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रेगिस्तान में जीवन

रेगिस्तान: जिस शुष्क प्रदेश में अत्यधिक गर्मी या अत्यधिक सर्दी पड़ती है, बहुत कम वर्षा होती है और नाममात्र वनस्पति उगती है उसे रेगिस्तान कहते हैं। जिस जगह पर पानी की कमी हो, मवेशियों के चरने के लिए कोई चारा न हो, वहाँ जिंदा रहना कितना मुश्किल हो सकता है इसका अनुमान आप आसानी से लगा सकते हैं। तमाम मुश्किलों के बावजूद रेगिस्तान में भी लोग रहते हैं।

सहारा रेगिस्तान

सहारा रेगिस्तान उत्तरी अफ्रीका के एक बड़े भूभाग में फैला हुआ है। इस रेगिस्तान के महत्वपूर्ण लक्षण नीचे दिए गए हैं।

जलवायु

सहारा रेगिस्तान की जलवायु अत्यधिक गर्म और शुष्क है। यहाँ की वर्षा ऋतु बहुत थोड़े समय के लिए होती है। आसमान हमेशा साफ रहने के कारण जो भी पानी जमीन पर जमा होता है वह तुरंत भाप बनकर उड़ जाता है। इसलिए यहाँ पानी की भारी किल्लत है। यहाँ का तापमान 50 सेल्सियस तक हो सकता है। इतनी गर्मी से रेत और चट्टानें गर्म हो जाती हैं फिर विकिरण के द्वारा अपने आस पास के माहौल को गर्म कर देती हैं। रात में ठंड होती है और तापमान कभी कभी जीरो डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है।

वनस्पतिजात और प्राणीजात: यहाँ पर कैक्टस, खजूर और एकेसिया के पेड़ पाए जाते हैं। कुछ जगहों पर मरुद्यान या नखलिस्तान मिलते हैं, जहाँ खजूर की खेती होती है। यहाँ पर ऊँट, हाएना, सियार, लोमड़ी, बिच्छू, आदि पाए जाते हैं।

सहारा के लोग

सहारा रेगिस्तान में अधिकतर खानबदोश लोग रहते हैं, जैसे कि बेदुयिन और तुआरेग। ये लोग मवेशी पालते हैं, जैसे भेड़, बकरी, ऊँट और घोड़े। इन मवेशियों से इन्हें भोजन के लिए मांस और दूध मिल जाता है। इनकी खाल से ये बेल्ट, चप्पलें और पानी की बोतल (मशक) बनाते हैं। इन मवेशियों के बालों से दरी, चटाई, कपड़े और कम्बल बनाए जाते हैं। मिस्र में नील नदी और सहारा में नखलिस्तानों के कारण यहाँ पर कई स्थानों पर खेती करना संभव हो जाता है। खजूर के अलावा, यहाँ धान, गेहूँ, बार्ली और सेम की खेती होती है। मिस्र की कपास पूरी दुनिया में मशहूर है। सहारा के खानाबदोश लोग यहाँ की कठोर जलवायु से बचने के लिए भारी वस्त्र पहनते हैं।

मरुद्यान: जब रेत को हवा उड़ा ले जाती है तो जमीन पर गड्ढ़े बन जाते हैं। इन गड्ढ़ों मे भौमजल रिसकर जमा हो जाता है और मरुद्यान या नखलिस्तान बन जाता है। ऐसी जगह की जमीन उपजाऊ होती है।

रेगिस्तान में बदलाव

तेल के कुँओं की खोज के बाद सहारा रेगिस्तान की तस्वीर बदल रही है। अल्जीरिया, लीबिया और मिस्र में तेल के कुँए हैं। यहाँ पर लोहा, फॉस्फोरस, मैगनीज और यूरेनियम, आदि खनिजों के भी भंडार हैं।

व्यवसाय बढ़ने के साथ यहाँ बुनियादी ढ़ाँचे में भी विकास हुआ है। जिस जगह पर कभी मस्जिदों की मीनारें लैंडमार्क का काम करती थी, अब वहाँ पर गगनचुंबी इमारतें दिखने लगी हैं। परंपरागत ऊँटों के रास्तों की जगह अब सुपर हाइवे दिखने लगे हैं। नमक का व्यापार अब ऊँटों की जगह ट्रकों द्वारा होता है। खानबदोश जनजातियों के कई लोग अब तेल और गैस के कुँओं में नौकरी की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं।

मृगमरीचिका

जब तपती गर्मी में कोई थका हुआ बटोही अंतहीन रेगिस्तान की छोर पर देखता है तो उसे दूर कहीं चमचमाती हुई झील नजर आती है। वह अपनी आँखें मलते हुए फिर से देखता है कि कहीं ये सपना तो नहीं है। पूरा पक्का कर लेने के बाद जब वह दौड़कर उस जगह पर पहुँचता है तो पाता है कि पूरी की पूरी झील गायब हो चुकी है।

दरअसल वहाँ कोई झील होती ही नहीं है। यह भ्रम प्रकाश की किरणों से पैदा होने वाली परिघटना के कारण होता है। जब प्रकाश की किरणें अलग-अलग तापमान वाली हवा की परतों से होकर गुजरती हैं तो उन किरणों की दिशा बार बार बदलती रहती है। इसे भौतिकीशास्त्र की भाषा में प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं। इसी अपवर्तन के कारण बेचारे बटोही को भ्रम हो जाता है। अपवर्तन के बारे में आप साइंस के क्लास में पढ़ेंगे।