वायुमंडल
पृथ्वी के चारों और मौजूद वायु की मोटी परत को वायुमंडल कहते हैं। पृथ्वी पर जीवन के लिए वायुमंडल आवश्यक है।
वायुमंडल की भूमिका
- इससे मिलने वाली हवा से हम सांस लेते हैं।
- यह सूर्य की हानिकारक विकिरणों से हमारी रक्षा करता है।
- यह पृथ्वी को बहुत अधिक गर्म या ठंडा होने से बचाता है।
हवा के घटक
हवा कई गैसों का मिश्रण है, जैसे ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, आदि। वायुमंडल का अधिकांश हिस्सा नाइट्रोजन (78%) और ऑक्सीजन (21%) से बना है। बाकी बचे हुए 1 प्रतिशत में कार्बन डाइऑक्साइड (0.03%), आर्गन (0.93%) और अन्य गैसें रहती हैं। इन गैसों के अलावा, हवा में धूलकण और जलवाष्प रहती है।
नाइट्रोजन
यह गैस वायुमंडल में सबसे प्रचुर मात्रा में रहती है। पादपों को प्रोटीन बनाने के लिए नाइट्रोजन की जरूरत पड़ती है। पादप हवा से गैसीय नाइट्रोजन नहीं ले पाते हैं। कुछ पादपों की जड़ों में कुछ बैक्टीरिया रहते हैं जो नाइट्रोजन को उस रूप में बदल देते हैं ताकि पादप मिट्टी से नाइट्रोजन ले सकें।
ऑक्सीजन
यह वायुमंडल की दूसरी सबसे प्रचुर मात्रा वाली गैस है। लगभग हर सजीव को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। हरे पादप प्रकाश संश्लेषण के दौरान ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड
हरे पादप जब अपना भोजन बनाते हैं तो कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल करते हैं। अधिकतर सजीव श्वसन के बाद कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं।
आपने देखा कि अधिकतर सजीव श्वसन के लिए ऑक्सीजन इस्तेमाल करते हैं और उसके बाद कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। आपने यह भी देखा कि हरे पादप प्रकाश संश्लेषण के बाद ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इस तरह हरे पादप, वायुमंडल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के बीच संतुलन बनाए रखते हैं। यदि पृथ्वी पर पादपों की संख्या कम हो जाएगी तो यह संतुलन बिगड़ जाएगा। जब हम ईंधन का दहन करते हैं तो भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करते हैं। इससे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मौसम पर बुरे असर पड़ते हैं।
वायुमंडल की परतें
वायुमंडल की पाँच परतें होती हैं: क्षोभमंडल (ट्रोपोस्फेयर), समतापमंडल (स्ट्रैटोस्फेयर), मध्यमंडल (मेसोस्फेयर), वाह्य वायुमंडल (थर्मोस्फेयर) और बहिर्मंडल (एक्सोस्फेयर)
ट्रोपोस्फेयर
यह सबसे महत्वपूर्ण परत है। इसी परत में सभी जीव रहते हैं और सांस लेते हैं। मौसम की सभी घटनाएँ इसी परत में होती हैं। ट्रोपोस्फेयर की औसत ऊँचाई 13 किलोमीटर होती है।
स्ट्रैटोस्फेयर
इस परत की ऊँचाई 50 किलोमीटर होती है। इसमें बादल न के बराबर होते हैं और मौसम संबंधी घटनाएँ नहीं होती हैं। विमान उड़ाने के लिए इस परत में आदर्श परिस्थितियाँ होती हैं, क्योंकि यह शांत होता है। स्ट्रैटोस्फेयर में ओजोन गैस होती है जो सूर्य से निकलने वाली खतरनाक अल्ट्रावायोलेट (पराबैंगनी) किरणों से हमारी रक्षा करती है। ओजोन की परत का पतला होना एक चिंता का विषय है।
मेसोस्फेयर
इस परत की ऊँचाई 80 किलोमीटर होती है। जब अंतरिक्ष से कोई उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो इसी परत में वह जलकर राख हो जाता है।
थर्मोस्फेयर
इस परत की ऊँचाई 80 से 400 किलोमीटर होती है। रेडियो तरंगों का प्रसारण इसी परत में होता है। रेडियो तरंगें, थर्मोस्फेयर से परावर्तित होकर दोबारा पृथ्वी की सतह पर जाती हैं। इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान तेजी से बढ़ता है।
एक्सोस्फेयर
यह वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत है। यहाँ की हवा बहुत विरल होती है। इस परत में से हीलियम और हाइड्रोजन जैसी हल्की गैसें बाहरी अंतरिक्ष की ओर जाती रहती हैं।