं। कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया गया ताकि एक ही भाषा बोलने वाले लोग एक ही राज्य में रह सकें। उदाहरण; तामिल नाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आदि। कुछ राज्यों का गठन भूगोल, जातीयता, संस्कृति आदि के आधार पर हुआ। उदाहरण; नागालैंड, उत्तराखंड, झारखंड, आदि।
भाषा नीति: भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। हिंदी को आधिकारिक भाषा की मान्यता दी गई है। लेकिन हिंदी केवल 40% लोगों की मातृभाषा है। इसलिए दूसरी भाषाओं की रक्षा करना अनिवार्य हो जाता है। इसके लिए कई प्रावधान बनाये गये। हिंदी के अलावा, 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।
केंद्र और राज्य के रिश्ते: केंद्र और राज्य के बीच के रिश्तों के पुनर्गठन से हमारी संघीय व्यवस्था को और बल मिला है।